Tulsi (तुलसी)
Basic Info
परिचय: प्राचीन समय से ही तुलसी एक पवित्र पौधा माना जाता है। जिसे हर घर में लगाकर पूजा आदि की जाती है तुलसी का आयुर्वेद में बहुत बड़ा स्थान है। तुलसी से बहुत सारे रोगों का उपचार किया जाता है। इसका प्रतिदिन सेवन करने से कई प्रकार के रोगों से राहत मिलती है। वर्तमान में इसे औषधीय खेती के रूप में किया जाने लगा है। यह पुरे भारत में पाया जाता है। इसकी कई प्रकार की प्रजातियां होती है जैसे : ओसेसिम बेसिलिकम, ग्रेटीसिमम, सेकटम, मिनिमम, अमेरिकेनम।
विवरण: तुलसी भारत के सभी राज्यों में पाया जाने वाला पौधा है। तुलसी का पौधा 1800 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है। यह भारत में उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी बंगाल राज्यों में इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है। तुलसी मुख्य रूप से 3 तरह की होती है। पहली हरी पत्ती वाली, दूसरी काली पत्ती वाली और तीसरी कुछ कुछ नीली, बैगनी रंग की पत्तियों वाली खास बात यह है कि यह कम सिंचाई वाली और कम से कम रोगों व कीटों से प्रभावित होने वाली फसल होती है।
Seed Specification
बुवाई का समय
फरवरी के तीसरे हफ्ते में नर्सरी बैड तैयार करें।
बीज की मात्रा
तुलसी की खेती के लिए 750 ग्रा. – 1 किग्रा. बीज का प्रयोग एक हेक्टयेर में करें।
बीज द्वारा बुवाई
तुलसी का प्रसारण बड़े पैमाने पर बीज द्वारा ही किया जाता है। जमीन की 15 – 20 सेमी. गहरी खुदाई कर के खरपतवार आदि निकाल तैयार करा लेना चाहिए। 15 टन प्रति हे. की दर से गोबर की सड़ी खाद अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। 1 मी. X 1 मी. आकार की जमीन सतह से उभरी हुई क्यारियां बना कर उचित मात्र में कंपोस्ट एवं उर्वरक मिला दिन चाहिए। 750 ग्रा. – 1 किग्रा. बीज एक हेक्टयेर के लिए पर्याप्त होता है। बीज की बुवाई 1:10 के अनुपात में रेत या बालू मिला कर 8-10 सेमी. की दूरी पर पक्तियां में करनी चाहिए। बीज की गहराई अधिक नहीं होनी चाहिए। जमाव के 15-20 दिन बाद 20 कि./ हे. की दर से नेत्रजन डालना उपयोगी होता है। पांच- छह सप्ताह में पौध रोपाई हेतु तैयार हो जाती है।
शाखाओं द्वारा बुवाई
तुलसी का प्रसारण शाखाओं को काटकर भी किया जा सकता है। 10-15 ऐसी लम्बी शाखायें काटकर उन्हें छाया में रखकर सुबह-शाम हजारे से पानी देते रहें। एक महीने में इन शाखाओं से जड़ें विकसित हो जाती हैं। और पत्तियाँ विकसित होने लगती हैं। जब शाखायें 5-10 सेमी की हो जायें तो इसके बाद इनकी रोपाई की जा सकती है।
रोपाई का तरीका
1 हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 200-300 ग्राम बीजों से तैयार पौध सही होतेहैं. बीजों को नर्सरी में मिट्टी के 2 सेंटीमीटर नीचे बोना चाहिए. बीज अमूमन 8-12 दिनों में उग आते हैं. इस के बाद रोपाई के लिए 4-5 पत्तियों वाले पौधे लगभग 6 हफ्ते में तैयार हो जाते हैं. प्रति हेक्टेयर अधिक उपज और अच्छे तेल उत्पादन के लिए लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर जरूर रखनी चाहिए. तुलसी की रोपाई के लिए केवल स्वस्थ पौधे का चुनाव करना चाहिए। ताकि पैदावार अच्छी हो।
बीज उपचार
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारीयों से रोकथाम के लिए, बुवाई से पहले मैंकोजेब 5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीजों का उपचार करें|
Land Preparation & Soil Health
अनुकूल जलवायु
इसके लिए उष्ण कटिबंध एवं कटिबंधीय दोनों तरह जलवायु अनुकूल होती है।
भूमि
तुलसी की खेती आमतौर पर सामान्य मिट्टी में आसानी से हो जाती है। मोटेतौर पर कहें तो अच्छे जल निकास वाली भुरभुरी व समतल बलुई दोमट, क्षारीय और कम लवणीय मिट्टी में इस की खेती आसानी से की जा सकती है।
खेत की तैयारी
सब से पहले गहरी जुताई वाले यंत्रों से 1 या 2 गहरी जुताई करने के बाद पाटा लगा कर खेत को समतल कर देना चाहिए। इस के बाद सिंचाई और जलनिकास की सही व्यवस्था करते हुए सही आकार की क्यारियां बना लेनी चाहिए।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
तुलसी के पौधे के तमाम भागों को ज्यादातर औषधीय इस्तेमाल में लिया जाता है, इसलिए बेहतर होगा कि रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न करें या बहुत कम करें। 1 हेक्टेयर खेत में 10-15 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद या 5 टन वर्मी कंपोस्ट सही रहती है। यदि रासायनिक उर्वरकों की जरूरत पड़ ही जाए तो मिट्टी की जांच के अनुसार ही इन का इस्तेमाल करना चाहिए। सिफारिश की गई फास्फोरस और पोटाश की मात्रा जुताई के समय व नाइट्रोजन की कुल मात्रा 3 भागों में बांट कर 3 बार में इस्तेमाल करनी चाहिए।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
तुलसी की खेती में खरपतवार रोकथाम के लिए आवश्यकता अनुसार निराई गुड़ाई करें।
सिंचाई
पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। उस के बाद मिट्टी की नमी के मुताबिक सिंचाई करनी चहिए। वैसे गरमियों में हर महीने 3 बार सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है। बरसात के मौसम में यदि बरसात होती रहे, तो सिंचाई की कोई जरूरत नहीं पड़ती है।
Harvesting & Storage
कटाई
जब पौधों में पूरी तरह फूल आ जाएं तो रोपाई के 3 महीने बाद कटाई का सही समय होता है। ध्यान रहे कि तेल निकालने के लिए पौधे के 25-30 सेंटीमीटर ऊपरी शाकीय भाग की कटाई करनी चाहिए।
पैदावार
इसके फसल की औसत पैदावार 20 - 25 टन प्रति हेक्टेयर तथा तेल का पैदावार 80-100 किग्रा. हेक्टेयर तक होता है।
आय – व्यय विवरण
प्रति हेक्टेयर व्यय – रू. 10,500
तेल का पैदावार – 85 किलो प्रति हेक्टेयर
तेल की कीमत – 450 – रूपया प्रति किलो – 85 X 450 = 38,250
शुद्ध लाभ = रू. 38, 250 – 10,500 = 27,750