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Mulethi (मुलेठी/लिकोरिस)

Basic Info

आप जानते है मुलेठी को सदाबहार झाड़ीनुमा पौधा कहा जाता है। मुलेठी एक गुणकारी जड़ी बूटी है। आमतौर पर लोग इसका इस्तेमाल सर्दी-जुकाम या खांसी में आराम पाने के लिए करते हैं। गले की खराश में इसका उपयोग करना सबसे ज्यादा असरदार होता है। हालांकि मुलेठी के फायदे सिर्फ इतने ही नहीं हैं बल्कि इसका मुख्य इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में किया जाता है। मुलेठी पौधे की औसत ऊंचाई लगभग 120 सेमी के आसपास हो सकती है, जबकि इसके फूलों का रंग जामुनी या सफेद नीले रंग का हो सकता है। फलों में बीजों की मात्रा अधिक होती है। स्वाद में इसके जड़ मीठे होते हैं। यह दुनिया भर में ग्रीक, चीन, मिस्र और भारत में पाया जाता है। इसका मूल एशिया और दक्षिणी यूरोप के कुछ हिस्से हैं। भारत में पंजाब और उप हिमालय में इसकी खेती की जाती है।

Seed Specification

बुवाई का समय
जनवरी - फरवरी के महीने में नर्सरी तैयार करें। फरवरी-मार्च या जुलाई-अगस्त के महीने में बुवाई की जा सकती है।

दुरी
रोपाई के लिए बिच की दुरी 90x45 सैं.मी. होना चाहिए।

बुवाई का तरीका 
बुवाई सीधे या पनीरी लगा कर की जा सकती है।

रोपण का तरीका
बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। प्रजनन के लिए तने या जड़ को लें। बुवाई के लिए 15-25 सैं.मी. लंबी जड़ या तना जिसकी 2-3 आंखे हों, लें। मुख्य खेत में बुवाई सीधे की जाती है।

बीज की मात्रा
पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए 100-120 किलो प्रति एकड़ तने के भागों का प्रयोग करें| बैड की गहराई 6-8 सैं.मी. होनी चाहिए।

Land Preparation & Soil Health

अनुकूल जलवायु 
मुलेठी की खेती के लिए गर्म और शुष्क दोनों जलवायु उपयुक्त होती है। मुलेठी के पौधे गर्मियों के मौसम में अच्छे से विकास करते हैं, जबकि सर्दी का मौसम इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त नही होता। मुलेठी की खेती के लिए 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले भाग उपयुक्त होते हैं। मुलेठी के पौधों को विकास करने के लिए सूर्य की सीधी धूप की जरूरत होती है। इसलिए इसे छायादार जगहों में नही उगाना चाहिए। इसके लिए जहाँ वार्षिक तापमान 25 डिग्री सेल्सियस (ग्रीष्म) और सर्दियों के मौसम में 5 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है।

भूमि का चयन
मुलेठी की खेती लगभग सभी तरह की मिट्टी पर हो सकती है, लेकिन रेतीली-चिकनी मिट्टी इसकी उपज के लिए उत्तम है। और यह रेतली दोमट उपजाऊ मिट्टी, जिसका pH 6-8.2 हो , में बढ़िया पैदावार देती है|

खेत की तैयारी
रोपाई से पहले खेत की अच्छी तरह हल या कल्टीवेटर के द्वारा 2-3 गहरी जुताई करे। अंतिम जुताई के समय पाटा लगाकर खेत को समतल और भुरभुरा कर दें। ध्यान रहे खेत में जल भराव की समस्या नही होनी चाहिए। और भूमि खरपतवार मुक्त रखें।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
औषधीय पौधों की खेती रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना करना चाहिए। अच्छे विकास लिए जैविक खाद जैसे कि फार्म यार्ड खाद (FYM), वर्मी-खाद, हरी खाद आदि का उपयोग प्रजातियों की आवश्यकता के अनुसार किया जा सकता है।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण 
खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर आवश्यकता अनुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए।

सिंचाई
गर्मियों के सूखे मौसम में 30-45 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें और सर्दियों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फसल को कुल 7-10 सिंचाइयां दी जा सकती हैं। पानी की स्थिरता से बचा जाना चाहिए क्योंकि इससे जड़ गलन की बीमारी होती है।

Harvesting & Storage

फसल की कटाई
ढ़ाई या तीन साल में पौधा उपज देना शुरू कर देता है। उद्देश्य के अनुसार कटाई की जाती है। जैसे स्थानीय बाजार में ही भेजनी है या दूर के स्थानों पर। कटाई मुख्यत: सर्दियों (नवंबर से दिसंबर) महीने में की जाती है ताकि उच्च मात्रा में ग्लाइसिराइजिक एसिड प्राप्त किया जा सके। उत्पाद तैयार करने के लिए जड़ों का प्रयोग किया जाता है।

भण्डारण
कटाई के बाद जड़ों को धूप में सुखाया जाता है फिर छंटाई की जाती है। जड़ों को हवा रहित बैग में डाला जाता है। सूखी जड़ों से कई तरह के उत्पाद जैसे चाय, पाउडर आदि बनाए जाते हैं।

उत्पादन 
मुलेठी की विभिन्न किस्मों का प्रति एकड़ औसतन उत्पादन 30 से 35 किवंटल के आसपास पाया जाता है। जिसका बाज़ार भाव 130 से 180 रूपये प्रति किलो के बीच पाया जाता है।

Mulethi (मुलेठी/लिकोरिस) Crop Types

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