मृदा सूर्यकरण एक ऊष्म-शीत पद्धति तकनीक खेती में लाभ
मृदा सूर्यकरण एक ऊष्म-शीत पद्धति तकनीक खेती में लाभ

मृदा सूर्यकरण एक ऊष्म-शीत पद्धति तकनीक खेती में लाभ

ब्रजेश कुमार मिश्र (सह प्राध्यापक)1, अमित सिंह (सहायक प्राध्यापक)1 और डॉ विकास सिंह सेंगर (सहायक प्राध्यापक)2

  1. कृषि विज्ञान विभाग,  महर्षि मारकंडेश्वर (सम विश्वविद्यालय ) मुल्लाना, अंबाला, हरियाणा, भारत
  2. कृषि विज्ञान विभाग,  शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून

मृदा सूर्यकरण : एक ऊष्म-शीत पद्धति तकनीक है। इस प्रक्रिया में खेत की जुताई के बाद उसपर खुली धूप पड़ने से खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती है और फसल की पैदावार अच्छी होती है। गेहूं की बुवाई करने जा रहे किसानों के लिए मृदा सूर्यकरण काफी कारगर साबित होता है। मृदा सौरीकरण वैसा ही है जैसे हम बीज लगाने से पहले बीजों का उपचार करने के लिए तमाम तरह की दवाओं का प्रयोग करते हैं। ठीक उसी तरह बोई जाने वाली फसल की जगह का उपचार एक ख़ास तकनीक से किया जाता है, जिसको मृदा सौर्यीकरण कहा जाता है। मृदा सौरीकरण से मिट्टी में पहले से मौजूद कीट-रोग, निमेटोड जीवांश और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। इससे बोई जाने वाली फसल कीट-रोगों से मुक्त रहती है और बंपर पैदावार देती है। मृदा सौरीकरण के लिए लम्बे दिनों तक वातावरण में गर्मी होनी चाहिए। जब तेज धूप और तापमान 40 सेंटीग्रेड से लेकर 45 सेंटीग्रेड हो उस वक्त मृदा सौरीकरण करना उचित रहता है। इसके लिए मई-जून का महीना सबसे सही रहता है।

मृदा सूर्यकरण की प्रक्रिया:  फसल की बुवाई से पहले खेत की जुताई अच्छे से कर लें। खेत की मिट्टी जब भुरभुरी हो जाए तब उस पर पानी का हल्का छिड़काव करें और उसे एक हफ्ते तक खुली धूप में छोड़ दें। अच्छे परिणाम के लिए किसान हल चले हुए खेत पर पानी छिड़काव के बाद उसे किसी बड़ी पन्नी या तिरपाल से ढक दें। “मृदा सूर्यकरण से पिछली फसल के बचे अवशेष और खरपतवार तुरंत नष्ट हो जाते हैं और पर्याप्त धूप मिलने से मिट्टी अधिक उपजाऊ हो जाती है। यह प्रक्रिया गेहूं या धान के अलावा सब्जियों और फूलों की खेती में अधिक कारगर साबित होती है। मौसम विभाग द्वारा जारी अनुमान से इस वर्ष अच्छी बारिश होने के कारण देश के अधिकांश राज्यों में किसानों ने धान की बुवाई शुरू कर दी है।

मिट्टी के पोषक तत्व रहते हैं बरकरार:  खेत की जुताई करने के बाद पानी का छिड़काव करके खेत पॉलीथीन से ढक देने से खेत की मिट्टी में उष्मा की मात्रा बनी रहती है। इससे मिट्टी में पाए जाने वाले पोषकतत्व अधिक समय तक बरकरार रहते हैं। इसकी मदद से बोई जाने वाली फसल की उपज अच्छी मिलती है। फसल उपजाने के लिए खेतों में बीजों की बुवाई करनी होती है या फिर नर्सरी में विकसित छोटी-छोटी पौध की खेतों में रोपाई करनी होती है। नर्सरी पौध की बात करें तो इससे फसल तब अच्छी मिलती है जब नर्सरी पौध सही और स्वस्थ हो। नर्सरी में अधिकतर लगने वाले रोग बीजजनित और भूमि जनित होते हैं। आज के वक्त में जहां काफ़ी हद तक बीज से फैलने वाले रोगों से छुटकारा मिल चुका है। वहीं दूसरी ओर फसल में भूमि से फैलने वाले रोगों के बारे में किसान जानकारी नहीं रखते हैं। ज़मीन के अन्दर छिपे रोग, हानिकारक कीटों के अंडे, प्यूपा और निमेटोड कीट खेतों में मौका मिलते ही तेज़ी से फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। अगर किसान अपने स्तर पर खेती की जाने वाली जगह का मृदा सौरीकरण कर लें तो इनसे छुटकारा पा सकते हैं।

कैसे करे मृदा सौरीकरण:  मृदा सौरीकरण के लिए खेतों में बोई जाने वाली फसल की जगह को पौध रोपण या बीज की बुवाई से 4-6 सप्ताह पहले छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेते हैं। इन क्यारियों को 200 गेज की पारदर्शी प्लास्टिक से ढक दिया जाता है। इसके बाद प्लास्टिक के किनारों को मिट्टी से ठीक तरह से दबा दिया जाता है। इससे बाहर की हवा अंदर प्रवेश न कर पाती। इसे एक से दो महीने तक के लिए छोड़ दिया जाता है। इस प्रकिया में प्लास्टिक से ढकी जगह के अंदर का तापमान बढ़ जाता है। इस तरह भूमि में बिना किसी रसायन उपयोग किेए उपचारित कर भूमि जनित कीट रोगों और खरपतवारों से छुटकारा मिल जाता है।

कम लागत में नर्सरी पौधाशाला में बेहद फ़ायदेमंद: मृदा सौरीकरण में भले ही समय ज़्यादा लगता है लेकिन इससे एक तो मिट्टी में पड़े सभी कीट और रोग नष्ट हो जाते हैं और साथ ही आपको फसल से गुणवत्ता वाली अच्छी उपज भी मिलती है। दूसरी तरफ़ रासायनिक दवाओं की तुलना में मृदा सौरीकरण में कम खर्च आता है। इस तरह आप भी अपनी नर्सरी पौध उगाने वाली ज़मीन को बीजों की बुवाई के पहले मिट्टी का मृदा सौरीकरण करें। यह विधि फलों एवं सब्जियों की पौधशाला में लगने वाले रोगों व कीटों के बचाव के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हुई है।

मृदा सौरीकरण में कुछ मुख्य बातों का ध्यान देना चाहिए:

 खेत साफ-सुथरा हो

फसल अवशेष न हो

पॉलीथीन से ढकने से पूर्व मिट्टी को पलटकर समतल व भुरभुरा बना लें।

ढकने से 1-4 दिन पहले हल्की सिंचाई कर दें।

पॉलीथीन चादर के किनारों को अच्छी प्रकार से मिट्टी से ढक दें।

बीज सौरीकरण करें: सौर ऊर्जा का उपयोग बीज सौरीकरण करके बीज जनित बीमारियों जैसे गेंहूं, धान, जौ का कण्डुआ रोग, गेंहूं का झुलसा रोग, धान का जीवाणु झुलसा, गेंहूं का सेंहू रोग, धान का सफेद टिप पत्ती रोग, धान का अफरा रोग, चने का बीजसड़न, जड़ सड़न आदि से बचाया जा सकता है। इसके लिए मई-जून के महीने में जब कड़ी धूप हो तो फर्श पर बीजों को अच्छी तरह सुखाकर रखें। अगले वर्ष बुवाई से पहले बीज का उपचार कार्बोक्सिन या कार्बोक्सिन 37.5फ़ीसदी+ थायरम 37.5फ़ीसदी की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें।

सौरीकरण के लाभ:  सौर ऊर्जा से ज़हरीले और असन्तुलित रसायनों के प्रयोग से उत्पन्न पर्यावरणीय एवं मानवीय समस्याओं से छुटकारा मिलता है। ये फसल सुरक्षा का अच्छा विकल्प है। लाभदायक जीवाणु जैसे वैसिलस, स्यूडोमोनास की संख्या में वृद्धि होती है। इससे पौधें की वृद्धि, उत्पादन व विकास के साथ-साथ गुणवत्ता में भी सुधार होता है। सौरीकरण करने से प्रदूषित मृदा स्वस्थ बनती है। मृदा में जो भौतिक, रासायनिक, जैविक परिवर्तन होता है वह आगे के 2 वर्षों तक वैसे ही बना रहता है। खरपतवार नष्ट होने से वायु का आवागमन बढ़ता है। अगर किसान सौर ऊर्जा का उपयोग फसल हेतु करते हैं तो निश्चित रूप से फसल उत्पादन में सन्तोषजनक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।