Moringa (Drumstick/मोरिंगा)
Basic Info
सहजन (Moringa Tree) वानस्पतिक नाम : "मोरिंगा ओलिफेरा" (Moringa oleifera) ) एक एक बहुत उपयोगी पेड़ है। इसे हिन्दी में सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि नामों से भी जाना जाता है। इस पेड़ के विभिन्न भाग अनेकानेक पोषक तत्वों से भरपूर पाये गये हैं इसलिये इसके विभिन्न भागों का विविध प्रकार से उपयोग किया जाता है। सहजन का उपयोग आज के समय में भोजन, दवा, पशुचारा आदि कार्यों में किया जाता है | सहजन में प्रचुर मात्रा में विटामिन एवं पोषक तत्व पाये जाते हैं | सहजन का फुल, फल और पत्तियों का भोजन के रूप में व्यवहार होता है | इसकी छाल, पत्ती, बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवाएँ तैयार की जाती है | इतना ही नहीं, सहजन के पत्ती मवेशियों के चारा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है |
Seed Specification
बुवाई का समय
एक महीने के तैयार पौध को पहले से तैयार किए गये गड्ढों में माह जुलाई-सितम्बर तक रोपनी कर दें।
बीज की मात्रा
एक हेक्टेयर में खेती करने के लिए 500 ग्राम बीज पर्याप्त है।
बुवाई का तरीका
बीज को सीधे तैयार गड्ढों में या फिर पॉलीथीन बैग में तैयार कर गड्ढों में लगाया जा सकता है। पॉलीथीन बैग में पौध एक महीना में लगाने योग्य तैयार हो जाता है।
दुरी
2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर 45 x 45 x 45 सेंमी. आकार के गड्ढे खोद लेना चाहिए। पौधों से पौधों की दूरी व लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखते हुए रोपाई करनी चाहिए।
बीज उपचार
नर्सरी में बीज बुवाई से पूर्व ट्राईकोडर्मा या कार्बडाजिम फफूंदनाशक की 5 से 10 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
Land Preparation & Soil Health
जलवायु
सहजन के पौधा का हरा-भरा व काफी फैलने वाला विकास के लिए सामान्यतया 25-30 डिग्री के औसत तापमान अनुकूल होता है। यह ठंड को भी सहता है। परन्तु पाला से पौधा को नुकसान होता है। फूल आते समय 40 डिग्री से ज्यादा तापमान पर फूल झड़ने लगता है। कम या ज्यादा वर्षा से पौधे को कोई नुकसान नहीं होता है। यह विभिन्न पारिस्थितिक अवस्थाओं में उगने वाला एक ढीठ स्वभाव का पौधा है।
भूमि
सहजन की खेती के लिए सभी तरह की मिट्टी अच्छी होती हैं, सहजन के ज्यादा उत्पादन के लिए काली, लैटराइट, गहरी बलई, बलुई दोमट या दोमट मिट्टी ज्यादा उपज देने वाली होती है। इसे खाली पड़ी जमीनों, बंजर व कम उपजाऊ वाली जमीनों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।
खेत की तैयारी
नर्सरी में तैयार सहजन के पौधों को खेत में रोपने से पहले जोत कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए, खेत की अच्छी तैयारी के लिए एक गहरी जुताई करने के बाद हैरो या कल्टीवेटर से 2 से 3 गहरी जुताइयां कर देनी चाहिए, इस से सहजन की जड़ों का मिट्टी में फैलाव सही होता है। खेत से खरपतवारों को निकाल देना चाहिए। सहजन के पौध की रोपनी में गड्ढा बनाकर किया जाता है। इन गड्ढों में मिट्टी के साथ गोबर की सडी खाद मिला कर भर देते हैं, गोबर की खाद को खेत में सीधे भी मिलाया जा सकता है।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
सहजन पर किए गए शोध से यह पाया गया कि मात्र 15 किलोग्राम गोबर की खाद प्रति गड्ढा तथा एजोसपिरिलम और पी.एस.बी. (5 किलोग्राम/हेक्टेयर) के प्रयोग से जैविक सहजन की खेती, उपज में बिना किसी हानि के किया जा सकता है। रोपनी के तीन महीने के बाद रासायनिक उर्वरक के रूप में 100 ग्राम यूरिया + 100 ग्राम सुपर फास्फेट + 50 ग्राम पोटाश प्रति गड्ढा की दर से डालें तथा इसके तीन महीने बाद 100 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढा का पुन: देना चाहिए।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
सजहन की खेती में खरपतवार रोकथाम के लिए आवश्यकता अनुसार निराई गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई
खेत में पौधों की रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए, पहली सिंचाई के एक हफ्ते बाद दूसरी सिंचाई व बाकी सिंचाई हर 15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए, फूल लगने के समय खेत ज्यादा सूखा या ज्यादा गीला रहने पर दोनों ही अवस्था में फूल के झड़ने की समस्या होती है।
Harvesting & Storage
फल की तुड़ाई
वर्ष में दो बार फल देने वाले सहजन की किस्मों की तुड़ाई सामान्यतया फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर में होती है। सहजन की तुड़ाई बाजार और मात्रा के अनुसार 1-2 माह तक चलता है। सहजन के फल में रेशा आने से पहले ही तुड़ाई करने से बाजार में मांग बनी रहती है और इससे लाभ भी ज्यादा मिलता है।
उत्पादन
प्रत्येक एक साल में एक पौधे से 65-70 सैंटीमीटर लंबा और औसतन 6.3 सैंटीमीटर मोटा, 200-400 फल 40-50 किलोग्राम की उपज मिलती है।
Crop Related Disease
Description:
लक्षण स्पोडोटेपेरा लिटुरा (Spodotpera litura) के लार्वा के कारण होते हैं। वयस्क पतंगों में भूरे-भूरे रंग के शरीर होते हैं और सफेद रंग के साथ भिन्न होते हैं किनारों पर लहरदार निशान।Organic Solution:
चावल की भूसी, गुड़ या ब्राउन शुगर पर आधारित चारा घोल को शाम के समय मिट्टी में वितरित किया जा सकता है। नीम के पत्तों या गुठली के पौधे के तेल के अर्क और पोंगामिया ग्लबरा (Pongamia glabra) बीजों के अर्क स्पोडोप्टेरा लिटुरा लार्वा के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी होते हैं। उदाहरण के लिए, अज़ादिराच्टिन 1500 पीपीएम (5 मिली/ली) या एनएसकेई 5% अंडे के चरण के दौरान इस्तेमाल किया जा सकता है और अंडे को अंडे सेने से रोकता है।Chemical Solution:
युवा लार्वा को नियंत्रित करने के लिए, कई प्रकार के कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, क्लोरपाइरीफोस, एमेमेक्टिन, क्लोरेंट्रानिलिप्रोल, इंडोक्साकार्ब या बिफेंथ्रिन पर आधारित उत्पाद। चारा समाधान भी पुराने लार्वा की आबादी को प्रभावी ढंग से कम करते हैं।Description:
वर्षा कम होने पर इसका संक्रमण अधिक होता है। ये काले रंग के छोटे छोटे कीड़े होते हैं जो पौधों को चूसते और पीला करते हुए चूसते हैं। वे पौधे पर एक चिपचिपा द्रव (हनीड्यू) स्रावित करते हैं, जो एक कवक द्वारा काला हो जाता है।Organic Solution:
कोकोसिनेला शिकारियों जैसे कोसीसिल्ला सेज़्प्टम्पुक्टेटा, मेनोचाइल्स सेक्समेकुलता एफिड की आबादी को कम करने में प्रभावी होगा।Chemical Solution:
जैसे ही लक्षण दिखते हैं, इसे rogor @ 300ml / एकड़ या Imidacloprid 17.8% SL @ 80 मिली / एकड़ या मिथाइल डेमेटन 25% EC @ 300 ml / एकड़ के छिड़काव से नियंत्रित किया जा सकता है।Moringa (Drumstick/मोरिंगा) Crop Types
You may also like
No video Found!
Frequently Asked Questions
Q1: आप मोरिंगा की खेती कैसे करते हैं?
Ans:
मोरिंगा की खेती के लिए हल्की और रेतीली मिट्टी वाला क्षेत्र चुनें, मिट्टी या पानी से भरा हुआ क्षेत्र न हो। पेड़ लगा ने के लिए 1 फीट गहरा और 1 फीट वर्गाकार गढ़ा खोदे। ढीली मिट्टी के साथ छिद्रों को वापस भरें। खाद भी डाले, खाद पेड़ को बेहतर बढ़ने में मदद करेगा, भले ही मोरिंगा के पेड़ खराब मिट्टी में बढ़ सकते हैं।Q3: मोरिंगा के पेड़ के लिए सबसे अच्छा उर्वरक क्या है?
Ans:
मोरिंगा के पेड़ों को आमतौर पर किसी भी प्रकार के उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन अगर आपको थोड़ी अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है, तो फॉस्फोरस जड़ विकास में सहायता करेगा, और थोड़ा देशी गोबर का खाद डाल सकते हो। और पत्ती वृद्धि के साथ नाइट्रोजन मदद करेगा। अमोनियम सल्फेट भी आपके पेड़ को बढ़ने में मदद कर सकता है। पानी के साथ उदार रहें, लेकिन बहुत ज्यादा पानी न डालें।