मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का सबसे सस्ता और अच्छा तरीका है हरी खाद
मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का सबसे सस्ता और अच्छा तरीका है हरी खाद
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रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से न केवल लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यह किसानों के सामने सबसे गंभीर समस्या है। इसलिए रासायनिक उर्वरकों के विकल्प की ओर बढ़ना समय की मांग है। ऐसा करने से खेती की लागत कम करके प्रति एकड़ फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है। हरी खाद से तात्पर्य उन पत्तेदार फसलों से है जो तेजी से बढ़ती हैं। ऐसी फसलों को फल लगने से पहले ही जोतकर मिट्टी में दबा दिया जाता है।

हरी खाद खेत को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, जस्ता, तांबा, मैंगनीज और लौह आदि तत्व प्रदान करती है। रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में जैविक उर्वरकों जैसे गोबर, कम्पोस्ट, हरी खाद आदि का उपयोग किया जा सकता है। इनमें हरी खाद सबसे सरल एवं सर्वोत्तम साधन है। पशुधन में कमी के कारण गोबर की उपलब्धता पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है।

हरी खाद मिट्टी के लिए वरदान है। यह मिट्टी की संरचना में सुधार करता है और मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करता है। ढैंचा की बुआई के 20 से 25 दिन बाद पौधों में गांठें बनना शुरू हो जाती हैं। नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है। 45 दिन की फसल में जड़ों में बनने वाली गांठों की संख्या सर्वाधिक होती है। उस समय फसल को मिट्टी में मिलाने का सबसे अच्छा समय होता है।


ढैंचा की खेती के लिए बीज की मात्रा

एक एकड़ के लिए 12 किलोग्राम ढैंचा बीज पर्याप्त होता है। उचित बीज दर से अधिक या कम बीज का प्रयोग करने से हरी खाद का पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता है।

ढैंचा की खेती के लिए बुआई का समय

रबी फसल की कटाई और खरीफ फसल की बुआई के बीच का समय ढैंचा के लिए सबसे अच्छा समय है। इस दौरान खेत अधिकतर खाली रहते हैं।

हरी खाद की फसलें:- सनई, ढेंचा, उर्द, लोबिया, बरसीम, मूंग सैंजी, ग्वार इत्यादि ।

हरी खाद के फायदे

हरी खाद से कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है। फसलों के उत्पादन में लाभ होता है। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ एवं उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। भूमि की जल धारण क्षमता में सुधार होता है। मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार होता है।

ढैंचा की हरी खाद से फास्फोरस, पोटाश, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, लोहा, तांबा, जस्ता, मैंगनीज आदि आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व मिलने से भूमि उपजाऊ हो जाती है। ढैंचा की हरी खाद से प्रति एकड़ 22 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन भी प्राप्त होती है। इससे भूमि की संरचना में सुधार होता है। हरी खाद के बाद बोई जाने वाली फसलों में नाइट्रोजन उर्वरकों की मात्रा एक तिहाई तक कम की जा सकती है।