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गेहूं की खेती में सिंचाई सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में से एक है। अच्छी किस्म और अच्छी खाद डालने के बावजूद, यदि फसल को सही समय पर पानी न मिले तो पैदावार आधी रह जाती है। पानी पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने, मिट्टी को नरम बनाए रखने और फसल को पाले से बचाने का अहम काम करता है। इसलिए समय के अनुसार और सही मात्रा में सिंचाई करना हमेशा लाभदायक होता है। भारत में अधिकांश किसान गेहूं की सिंचाई पर खास ध्यान रखते हैं, लेकिन कई बार न तो समय सही होता है और न ही तरीका। इसी कारण फसल कमजोर पड़ जाती है और उत्पादन घट जाता है।
यह मिट्टी, बारिश और मौसम पर निर्भर करता है। सामान्य परिस्थितियों में लगभग 40 सेमी पानी गेहूं की पूरी जरूरत को पूरा कर देता है। सामान्य मिट्टी में 4 से 6 बार सिंचाई करनी होती है, जबकि रेतीली मिट्टी में यह संख्या बढ़कर 6 से 8 तक हो जाती है क्योंकि वहां पानी जल्दी नीचे चला जाता है। भारी मिट्टी में 3 से 4 सिंचाई ही पर्याप्त होती है क्योंकि उसमें नमी लंबे समय तक बनी रहती है। कुल मिलाकर मिट्टी जितनी हल्की होगी, उतनी बार पानी देने की जरूरत पड़ेगी।
सिंचाई का सही समय पहचानना भी बेहद जरूरी है। मिट्टी की नमी से यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि पानी देना है या नहीं। यदि मिट्टी को हाथ में दबाने पर ढेला टूट जाए तो इसका मतलब है कि नमी कम हो चुकी है और फसल को पानी चाहिए। वैज्ञानिक तरीके जैसे टेन्सियोमीटर भी बताते हैं कि कब सिंचाई करनी चाहिए। शोध के अनुसार गेहूं में तब सिंचाई करनी चाहिए जब तनाव स्तर 0.5 बार तक पहुँच जाए। इसके अलावा मौसम भी सिंचाई के समय को काफी प्रभावित करता है। तेज धूप, हवा और तापमान बढ़ने पर वाष्पन की प्रक्रिया तेज होती है। जब लगभग 6.7 सेमी वाष्पन हो जाए तो 6 सेमी पानी देना सबसे उपयुक्त माना जाता है।
गेहूं की फसल में सिंचाई की कुछ अवस्थाएँ ऐसी होती हैं जो उपज के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। पहली महत्वपूर्ण अवस्था जड़ बनने की होती है, जो बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद आती है। इसके बाद 40 से 45 दिन में कल्ले निकलने का समय आता है, जिसमें सही समय पर पानी मिले तो ज्यादा कल्ले बनते हैं और फसल घनी होती है। तीसरी अवस्था 65 से 70 दिन के बीच तने में गाँठ बनने की होती है, जिसमें फसल की मजबूती बढ़ती है। 90 से 95 दिन में फूल आने की अवस्था होती है और इस समय पानी न मिले तो फूल झड़ जाते हैं। इसके बाद 105 से 110 दिन में दानों में दूध भरने का समय आता है और यह उपज बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। अंतिम अवस्था 120 से 125 दिन में दाने सख्त होने की होती है, जिसमें दिया गया पानी दाने को मोटा और चमकदार बनाता है।
सिंचाई की विधियाँ भी फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। क्यारी विधि (चेक बेसिन) उन क्षेत्रों में उपयोगी है जहां खेत का ढाल अधिक हो और पानी का बहाव कम हो। इसमें खेत को छोटे-छोटे वर्गों में बाँटकर पानी लगाया जाता है। इसके विपरीत नकवार विधि लंबे पट्टों में पानी देने की पद्धति है, जो उन क्षेत्रों में सबसे उपयुक्त है जहाँ ढाल कम हो और पानी का दबाव अधिक। गेहूं की फसल में आमतौर पर 8 से 10 मीटर चौड़ी पट्टियाँ बनाना लाभकारी माना जाता है।
गेहूं की खेती में सही समय पर और सही मात्रा में सिंचाई करना ही उच्च पैदावार की कुंजी है। बहुत कम पानी देने से जड़ें कमजोर हो जाती हैं और पौधा पोषक तत्व सही से नहीं ले पाता। वहीं जरूरत से ज्यादा पानी देने पर खाद और पोषक तत्व नीचे बह जाते हैं, जिससे फसल को हानि होती है। इसलिए किसान भाईयों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि पानी न कम हो, न ज्यादा—बस फसल की अवस्था के अनुसार सही समय पर सही सिंचाई हो।
सही समय पर सही खेती सलाह ही अच्छी पैदावार का राज़ है। इसलिए किसान भाई हमेशा भरोसेमंद कृषि जानकारी से जुड़े रहें—किसान हेल्पलाइन आपके साथ है, हर मौसम में, हर खेत के लिए।
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