हाइड्रोजेल का कृषि में उपयोग
हाइड्रोजेल का कृषि में उपयोग

हाइड्रोजेल का कृषि में उपयोग

ब्रजेश कुमार मिश्र (सह प्राध्यापक)1, अमित सिंह (सहायक प्राध्यापक)1 और विकास सिंह सेंगर (सहायक प्राध्यापक)2

कृषि विज्ञान विभाग,  महर्षि मारकंडेश्वर (सम विश्वविद्यालय ) मुल्लाना, अंबाला, हरियाणा, भारत
  1. कृषि विज्ञान विभाग,  शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून

हाइड्रोजेल का उपयोग:  हाइड्रोजेल मिट्टी में जैविक गतिविधियों को भी बढ़ाता है, जो जड़ क्षेत्र में ऑक्सीजन की उपलब्धता को बढ़ाती हैं। हाइड्रोजेल, बीज के अंकुरण तथा उसके उभरने की दर में भी सुधार करता है। हाइड्रोजेल, 30-40 प्रतिशत तक सिंचाई तथा उर्वरक के उपयोग में भी कमी लाता है। हाइड्रोजेल, मृदा अपरदन, तथा जल के सतही लीचिंग को भी रोकता है।

हाइड्रोजेल एक प्रकार का हाइड्रोफिलिक समूह के साथ क्रॉस-लिंक्ड पॉलीमर(बहुलक) है, जो पानी में घुले बिना ही, बड़ी मात्रा में जल अवशोषित करने की क्षमता रखता है। हाइड्रोजेल में, जल अवशोषण की क्षमता हाइड्रोफिलिक कार्यात्मक समूहों (Acrylamide, Acrylic acid acrylate, Arbo&ylic acid, etc.) के द्वारा ही उत्पन्न होती है। पॉलिमर हाइड्रोजेल वास्तव में, मिट्टी के माध्यम से मिट्टी की पारगम्यता, घनत्व, संरचना, बनावट और पानी के वाष्पीकरण तथा पानी के अंदर जाने की दर को प्रभावित करते हैं। तनाव के दौरान, हाइड्रोजेल पौधों को पानी और पोषक तत्व प्रदान करने का काम करते है।

कैसे हाइड्रोजेल काम करता  है: जब फिर से पानी के संपर्क में आता है, तो यह पानी को स्टोर करने की प्रक्रिया को दोहराता है। हाइड्रोजेल, मिट्टी में प्रथम इस्तेमाल के बाद 2-5 साल तक के लिए कारगर होता है तथा यह समय के साथ विघटित भी हो जाता है, जिससे मिट्टी के प्रदूषित होने के भी कोई संभावना नहीं होती है। हाइड्रोजेल 40-50 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भी सुगमता से कार्य कर सकता है। बीज अंकुरण, किसी भी पौधे के प्रारंभिक विकास में सबसे महत्वपूर्ण चरण माना जाता है। सफल अंकुरण पानी की उपलब्धता पर निर्भर करता है तथा मुख्य रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में मिट्टी के नमी के जरूरी स्तर को नियमित रूप से बनाये रखना आवश्यक होता है। हाइड्रोजेल पॉलिमर मिट्टी में अपनी जलधारण क्षमता के द्वारा, पौधों में जल तनाव की स्तिथि को आने से रोकता है तथा लंबे समय के बाद मुरझान बिंदु (विल्टिंग पॉइंट) तक पहुंचाता है।

हाइड्रोजेल तकनिकी के प्रमुख बिंदु: हाइड्रोजेल में अम्लीयता एवं क्षारियता का अनुपात बराबर होता है जिससे मिट्टी में यह उदासीन होता है और कोई हानिकारक प्रतिक्रिया नहीं करता है। उच्च तापमान में भी अच्छे से काम करता है, जिससे राजस्थान जैसे शुष्क एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है। यह अपनी क्षमता से कई गुना अधिक जल को धारण कर सकते है, जो इन्हें सूखे,शुष्क एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी बनाती है। हाइड्रोजेल मिट्टी के भौतिक गुणों जैसे- छिद्रता, घनत्व, जल धारण क्षमता, मिट्टी की पारगम्यता, तथा निकासी दर, आदि) को बेहतर बनाता है। हाइड्रोजेल वाष्पीकरण नियंत्रित करके मृदा एवं पौधे में नमी को बचाकर, फसलों की सिंचाई आवश्यकताओं को कम करता है। हाइड्रोजेल मिट्टी में जैविक गतिविधियों को भी बढ़ाता है, जो जड़ क्षेत्र में ऑक्सीजन की उपलब्धता को बढ़ाती हैं। हाइड्रोजेल, बीज के अंकुरण तथा उसके उभरने की दर में भी सुधार करता है। हाइड्रोजेल, 30-40 प्रतिशत तक सिंचाई तथा उर्वरक के उपयोग में भी कमी लाता है। हाइड्रोजेल, मृदा अपरदन, तथा जल के सतही लीचिंग को भी रोकता है।

हाइड्रोजेल कितनी मात्रा में उपयोग करना चाहिए:  सर्वोत्तम परिणाम के लिए हाइड्रोजेल को बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए। यह बेहतर अंकुरण और जड़ फैलाव में मदद करेगा।

हाइड्रोजेल उपयोग की कुछ अनुशंसायें:  सामान्यत: एक एकड़ के लिए 1.5 किग्रा. – 2.0 किग्रा. हाइड्रोजेल के उपयोग की सलाह दी जाती है लेकिन यह स्थान, मिट्टी एवं जलवायु पर भी निर्भर करता है। रेतीली मिट्टी के लिए, 2.5 किग्रा/एकड़ में 18 से 20 से.मी. तक की गहराई में हाइड्रोजेल का उपयोग किया जाना चाहिए। काली मिट्टी(क्ले) के लिए 2.0 – 2.5 किग्रा/एकड़ में 8-10 से.मी. तक की गहराई में हाइड्रोजेल का उपयोग किया जाना चाहिए। खेतो को तैयार करने के बाद, 2.0 किग्रा हाइड्रोजेल को 10-12 किग्रा महीन सूखी मिट्टी के साथ अच्छे से मिलाना चाहिए तथा सम्पूर्ण मिश्रण (मिट्टी तथा हाइड्रोजेल) को बीज के साथ ही खेतों में डालना चाहिए, जिससे अच्छे परिणाम मिलने की संभावना बढ़ जाती है। नर्सरी पौधों में, 2-5 ग्राम हाइड्रोजेल को 1 वर्ग मी. के आकार में 5 से.मी. मिट्टी की गहराई पर प्रयोग करना चाहिए। शुष्क एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए 4-6 ग्रा/किग्रा मिट्टी में हाइड्रोजेल का उपयोग किया जाना चाहिए।

हाइड्रोजेल तकनिकी की कुछ सीमाएं: खारी (नमकयुक्त) मिट्टी के लिए हाइड्रोजेल का उपयोग कुछ हद तक सीमित है, जो उसकी जल धारण क्षमता में कमी का कारण हो सकता है। हाइड्रोजेल की कीमत इसके उपयोग को सीमित बनाती है,क्यूंकि छोटे किसान द्वारा इसे खरीदने में आर्थिक समस्या एक प्रमुख कारण है। हाइड्रोजेल का प्रयोग आसुत जल साथ आदर्श माना गया है, जबकि वास्तविकता में सिचाई जल में विभिन्न प्रकार के नमक एवं रसायन होते है, जिससे उसकी क्षमता में कमी आती है। हाइड्रोजेल उपयोग के निष्कर्ष- भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, नई दिल्ली के द्वारा संचालित,विभिन्न राष्ट्रीय कृषि आधारित प्रोजेक्ट्स(विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्र में) में भी हाइड्रोजेल का सफल परिक्षण किया जा चुका है, जिसमे बिभिन्न रबी एवं खरीफ फसले शामिल है। हाइड्रोजेल के उपयोग से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में मिट्टी में सुधार होता है तथा मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है। हाइड्रोजेल फसल के बेहतर विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करता है। इस प्रकार, निकट भविष्य में, जल तनाव,सूखे,शुष्क एवं अर्ध- शुष्क क्षेत्रों के लिए हाइड्रोजेल एक उपयोगी साधन सिद्ध होने वाली तकनिकी है तथा पर्यावरणीय स्थिरता के साथ कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए आर्थिक द्रष्टि से भी यह तकनिकी संभव विकल्प हो सकता है।