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Rajnigandha (रजनीगंधा)

Basic Info

आप जानते हैं रजनीगंधा एक बारहमासी पौधा है जिसका उपयोग इंत्र के निर्माण में किया जाता है। इसका नाम लैटिन भाषा ट्वरोज से निकला है। इसका हिन्दी नाम “रजनीगंधा” है। रजनीगंधा को "निशीगंधा" और "स्वोर्ड लिल्ली" के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सदाबाहार जड़ी बूटी वाला पौधा है जिस में फूल की डंठल 75-100 सैं.मी. लम्बी होती हैजो 10-20 चिमनी के जैसे आकार के सफेद रंग के फूल उत्पन करता है। इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन इत्र, आवश्यक तेलों और पान मसाला आदि के उत्पादन में किया जाता है।इससे प्राप्त आवश्यक तेल का उपयोग विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं, पेय पदार्थ, डेंटल क्रीम और माऊथ वाश के निर्माण मे किया जाता है। धार्मिक समारोह, शादी समारोह माला सजावट और विभिन्न पारंपरिक रस्मों में फूलों का उपयोग किया जाता है। इससे प्राप्त कंद का उपयोग प्रमेह के उपचार में किया जाता है।

Seed Specification

बुवाई का समय
बुवाई के लिए मार्च-अप्रैल महीने का समय उचित है।

फासला
रोपण के लिए 45 सैं.मी. फासले पर 90 सैं.मी. चौड़े नर्सरी बैड तैयार करें।

बीज की गहराई
कंद को 5-7 सैं.मी. गहराई पर मिट्टी में बोयें।

बुवाई का तरीका
बुवाई प्रजनन विधी या कंदो द्वारा प्रवर्धन विधि से की जाती है।

प्रजनन विधी
रजनीगंधा फसल का प्रजनन कंदो द्वारा किया जाता है। 1.5-2.0 सैं.मी. व्यास और 30 ग्राम से ज्यादा भार वाली कंद प्रजनन के लिए प्रयोग की जाती है। एक तुड़ाई के लिए, एक साल पुरानी फसल की 1 या 2 या 3 कंद या कंदो के एक गुच्छे को एक जगह पर बोयें और एक साल से ज्यादा पुरानी फसल की 1 या 2 कंद एक जगह पर बोयें। दोहरी तुड़ाई के लिए एक साल पुरानी फसल की एक कंद ही बोयें।

बीज की मात्रा
प्रति एकड़ के लिए 2100-2500 कंद का प्रयोग करें।

बीज का उपचार
बुवाई से पहले कंदो को थीरम 0.3% या कप्तान 0.2% या एमीसान 0.2% या बेनलेट 0.2% या बाविस्टिन 0.2% @ 2 के साथ उपचार करें, ताकि मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाया जा सकें।

Land Preparation & Soil Health

अनुकूल जलवायु
रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है, किन्तु यह पूरे वर्ष मध्यम जलवायु में उगाया जाता है। भारत में समशीतोष्ण जलवायु में गर्म और आर्द्र जगहों पर इसकी अच्छी वृद्धि होती है। 20 से 350 सेंटीग्रेट तापमान रजनीगंधा के विकास और वृद्धि के लिए उपयुक्त होता है। हल्के धूप युक्त खुली जगहों में इसे अच्छी प्रकार से उगाया जा सकता है। छायादार स्थान इसके लिए उपयुक्त नहीं होता है।

भूमि का चयन
रजनीगंधा की फसल को सभी प्रकार की मिट्टी में विकसित किया जा सकता है। जल निकासी के साथ चिकनी बुलई रेतीली मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी का pH मान 6 से 7 होना चाहिए।

खेत की तैयारी
रजनीगंधा की खेती के लिए, ज़मीन को अच्छी तरह से तैयार करें। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए, 2-3 बार जोताई करना आवश्यक है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए अंतिम जुताई पाटा लगाकर करना चाहिए। रोपण के समय, 10-12 टन गोबर की खाद मिट्टी में मिलाएं।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
फसल के अच्छे विकास के लिए रोपाई के पहले खेत में 10-12 टन/एकड़ की दर से FYM (गोबर की खाद)दी जानी चाहिए । रासायनिक उर्वरक के रूप में एन.पी.के. 100:50:50 के अनुपात में खुराक अच्छे विकास के लिए देना चाहिए। बराबर-बराबर मात्रा में नाइट्रोजन तीन बार देना चाहिए। एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के करीब 60 दिन बाद और तीसरी मात्रा तब दें जब फ़ूल निकलने लगे। (लगभग 90 से 120 दिन बाद) FYM , फ़ास्फ़ोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दें।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण 
खरपतवार की रोकथाम के लिए रोपण के पहले चरण में निंदाई की आवश्यकता होती है। नियमित रूप से निंदाई करना चाहिए।

सिंचाई
कंदो की रोपाई के पहले सिंचाई करना चाहिए और इसके बाद अगली सिंचाई तब तक नहीं करना चाहिए जब तक कंद अंकुरित न हो जाये। अंकुरण होने के बाद और 4-6 पत्ते निकलने पर हफ्ते में एक बार सिंचाई करें। मिट्टी और जलवायु के आधार पर, 8-12 सिंचाइयां करनी आवश्यक है।

Harvesting & Storage

फसल की कटाई
रजनीगंधा के कंद लगाने के बाद 4 से 5 महीने के अंदर इसमें फूल आने लगते हे अच्छी तरह से तैयार पौधे फूलो को शाम के समय काट लेना चाहिये। 

कटाई के बाद
कटाई के बाद फूलो को समय पर बाजार में भेज देना चाहिये इत्र बनाने के लिए फूलो को समय पर आसवन इकाई पर भेज देना चहिये।

भडांरण
रजनीगंधा को सीमित हवा परिसंचरण के साथ शुष्क वातापरण में संग्रहित किया जाना चाहिए।

उत्पादन
अच्छी खेती से 80 से 120 क्विंटल खुले फूल का उत्पादन होता है। यह उत्पादन किस्म पर भी निर्भर करता है। प्रति एकड़ 100 क्विंटल कंदो (बल्व) का उत्पादन होता है।

Rajnigandha (रजनीगंधा) Crop Types

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