Tinda/Squash melon (टिंडा)
Basic Info
टिंडा कुकरबिटेसी (Cucurbitaceae) कुल परिवार की यह सब्ज़ी बहुत ही गुणकारी है। टिंडे को round melon, round gourd, Indian squash भी कहा जाता है| यह उत्तरी भारत की सबसे महत्तवपूर्ण गर्मियों की सब्जी है। टिंडे का मूल स्थान भारत है। इसके कच्चे फल सब्जी बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इसके फल की औषधीय विशेषताएं भी हैं, सूखी खांसी और रक्त संचार सुधारने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। टिंडे की खेती उत्तरी भारत में, विशेषकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और आन्ध्रप्रदेश में की जाती है।
Seed Specification
बुवाई का समय
टिंडे की बुवाई का समय फरवरी-मार्च जायद के लिए और खरीफ की फसल के लिए जून-जुलाई में भी बोया जा सकता है।
दुरी
बीजों को क्यारियों के दोनों तरफ बोयें और 45 से.मी. दुरी का प्रयोग करें।
बीज की गहराई
बीजों को 2-3 से.मी. की गहराई में बोयें।
बुवाई का तरीका
बीजों को सीधे या समतल क्यारियों (मेड़) पर बोया जा सकता है।
बीज की मात्रा
टिंडे की एक हेक्टेयर फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
बीज उपचार
रोग नियंत्रण के लिए बीजों को बोने से पूर्व बाविस्टीन या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए।
Land Preparation & Soil Health
अनुकूल जलवायु
इसकी फसल के लिये गर्मतर जलवायु अच्छी होती है । अधिक गर्म व ठन्डी जलवायु उपयुक्त नहीं होती है । बीज के अंकुरण के लिये फरवरी-मार्च का मौसम अच्छा होता है। अच्छी पैदावार के लिए 10℃ से 28℃ का तापक्रम उचित रहता हैं।
भूमि का चयन
टिंडे की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जाती है, बढ़िया विकास और पैदावार के लिए अच्छे निकास वाली, उच्च जैविक तत्वों वाली रेतली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। बढ़िया विकास के लिए मिट्टी का pH 6 से 7 होनी चाहिए। पानी के ऊंचे स्तर वाली मिट्टी में यह बढ़िया पैदावार देती है।
खेत की तैयारी
बुवाई से पहले पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद में तीन जुताई देशी हल से या कल्टीवेटर से करते हैं। पानी कम या अधिक न लगे इसके लिए खेत को समतल कर लेते हैं। और जुताई के बाद आवश्यकतानुसार क्यारियाँ बना लेते हैं।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
खेत तैयारी के समय कार्बनिक खाद के रूप में गोबर की खाद 20-25 टन प्रति हेक्टेयर व 100 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 50 किलो ग्राम फ़ोस्फोरस व 50 किलो ग्राम पोटाश की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। सम्पूर्ण गोबर की खाद, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा को अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए तथा शेष 2/3 नाइट्रोजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर टापड्रेसिंग के रूप में प्रथम बार बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तथा 40 से 45 दिन पर फूल आने के समय देना चाहिए।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर आवश्यकतना अनुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई
ग्रीष्म कालीन फसल की प्रति सप्ताह सिंचाई करें वर्षा कालीन फसल की सिंचाई वर्षा पर निर्भर रहती है | फूल एवं फलन के समय खेत में उचित नमी जरूरी है। वर्षाकालीन मौसम में जल निकास की उचित व्यवस्था आवश्यक है।
Harvesting & Storage
फसल की कटाई
किस्म के आधार पर बुवाई के 60 दिनों में फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जब फल पक जाएं और मध्यम आकार के हो जायें तब तुड़ाई कर लें। 4-5 दिनों के फासले पर तुड़ाई करें।
उत्पादन
टिंडे की फसल का उत्पादन बीजों की गुणवत्ता, बुवाई का समय, भूमि की क़िस्म, जलवायु व ताप आदि पर निर्भर होता है, टिंडे की फसल से अनुकूल परिस्थितियों में फसल से प्रति हेक्टेयर 80 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है।
भंडारण
फल की तुड़ाई के बाद आवश्यकतानुसार फलों को किसी छायादार स्थान पर 2 से 3 दिन तक किसी टोकरी में रखकर भंडारित कर सकते हैं। इस दौरान फलों पर बीच-बीच में पानी का छिड़काव करना जरूरी होता है।