पपीता लगाने की सोच रहे हो तो 15 नवंबर से पूर्व लगाए अधिकतम लाभ पाए
पपीता लगाने की सोच रहे हो तो 15 नवंबर से पूर्व लगाए अधिकतम लाभ पाए

पपीता लगाने की सोच रहे हो तो 15 नवंबर से पूर्व लगाए अधिकतम लाभ पाए 

डॉ एस के सिंह
प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी), 
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना 
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी,
पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार

धान गेंहू की खेती करने वाले किसान खेती को लगातार घाटे का सौदा बता रहे हैं। सिंचाई, बीज और खाद के बढ़ते दाम और फसलों को बेचने के लिए आसान और सुलभ साधन न होने के कारण उनकी परेशानी लगातार बढ़ रही है। इन समस्याओं से सहमत होने के बाद भी कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर किसान बदलते समय के साथ परंपरागत खेती छोड़कर आधुनिक तकनीक से पपीता की व्यावसायिक खेती करें तो वे इसी खेती को मुनाफे का सौदा बना सकते हैं। इसके लिए उन्हें गेंहू-धान जैसी परंपरागत फसलों की बजाय फल-फूल और सब्जी की खेती करने पर विचार करना चाहिए। पपीते की खेती ऐसा ही एक उपाय है जिसके माध्यम से किसान प्रति हेक्टेयर तीन लाख रुपये प्रति वर्ष (सभी लागत खर्च निकालने के बाद) की शुद्ध कमाई कर सकते हैं। रेड लेडी पपीता की ही एक प्रजाति है जिसकी खेती किसानों को मालामाल बना सकती है। पपीते की खेती के लिए वैज्ञानिक इसे सबसे उपयुक्त मानते हैं। 
पपीता आम के बाद विटामिन ए का सबसे अच्छा स्रोत है। यह कोलेस्ट्रोल, सुगर और वजन घटाने में भी मदद करता है, यही कारण है कि डॉक्टर भी इसे खाने की सलाह देते हैं। यह आंखों की रोशनी बढ़ाता है और महिलाओं के पीरियड्स के दौरान दर्द कम करता है। पपीते में पाया जाने वाला एन्जाइम ‘पपेन’ औषधीय गुणों से युक्त होता है। यही कारण है कि पपीते की मांग लगातार बढ़ रही है। बढ़ते बाज़ार की मांग को देखते हुए लोगों ने इसकी खेती की तरफ ध्यान दिया है और सिर्फ एक दशक में पपीते की खेती तीन गुना बढ़ गई है। भारत पपीता उत्पादन में विश्व में पहले नंबर पर (प्रति वर्ष 56.39 लाख टन) है। इसका विदेशों में निर्यात भी किया जाता है।

 पपीते की फसल साल भर के अंदर ही फल देने लगती है, इसलिए इसे नकदी फसल समझा जा सकता है। इसको बेचने के लिए (कच्चे से लेकर पक्के होने तक) किसान भाइयों के पास लंबा समय होता है। इसलिए फसलों के उचित दाम मिलते हैं। इसे 1.8X1.8 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने के तरीके से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर तकरीबन एक लाख रुपये तक की लागत आती है, जबकि 1.25X1.25 मीटर की दूरी पर पेड़ लगाकर सघन तरीके से खेती करने पर दो लाख रुपये तक की लागत आती है। लेकिन इससे न्यूनतम तीन से चार लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की शुद्ध कमाई की जा सकती है।

पपीता उष्ण कटिबंधीय फल है। इसकी अलग-अलग किस्मों को जून-जुलाई से लेकर अक्टूबर-नवंबर या फरवरी-मार्च तक बोया जा सकता है। पपीते की फसल पानी को लेकर बहुत संवेदनशील होती है। बुवाई से लेकर फल आने तक भी इसे उचित मात्रा में पानी चाहिए। पानी की कमी से पौधों और फलों की बढ़त पर असर पड़ता है, जबकि जल की अधिकता होने से पौधा नष्ट हो जाता है। यही कारण है कि इसकी खेती उन्हीं खेतों में की जानी चाहिए जहां पानी एकत्र न होता हो। गर्मी में हर हफ्ते तो ठंड में दो हफ्ते के बीच इनकी सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए। पपीते की खेती में उन्नत किस्म की बीजों को अधिकृत जगहों से ही लेना चाहिए। बीजों को अच्छे जुताई किए हुए खेतों में एक सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। बीजों को नुकसान से बचाने के लिए कीटनाशक-फफूंदनाशक दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए। पपीते का पौधा लगाने के लिए 60X60X60 सेंटीमीटर का गड्ढा बनाया जाना चाहिए। इसमें उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फोस्फोरस और पोटाश और देशी खादों को डालकर 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई का तैयार पौधा इनमें रोपना चाहिए। पपीते के बेहतर उत्पादन के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 30 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सबसे उपयुक्त होता है। इसके लिए सामान्य पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है। पपीते के पौधे में एफीड एवं सफेद मक्खी से फैलने वाला वायरस के द्वारा होने वाला पर्ण संकुचन रोग और रिंग स्पॉट रोग लगता है। इससे बचाव के लिए डाइमथोएट (2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में) के घोल का छिड़काव करना चाहिए। उचित सलाह के लिए हमेशा कृषि वैज्ञानिकों या कृषि सलाहकार केंद्रो के संपर्क में रहना चाहिए।

पपीते के दो पौधों के बीच पर्याप्त जगह होती है। इसलिए इनके बीच छोटे आकर के पौधे वाली सब्जियां किसान को अतिरिक्त आय देती हैं। इनके पेड़ों के बीच प्याज, पालक, मेथी, मटर या बीन की खेती की जा सकती है। केवल इन फसलों के माध्यम से भी किसान को अच्छा लाभ हो जाता है। इसे पपीते की खेती के साथ बोनस के रूप में देखा जा सकता है। पपीते की फसल के सावधानी यह रखनी चाहिए कि एक बार फसल लेने के बाद उसी खेत में तीन साल तक पपीते की खेती करने से बचना चाहिए क्योंकि एक ही जगह पर लगातार खेती करने से फलों का आकार छोटा होने लगता है।