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सोयाबीन की कटाई इस बार किसानों के लिए उम्मीद से कहीं ज्यादा निराशाजनक साबित हो रही है। सामान्य तौर पर एक बीघा खेत से लगभग तीन क्विंटल सोयाबीन निकलती है, लेकिन इस वर्ष मौसम की मार और कीट-रोग के प्रकोप ने हालात ऐसे बना दिए कि उपज घटकर सिर्फ 50 से 60 किलो प्रति बीघा रह गई है। इसका सीधा असर किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। खेतों में मेहनत और लगानी की गई लागत पूरी तरह डूब गई है।
किसानों का कहना है कि औसतन
एक बीघा खेत से यदि 50 किलो सोयाबीन भी निकलती है और उसका बाजार भाव 4,000 रुपये प्रति
क्विंटल माना जाए, तो कुल आय मात्र 2,000 रुपये ही बनती है। वहीं दूसरी ओर, बीज, उर्वरक,
कीटनाशक, खरपतवार नाशक, मजदूरी और मशीनरी का खर्च जोड़कर प्रति बीघा लागत करीब
12,000 रुपये बैठती है। इसका मतलब यह हुआ कि किसानों को प्रति बीघा लगभग 10,000 रुपये
का घाटा उठाना पड़ रहा है। यह घाटा सिर्फ इस सीज़न तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अगली
फसल की तैयारी और बुवाई पर भी असर डालेगा क्योंकि किसानों के पास नई लागत जुटाने की
समस्या खड़ी हो गई है।
किसानों की परेशानी
फसल खराब होने की वजह से अब
किसानों के सामने दोहरी चुनौती है। एक तरफ घर-परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया
है और दूसरी ओर अगली फसल के लिए बीज व खाद खरीदने की चिंता भी उन्हें खाए जा रही है।
जिन किसानों ने उधारी लेकर खेतों में बुवाई की थी, वे अब कर्ज लौटाने की स्थिति में
भी नहीं हैं। यह स्थिति ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बेहद गंभीर है क्योंकि खेती पर
ही गांव के अधिकतर परिवारों की आजीविका टिकी हुई है।
उपज घटने के प्रमुख कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि
इस बार उपज कम होने के कई कारण रहे। सबसे बड़ा कारण मौसम की मार रही। कहीं अत्यधिक
वर्षा हुई तो कहीं बारिश के लंबे अंतराल ने पौधों की बढ़वार रोक दी। कई क्षेत्रों में
जलभराव हो गया, जिससे पौधे जड़ से सड़ गए। वहीं, कुछ जगहों पर कीट और रोगों का प्रकोप
भी ज्यादा देखने को मिला। सोयाबीन में तना मक्खी, पत्तों को खाने वाले कीट और पीलिया
रोग का असर उपज पर साफ दिखाई दिया। इसके अलावा, किसानों का यह भी कहना है कि इस बार
बीज की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं रही, जिससे पौधे पूरी क्षमता से नहीं बढ़ पाए।
सरकार से उम्मीदें और योजनाएँ
किसानों ने सरकार से मुआवजे
की मांग की है। उनका कहना है कि जब इतनी बड़ी हानि हुई है तो सरकार को सर्वे कराकर
किसानों को राहत राशि उपलब्ध करानी चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री
फसल बीमा योजना ऐसे समय में किसानों के लिए मददगार हो सकती है। इस योजना के तहत प्राकृतिक
आपदा, कीट या रोग के कारण फसल खराब होने पर किसानों को बीमा राशि दी जाती है। कई किसान
इस योजना से जुड़े हुए हैं, लेकिन समस्या यह है कि भुगतान में अक्सर देरी होती है।
किसानों की मांग है कि इस बार सर्वेक्षण और भुगतान की प्रक्रिया समय पर पूरी की जाए
ताकि वे अगली फसल की तैयारी कर सकें।
सोयाबीन की किस्मों पर जानकारी
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है
कि अगर किसान उपयुक्त किस्मों का चयन करें तो नुकसान की संभावना कुछ हद तक कम हो सकती
है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्रों में सोयाबीन की कई सुधारित
किस्में विकसित की गई हैं। इनमें से एमएयूएस-725 एक ऐसी किस्म है जो जल्दी पकने वाली
है और इसमें पैदावार भी अच्छी मिलती है। इसी तरह एएमएस-एमबी-5-18 किस्म की खासियत यह
है कि फसल पकने पर फलियों के झड़ने की समस्या कम होती है, जिससे उत्पादन सुरक्षित रहता
है।
इसके अलावा मैक्स-1460 नामक
किस्म की पहचान इसकी मजबूत फलियों और ज्यादा उत्पादन क्षमता से होती है। यह किस्म उन
क्षेत्रों के लिए लाभकारी है जहां बारिश के बाद मौसम में अचानक बदलाव होता है और फल
झड़ने का खतरा बना रहता है। वहीं, केडीएस-992 (फुले दूर्वा) मध्यम से ऊँच उपज देने
वाली किस्म है, जो मध्य भारत की जलवायु में अच्छी तरह अनुकूल होती है। मध्यप्रदेश की
जेएनकेवीवी (जबलपुर) द्वारा विकसित जेएस-20-29 और जेएस-20-34 किस्में विभिन्न मौसम
और मिट्टी की परिस्थितियों में स्थिर उत्पादन देने में सक्षम मानी जाती हैं।
किसानों के लिए सुझाव
विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों
को अगली बार बुवाई से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले, खेत में जलनिकासी
की अच्छी व्यवस्था होना जरूरी है ताकि बारिश के समय पानी खेत में ज्यादा देर तक न रुके।
दूसरा, बीज हमेशा प्रमाणित और गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए। बुवाई से पहले बीज का उपचार
करना बेहद जरूरी है ताकि रोग-कीट का असर कम हो।
फसल की सुरक्षा के लिए समय-समय
पर खेत का निरीक्षण करना चाहिए और कीटनाशक का छिड़काव विशेषज्ञ की सलाह पर करना चाहिए।
साथ ही, मिट्टी परीक्षण कराकर ही उर्वरक डालें ताकि खेत में पोषक तत्वों का सही संतुलन
बना रहे। जैविक खाद और गोबर की खाद का प्रयोग करने से भी मिट्टी की उर्वरता लंबे समय
तक बनी रहती है।
भविष्य की राह
सोयाबीन मध्य भारत की एक प्रमुख
नकदी फसल है। यह न सिर्फ तेल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इसके अवशेष पशु-चारे
और मिट्टी सुधार के लिए भी उपयोगी हैं। लेकिन लगातार नुकसान झेल रहे किसान तभी खेती
जारी रख पाएंगे जब उन्हें समय पर राहत मिले। सरकार को चाहिए कि न सिर्फ मुआवजा दे बल्कि
किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीज, प्रशिक्षण और वैज्ञानिक तरीके से खेती करने की जानकारी
भी उपलब्ध कराए।
भविष्य में अगर किसान सही किस्मों
का चुनाव करें, आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करें और बीमा योजनाओं से जुड़ें, तो ऐसी हानि
को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
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