सोयाबीन की फसल की बुवाई और देखभाल, बेहतर पैदावार के लिए इन बातों का रखना होगा ध्यान
सोयाबीन की फसल की बुवाई और देखभाल, बेहतर पैदावार के लिए इन बातों का रखना होगा ध्यान
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सोयाबीन न सिर्फ प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है, बल्कि यह कई शारीरिक गुणों को भी प्रभावित करता है। आधुनिक शोध में पाया गया है कि सोया प्रोटीन मानव रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में सहायक है। मूंगफली और सरसों के तेल के बाद सोयाबीन तेल की खपत सबसे ज्यादा हो गई है।

सोयाबीन की खेती देश के कई राज्यों में की जाती है, मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना में। इन राज्यों में लाखों किसान इसकी खेती से जुड़े हुए हैं। सोयाबीन की खेती के लिए जून-जुलाई का महीना सबसे अच्छा समय है।

सोयाबीन की फसल के लिए शुष्क गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके बीज 25" सेल्सियस पर 4 दिन में अंकुरित हो जाते हैं, जबकि इससे कम तापमान पर बीज को अंकुरित होने में 8-10 दिन लगते हैं। इसलिए 60-65 सेमी वर्षा वाले स्थान सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। सोयाबीन की खेती के लिए बुआई करें सोयाबीन की बुआई मैदानी क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में मध्य जुलाई से मध्य जुलाई तक सर्वोत्तम होती है।

पौधों के जमने के बाद अधिक पानी से सोयाबीन के पौधों को कोई नुकसान नहीं होता है। इन पौधों की जड़ों में एरेन्काइमा ऊतक का निर्माण होता है। ये जड़ों को हवा प्रदान करते हैं। फलस्वरूप उनकी श्वसन एवं अन्य क्रियाएँ आवश्यकतानुसार चलती रहती हैं। फूल आने से 2 सप्ताह पहले सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, ताकि पौधों पर अधिक से अधिक फलियाँ बन सकें।

बीज का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बीज अधिक पुराना न हो, क्योंकि एक वर्ष के बाद इसकी अंकुरण क्षमता कम हो जाती है। छोटा दाना 60-65 किलो, मध्यम दाना 70-75 किलो। तथा मोटा अनाज 80-85 किग्रा/हेक्टेयर पर्याप्त होता है।

सोयाबीन की बुआई पंक्तियाँ 45×5 सेमी. की दूरी पर करना चाहिए। बुआई से पहले बीज को 2 ग्राम थाइरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम/किग्रा से उपचारित करना चाहिए। बीज का उचित उपचार करना चाहिए। इसके बाद बीजों को राइजोबियम और पीएसबी जीवाणु टीके से उपचारित करें। 

सोयाबीन की उत्तर मैदानी क्षेत्रों के लिए पी.के. 416, पूसा 16, पी.एस. 564, पी. एस. 1024, पी. एस. 1042, पी.एस. 1024. पी. एस. 1241, पी.एस. 1347. डी एस. 9814. डी एस. 9712. एस.ल. 295, एस.एल. 525, 
मध्य भारत क्षेत्र के लिए एन. आर.सी. 7. ए.आर.सी. 37, जे.एस. 80-21, समृद्धि, एम.ए.यू.एस. 81. जे.एस. 93-05, जे.एस. 95-60, जे.एस. 335, 
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए बिरसा सोयाबीन 1, इंदिरा सोया 9. प्रताप सोया 9. एम.ए.यू.एस. 71. जे.एस. 80-21 एवं 
उत्तर पहाड़ी क्षेत्र के लिए शिलाजीत, पूसा 16. वी.एल. सोया 2. वी.एल. सोया 47, हरा सोया, पालम सोया, पंजाब, पी.एस. 1241, पी.एस. 1092, पी.एस. 1347, वी.एस.एस. 59. वी.एस.एस. 63. आदि संस्तुत प्रजातियां हैं।

आईएआरआई पूसा के अनुसार, सोयाबीन की कई उन्नत किस्में हैं जिनमें पूसा 12, एसएल-952 और एनआरसी 130 प्रमुख उन्नत किस्में हैं। जबकि मध्य प्रदेश में बुआई के लिए जेएस 20-34, जेएस 116, जेएस 335 और एनआरसी 128 आदि उन्नत किस्में मानी जाती हैं।

अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुआई से लगभग 20-25 दिन पहले लगभग 5-10 टन/हेक्टेयर अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। सोयाबीन की फसल में 20-25 किग्रा. नाइट्रोजन, 60-80 किग्रा. फास्फोरस, 40-50 कि.ग्रा. पोटाश एवं 20-25 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर पोषक तत्वों की मात्रा में देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के बाद एवं अंकुरण से पहले 4 लीटर एलाक्लोर (50 ईसी) या 1 किलोग्राम फ्लुओक्लोरोलिन या ट्राइफ्लोरालिन डालें। या पेंडीमेथिलीन 1 कि.ग्रा. या क्लोमोज़ोन 1 कि.ग्रा. इस मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

किसानों को बुआई के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  • सोयाबीन के बीज का अंकुरण 70 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए। यदि उपज कम हो तो बुआई के समय बीज दर तदनुसार बढ़ा देनी चाहिए।
  • बुआई से पहले सोयाबीन के बीज को थीरम, कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।
  • बुआई मेड़ एवं नाली प्रणाली या चौड़ी क्यारियों में करनी चाहिए।
  • कतारों में बोयें। एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी: 35-45 सेमी, पौधों के बीच की दूरी: 4-5 सेमी, बीज की गहराई 3-4 सेमी होनी चाहिए।