ग्रीष्मकालीन बाजरा की उन्नत खेती, पढ़े महत्वपूर्ण जानकारी
ग्रीष्मकालीन बाजरा की उन्नत खेती, पढ़े महत्वपूर्ण जानकारी
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खरीफ के अलावा गर्मी के मौसम में भी बाजरे की खेती (Millets Farming) सफलतापूर्वक की जा रही है, क्योंकि गर्मी के मौसम में बाजरे के लिए अनुकूल वातावरण इसे अनाज के रूप में उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है तथा चारे के लिए भी इसकी खेती की जा रही है। यदि सिंचाई जल की उचित व्यवस्था हो तो आलू, सरसों, चना एवं मटर के बाद बाजरा की खेती से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।

बाजरा की खेती (Bajra Ki Kheti) गर्म जलवायु तथा 50-60 सें.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से की जा सकती है। इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32-37 डिग्री सेल्सियस है। इसके लिए अधिक उपजाऊ मृदा की आवश्यकता नहीं होती है। बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती है। बाजरा की फसल जल निकास वाली सभी तरह की मृदा में उगाई जा सकती है।

बाजरा की संकर किस्में जैसे-टी.जी. 37, आर.-8808, आर.-9251, आईसीजीएस-1. आईसीजीएस-44, डीएच-86, एम-52, पीबी 172, पीबी-180, जीएचबी-526, जीएचबी-558, जीएचबी-183, संकुल प्रजातियां जैसे-पूसा कम्पोजिट-383, राज-171. आईआईसीएमवी 221 व सीटीपी-8203 प्रमुख हैं। मोटे तौर पर बाजरा की बुआई का सही समय मध्य फरवरी से लेकर जून-जुलाई तक है। जहां तक बीजों की मात्रा की बात है, तो 5-7 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर दर से सही रहते हैं। बुआई के समय पंक्तियों की आपसी दूरी 25 सें.मी. होनी चाहिए व बीजों को 2 सें.मी. से ज्यादा गहरा नहीं बोना चाहिए।

उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए। सिंचित क्षेत्र के लिए 80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर एवं बारानी क्षेत्रों के लिए 60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। बुआई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा लगभग 3-4 सें.मी. की गहराई पर डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा अंकुरण से 4-5 सप्ताह बाद खेत में बिखेरकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए।

अच्छी पैदावार के लिए, समय से खरपतवार नियंत्रण अति आवश्यक है, अन्यथा उपज में 50 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। बुआई से 30 दिनों तक, खेत को खरपतवारमुक्त रखना आवश्यक है। खरपतवार नियंत्रण के लिए, पहली निराई खुरपी द्वारा बुआई के 15 दिनों बाद करनी चाहिए। इसे 15 दिनों के अंतराल पर दोहराना चाहिए। यदि फसल की बुआई मेड़ पर की गयी है तो खरपतवार नियंत्रण ट्रैक्टर एवं रिज मेकर द्वारा भी किया जा सकता है। खरपतवारनाशक एट्राजिन । कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर की दर से बुआई के तुरन्त बाद अथवा 1-2 दिन बाद करने से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। एट्राजीन 0.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व को 800 लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है।

अच्छी उपज के लिए खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। पौधों में फुटाव होते समय, बालियां निकलते समय तथा दाना बनते समय नमी की कमी नहीं होनी चाहिए। बालियां निकलते समय नमी का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ग्रीष्मकालीन बाजरा में 8-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। इस प्रकार 9-10 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ सकती है।