करेला की उन्नतिशील खेती
डॉ लाल विजय सिंह1 , डॉ. अमित कुमार सिंह1, अमित सिंह2, विकाश सिंह सेंगर3
- (सहायक अध्यापक, उद्यान विभाग) जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया (यूपी)
- (सहायक अध्यापक) शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून
- (सहायक अध्यापक) शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून
बेल वर्गीय सब्जियों में करेला का प्रमुख स्थान है। करेला स्वाद में बहुत तीखा तथा कड़वा होता है परंतु उच्च पोषक तत्व तथा औषधीय गुणों से परिपूर्ण होने के कारण इस सब्जी का मानव आहार में बहुत अधिक महत्व है। करेला में लोहा, विटामिन ए, बी तथा सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है यह गठीया तथा मधुमेह रोग के लिए बड़ा उपयोगी है। करेले की सब्जी गर्मियों के दिनों में ठंडी तथा दस्तवार होती हैं। इसमें 'मोमोर्सीडीन' नामक रसायन पाया जाता है जिसके कारण स्वाद कड़वा होता है। इस रसायन की उपस्थिति के कारण मधुमेह रोगियों के उपचार में इसका प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया जाता है। इसके फलों का प्रयोग रेशेदार, भरवा, या तले हुए शाक के रूप में किया जाता है। इस के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर धूप में सुखाकर रख लिए जाते हैं। जिन्हें बाद में बेमौसम की सब्जी के रूप में उपयोग में लिया जाता है और इसको कड़ी में डालकर भी खाया जाता है। करेला की खेती विश्व के उष्णकटिबंधीय एवं उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। भारत के लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है। महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु करेला उत्पादन के प्रमुख राज्य हैं। करेला का जन्म स्थान विश्व के उष्ण (Moxico) को माना जाता है। भारत में इसकी खेती काफी प्राचीन समय से चली आ रही है। इसकी जंगली प्रजातियां आज भी हमारे देश में उगती हुई देखी जाती हैं।
पोषक तत्व
करेला एक गुणकारी सब्जी है इसमें लोहा व विटामिन्स प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
पोषक तत्व |
छोटा करेला |
बड़ा करेला |
नमी |
83.20gm |
94.20gm |
प्रोटीन
|
2.10gm |
1.20gm |
वसा
|
1.00gm |
0.20gm |
खनिज पदार्थ |
1.40gm
|
0.80gm |
रेशा
|
4.20gm |
0.80gm |
कार्बोहाइड्रेट
|
9.80gm |
4.20gm |
कैल्शियम |
50.00-mg |
20.00mg |
मैग्नीशियम |
21.00mg |
17.00mg |
फास्फोरस
|
14.00mg |
70.00mg |
लोहा
|
9.40mg |
1.80mg |
सोडियम
|
2.50mg |
17.80mg |
पोटैशियम
|
171.00mg |
152.00mg |
तांबा
|
0.19mg |
0.18mg |
मृदा एवं जलवायु
करेला सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है। परंतु अच्छे जल निकास वाली दोमट एवं रेतीली मृदा उपयुक्त होती है जिसका पी.एच. 6.5 - 7.00 होना चाहिए। करेले के सफल उत्पादन के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है। बुवाई के समय कुछ ठंडी तथा पकड़ने के समय गर्म व शुष्क जलवायु की अवस्था आवश्यकता होती है। लंबी अवधि तक गर्म मौसम 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूलतम होता है।
किस्म
करेला की अनेक उन्नतशील किसने विकसित की जा चुकी हैं। जिसको हमारे देश में बहुतायत मात्रा में उगाया जाता है। जिससे हमें अच्छी उपज प्राप्त होती है। जैसे पूछा दो मौसमी, कोयंबटूर लौंग, अर्का हरित , पूसा विशेष आदि प्रजातियों का सफल उत्पादन किया जाता है।
बुवाई का समय व बीज की मात्रा
भारत के राज्य में अलग-अलग समय पर इसको उगाया जाता है। दक्षिण भारत में जून-जुलाई जबकि उत्तर भारत में जनवरी-फरवरी में उगाया जाता है। जब हम बीज की पौधे तैयार करके बोते हैं, तो उस स्थिति में 2.5 से 3.00 Kg बीज लगता है। परंतु जब बीच सीधे खेत में होते हैं तो 4 से 5.5 Kg बीज लगता है। तथा इसमें पौधे से पौधे की दूरी 60 से 90 सेंटीमीटर तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.0 से 1.5 मीटर रखते हैं।
खाद एवं उर्वरक
करेला में खाद एवं उर्वरक की मात्रा जलवायु किस अंग से प्रभावित होता है मृदा जांच के उपरांत ही खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए।
गोबर की खाद - 20-25 टन
नाइट्रोजन - 20 Kg
फास्फोरस - 30 Kg
पोटाश। - 30 Kg
गोबर की खाद को प्रथम जुलाई से पूर्व खेत में समान रूप से मिलाना चाहिए तथा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आखिरी मात्रा का मिश्रण अंतिम जुलाई के समय डालें। और नाइट्रोजन की शेष मात्रा फसल होने के समय टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालें।
फसल सुरक्षा
करेला की फसल में अनेक प्रकार के खरपतवार उग जाते हैं। जिससे अनेक प्रकार के कीट फसल को हानि पहुंचाते हैं। इससे बचाव के लिए निराई गुड़ाई और खरपतवार नाशी का प्रयोग करते रहते हैं। करेला में Red पम्पकिन बिटेल आदि कीट लगते है। इससे हम बचाव के लिए मेलाथियान का 2.02% घोल या मेटासिस्टाकस का 0.2% घोल का छिड़काव करके इससे बचाया जा सकता है। करेला में चूर्णी फफूंदी, मृदुरोमिल फफूंदी लग जाता है फसल को अधिक हानि होती है इसके बचाव के लिए हम 0.3% केरायेन तथा डायथीन इन 15 केजी 2.2 1% घोल का छिड़काव करते हैं।
उपज
करेले की उपज कई बातों पर निर्भर करती है। जिसमें भूमि की उर्वरा शक्ति, उगाई जाने वाली किस्में और फसलों की देखभाल आदि इसकी उपज हम 100 - 150 क प्रति हेक्टेयर ले सकते हैं अगर उपरोक्त विधि से खेती की जाये।