केला की वैज्ञानिक खेती के लिए भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी कैसे करें?
केला की वैज्ञानिक खेती के लिए भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी कैसे करें?

केला की वैज्ञानिक खेती के लिए भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी कैसे करें?

प्रोफ़ेसर (डॉ) एसके सिंह
मुख्य वैज्ञानिक (पौधा रोग)
सह निदेशक अनुसंधान
प्रधान अन्वेषक अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (फल)
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा , समस्तीपुर, बिहार

केला लगाने का सर्वोत्तम समय चल रहा है। इस समय यदि आप केला लगाने के बारे में सोच रहे है, तो आप यह जानना चाहते होंगे की केला की खेती के लिए किस तरह की भूमि उपयुक्त रहेगी एवं खेत की तैयारी कैसे करें।

केला की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में किया जा सकता है बशर्ते  उस भूमि में पर्याप्त उर्वरता, नमी एवं अच्छा जल निकास हो। किसी भी मृदा को केला की खेती के लिए उपयुक्त बनाने के लिए आवश्यक है कि मृदा की संरचना को सुधारा जाय, उत्तम जल निकास की व्यवस्था किया जाय। यद्यपि कि केला 4.5 से लेकर 8.0 तक पी.एच मान वाले मृदा में उगाया जा सकता है लेकिन इसकी खेती के लिए मृदा का सर्वोत्तम पी. मान 6 से लेकर 7.5 के मध्य होता है। मृदा की संरचना में आषातीत सुधार के लिए आवश्यक  है कि उसमें कार्बनिक पदार्थो को भरपूर मिलाया जाय। भारी मृदा में उत्तम जल निकास की व्यवस्था तथा भूमि में पोषक तत्वों की उपयुक्त स्तर बनाये रखने के लिए खाद एवं उर्वरक की पर्याप्त मात्रा डालना चाहिए। एक ऐसी मृदा जिसमें अम्लीयता ज्यादा न हो, कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त हो, नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा समुचित हो, केला की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

केला का जड़ तन्त्र उथला होता है जो खेती करने की वजह से क्षतिग्रस्त हो सकता है, अतः सतह पर आच्छादित होने वाली फसलों को नही लेने की सलाह दी जाती है। तथापि केला के शुरूआती चार महीनों के लिए अल्प अवधि की फसलों को अन्तरवत्र्तीय फसल के रूप में लेने की सस्तुति की जाती है जैसे, मूली, फूलगोभी, पत्तागोभी, अरवी, ओल, हल्दी, अदरक, लोबिया एवं गेंदा इत्यादि। कभी भी कद्दूवर्गीय सब्जियों को अन्तरवर्तीय फसल के रूप में नही लेना चाहिए क्योंकि इन फसलों में विषाणु रोगों की अधिकता होती है।

भूमि की तैयारी कैसे करें?
गड्ढा खोदने से पूर्व खेत की 2-3 जुताई करके खरपतवार खेत से निकाल देना चाहिए तथा मिट्टी को भुरभुरी बना देना चाहिए। खेत की सफाई के लिए खरपतवार को कभी भी जलाना नहीं चाहिए। इसके बाद 30 x30 x 30 सें. मी. या 45 x 45 x 45 सें. मी. आकार के गड्ढें, 1.5 x 1.5  मीटर (बौनी प्रजाति हेतु) या 2 x2 मीटर (लम्बी प्रजाति हेतु) की दूरी पर खोद लेते हैं। गड्ढा खुदाई का कार्य मई-जून में कर लेना चाहिए। खुदाई के उपरान्त उसी अवस्था में गड्ढों को 15 दिन के लिए छोड़ देना चाहिए। कड़ी धुप की वजह से हानि कारक कीट, फफूँद, जीवाणु व कीट नष्ट हो जाते हैं। गड्ढों को रोपण से 15 दिन पूर्व कम्पोस्ट खाद एवं मिट्टी के (1:1) मिश्रण से भर देना चाहिए। गड्ढों की मिट्टी 20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद (कम्पोस्ट) एक किलो अंडी की या नीम की खल्ली, 20 ग्राम फ्यूराडान मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा गड्ढा भर देना चाहिए। समस्याग्रस्त मृदा में इस मिश्रण के अनुपात को बदला जा सकता है जैसे, अम्लीय मृदा में चूना, सोडीयम युक्त मृदा में जिप्सम तथा उसर मृदा में कार्बनिक पदार्थ एवं पाइराइट मिलाने से मृदा की गुणवत्ता में भारी सुधार होता है। गड्ढा भरने के उपरान्त सिंचाई करना आवश्यक  है, जिससे गढ्ढो की मिट्टी बैठ जाय।