चना की फसल में 20–30 दिन सबसे खतरनाक! इन बीमारियों से न बचाव हुआ तो पूरी पैदावार हो सकती है खत्म

चना की फसल में 20–30 दिन सबसे खतरनाक! इन बीमारियों से न बचाव हुआ तो पूरी पैदावार हो सकती है खत्म
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Kisaan Helpline

Crops Dec 19, 2025

रबी मौसम में चना किसानों की सबसे भरोसेमंद और मुनाफे वाली फसलों में गिना जाता है। सही समय पर बुआई और शुरुआती देखभाल की जाए तो चना अच्छी पैदावार देता है। लेकिन यदि फसल के शुरुआती 20 से 30 दिनों में थोड़ी भी चूक हो जाए, तो खेत में खड़ी पूरी फसल खतरे में पड़ सकती है।

 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, चना की फसल में ड्राई रूट रॉट, कॉलर रॉट और जड़ सड़न जैसी बीमारियां अक्सर बुआई के कुछ ही दिनों बाद पनपने लगती हैं। शुरुआत में इनके लक्षण साफ नजर नहीं आते, लेकिन समय रहते ध्यान दिया जाए तो पौधे अचानक सूखने लगते हैं और उपज पर सीधा असर पड़ता है।

 

मध्य प्रदेश में चना की मौजूदा स्थिति

 

मध्य प्रदेश के कई जिलों में इस समय चना की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। खासकर खरगोन जिले में लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चना बोया गया है। अधिकतर किसानों ने बुआई पूरी कर ली है, जबकि कुछ जगहों पर अभी भी देर से बुआई चल रही है। ऐसे में विशेषज्ञ किसानों को फसल की शुरुआती अवस्था में विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दे रहे हैं।

 

चना में रोग लगने के मुख्य कारण

 

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि चना में कॉलर रॉट और जड़ सड़न का मुख्य कारण अधिक नमी, भारी सिंचाई और बीजोपचार करना होता है। बुआई के 20 से 30 दिन बाद यह फफूंद जनित रोग तेजी से फैल सकता है। खासकर भारी मिट्टी और पानी रुकने वाले खेतों में इसका खतरा ज्यादा रहता है।

 

बीमारी से बचाव का सबसे असरदार तरीका

 

चना की फसल को रोगों से बचाने के लिए बीजोपचार सबसे पहली और जरूरी कड़ी है। बीज बोने से पहले सही दवाओं से उपचार करने पर फसल काफी हद तक सुरक्षित रहती है।

 

बीजोपचार की सही विधि:

·       ट्राइकोडर्मा – 5 ग्राम प्रति किलो बीज

·       वीटावेक्स पावर – 3 ग्राम प्रति किलो बीज

·       इसके बाद राइजोबियम कल्चर और पीएसबी कल्चर – 5–5 ग्राम प्रति किलो बीज

 

इस उपचार से पौधों की जड़ों में गांठें जल्दी बनती हैं, जिससे फसल की बढ़वार अच्छी होती है और उत्पादन बढ़ता है।

 

अगर फसल में बीमारी दिखने लगे तो क्या करें?

बीजोपचार के बाद भी यदि खेत में रोग के लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत दवा का इस्तेमाल करना चाहिए।

 

बीमारी के लक्षण:

·       कॉलर रॉट में पौधे पीले पड़कर धीरे-धीरे सूखने लगते हैं

·       जड़ सड़न में जड़ें गलने लगती हैं और पौधा जमीन से गिर जाता है

 

उपचार:

·       मेटालेक्जिल + मैनकोजेब – 30 ग्राम प्रति पंप पानी में घोलकर पौधों की जड़ में ड्रेंचिंग करें

·       यदि यह दवा उपलब्ध हो तो कार्बेंडाजिम 50 WP का उपयोग किया जा सकता है

 

चना की फसल में शुरुआती 20–30 दिन सबसे अहम होते हैं। इस समय की गई लापरवाही भारी नुकसान का कारण बन सकती है। नियमित खेत निरीक्षण, संतुलित सिंचाई और समय पर उपचार से किसान अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं और अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

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