बरसात के मौसम में सब्जियों वाला केला, हरी सब्जियों का बेहतर विकल्प
बरसात के मौसम में सब्जियों वाला केला, हरी सब्जियों का बेहतर विकल्प

बरसात के मौसम में सब्जियों वाला केला, हरी सब्जियों का बेहतर विकल्प

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसंधान एवं 
 प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना  एवम् 
डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर बिहार

इस समय हरी सब्जियां कम आ रही है या बहुत महंगा होने की वजह से सामान्य लोगों के लिए पहुंच से दूर हो गई है। लोगों के सामने सब्जियों की समस्या प्रमुख रूप से देखी जा रही, खासकर शाकाहरी लोगों के क्योकि उनके सामने विकल्प बहुत सीमित है , ऐसी स्थिति में केला बहुत अच्छा विकल्प है । कच्चा केला का सब्जी या कोई अन्य व्यंजन का उपयोग करने से आयरन की कमी दूर होती है जिसकी सस्तुति डॉक्टर भी करते है। कच्चा केला का प्रयोग करने से पेट की विभिन्न बीमारियों में भी लाभ मिलता है। केला सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होता है,इसलिए इसका उपयोग करने से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी दूर होती है।

भारत में लगभग 500 से अधिक केले की  किस्में उगायी जाती हैं लेकिन एक ही किस्म का विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पास केला की 79 से ज्यादा प्रजातियाँ केला अनुसंधान केन्द्र पूसा में संग्रहित हैं। केला की सभी प्रजातीयाँ न तो पका कर खाने के योग्य होती है, नही उनकी सब्जी अच्छी बनती है। इसलिए यह जानना आवश्यक है कौन सी केले की प्रजाति सब्जी के लिए उपयुक्त है । सामान्यतः केला का जीनोमिक संरचना जिसमे B (Musa balbisiana) जीनोम ज्यादा होता हो वे केले सब्जियों के लिए बेहतर होते है एवं जिन केलों में A जीनोम ( Musa acuminata) ज्यादा होते है वे पका कर खाने के योग्य होते है। केला का पौधा बिना शाखाओं वाला कोमल तना से निर्मित होता है, जिसकी ऊचाई 1.8 मी0 से लेकर 6 मी0 तक होता है। इसके तना को झूठा तना या आभासी तना कहते हैं, क्योंकि यह पत्तियों के नीचले हिस्से के संग्रहण से बनता है। असली तना जमीन के नीचे होता है जिसे प्रकन्द कहते हैं। इसके मध्यवर्ती भाग से पुष्पक्रम निकलता है।

भारत में केला विभिन्न परिस्थितियों एवं उत्पादन पद्धति में उगाया जाता है, इसलिए बड़ी संख्या में केला की प्रजातियाँ, विभिन्न आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों की पूर्ति कर रही हैं क्षेत्र विशेष  के अनुसार लगभग 20 प्रजातियाँ वाणिज्यिक उदेश्य  से उगाई जा रही हैं। बिहार में उगाई जाने वाली प्रमुख किस्में है डवार्फ कावेन्डिश , चिनिया, चीनी चम्पा, अल्पान (मैसूर), मालभोग (सिल्क), मुठिया (ब्लूगो), कोठिया (ब्लूगो), गौरिया (ब्लूगो), कान्थाली (पिसांग अवाक) इत्यादि।

हमारे देश में केले की प्रमुख व्यवसायिक किस्में जिनका उपयोग सब्जी वाले केले में हो रहा है निम्नलिखित है जैसे

नेद्रन (रजेजी) (एएबी)

दक्षिण भारत विशेष रूप  से केरल की यह एक प्रमुख किस्म है। इस केला के बने उत्पाद जैसे, चिप्स, पाउडर आदि खाड़ी के देशों में  निर्यात किया जाता है। इसे मुख्यतः सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका पौधा 2.7-3.6 मीटर लम्बा होता है। फलों का  घौद छोटा होता है। इसके घौद का वजन 8-15 किलोग्राम तथा घौद में 30-50 फल की छिमियाँ होती है। फल लम्बे  22.5-25 से.मी. आकार वाले, छाल  मोटी, गूद्दा कड़ा तथा स्टार्ची लेकिन मीठा होता है। फलों को उबाल कर नमक एवं काली मिर्च के साथ खाया जाता है।

मोन्थन

इसके अन्य नाम है, कचकेल, बनकेल, बौंथा, कारीबेल, बथीरा, कोठिया, मुठिया, गौरिया कनबौंथ, मान्नन मोन्थन आदि। यह सब्जी वाली किस्म है जो बिहार, केरल (मालाबार) तामिलनाडु (मदुराई, तंजावर, कोयम्बटूर तथा टिल चिरापल्ली) तथा बम्बई (थाने जिले) में मुख्यतया पाई जाती है। इसका पौधा लम्बा तथा मजबूत होता है। केलों का गुच्छा तथा फल बड़े सीधे तथा एन्गुलर होते है। छाल बहुत मोटी तथा पीली होती है। गुदा नम, मुलायम, कुछ मीठापन लिए होता है। इसका मध्य भाग कड़ा होता है। कच्चा फल सब्जी तथा पके फल को खाने के रूप में प्रयोग करते है। बिहार मे कोठिया प्रजाति के केलों की खेती मुख्यतः सड़क के किनारों पर बिना किसी विशेष देखभाल, बिना उर्वरकों के  प्रयोग तथा फसल संरक्षण उपायों के होती हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक इस प्रजाति में कोई भी रेाग एवं कीट न हीं लगता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है इसमें पानामा विल्ट, बंचीटाप (शीर्ष गुच्छ) रोग भयानक रूप से आक्रान्त कर रहा है। फलों के गुच्छे का वजन 18-22.5 किलोग्राम होता है। जिसमें आमतौर पर 100-112 फल होते हैं।

कारपुरावल्ली (एबीबी)

यह तमिलनाडु की एक लोकप्रिय प्रजाति है। जो पिसांग अवाक ग्रुप से सम्बन्धित है। इसका  पौधा बहुत ही सख्त होता है जो हवा, सूखा, पानी, ऊँची, नीची जमीन, पी.एच.मान निरपेक्ष प्रजाति है। इसकी सबसे बड़ी विषेषता है विषम परिस्थितियों के प्रति सहिष्णुता। अन्य केला की प्रजाति की तुलना में यह कुछ ज्यादा समय लेती हैं। गहर का औसत वजन 20-25 किलोग्राम होता है। यह मुख्यता सब्जी हेतु प्रयोग में लाई जाती है। इसका फल पकने के पष्चात भी गहर से अलग नहीं होता है। इसमें कीड़े एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है। 

उन्नत संकर किस्में 

साबा (एबीबीबी)

साबा केला एक टेट्रापलोइड हाइब्रिड (एबीबीबी) केले की प्रजाति  है जिसकी खेती पहले  फिलीपींस में होती थी लेकिन अब इसकी खेती सभी प्रमुख केला उत्पादक देशों में हो रही  है। यह मुख्य रूप से सब्जी वाला  केला है, हालांकि इसे कच्चा भी खाया जा सकता है। यह फिलीपीन व्यंजनों में केले की सबसे महत्वपूर्ण किस्मों में से एक है। सबा केले में बहुत बड़े, मजबूत छद्म तने होते हैं जो 20 से 30 फीट (6.1 से 9.1 मीटर) की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं। ट्रंक 3 फीट (0.91 मीटर) के व्यास तक पहुंच सकता है। तना और पत्तियाँ गहरे नीले-हरे रंग की होती हैं। सभी केलों की तरह, प्रत्येक छद्म तना मरने से पहले केवल एक बार फल देता है। केले की अन्य किस्मों की तुलना में फल फूल आने के 150 से 180 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। प्रत्येक पौधे से लगभग  26 से 38 किलोग्राम का गुच्छा प्राप्त होता है। आमतौर पर, एक गुच्छा में 16 हथ्था  होते हैं, प्रत्येक हथ्थे में 12 से 20 उंगलियां(केला का फल ) होता हैं। सबा केले पूर्ण सूर्य के संपर्क के साथ अच्छी तरह से सूखा, उपजाऊ मिट्टी में सबसे अच्छे होते हैं। वे मूसा बालबिसियाना की अधिकांश विशेषताओं को विरासत में लेते हैं, जिससे वे शुष्क मिट्टी और समशीतोष्ण जलवायु की ठंडी परिस्थितियों के प्रति सहिष्णु हो जाते हैं। उन्हें न्यूनतम वर्षा की आवश्यकता होती है और जब तक पर्याप्त सिंचाई प्रदान की जाती है, वे लंबे समय तक शुष्क मौसम में जीवित रह सकते हैं। हालाँकि, उनके फल ऐसी परिस्थितियों में नहीं पक सकते हैं। उनके पास सिगाटोका लीफ स्पॉट रोगों के खिलाफ भी अच्छा प्रतिरोध है। फल 8 से 13 सेमी (3.1 से 5.1 इंच) लंबे और 2.5 से 5.5 सेमी (0.98 से 2.17 इंच) व्यास के होते हैं। पकने के आधार पर, फल विशिष्ट रूप से चौकोर और कोणीय होते हैं। मांस सफेद और स्टार्चयुक्त होता है, जो इसे खाना पकाने के लिए आदर्श बनाता है। फूल आने के 150 से 180 दिन बाद भी उनकी कटाई की जाती है, खासकर अगर उन्हें लंबी दूरी तक ले जाना हो।

सबा केले फिलीपीन व्यंजनों में सबसे महत्वपूर्ण केले की खेती में से एक हैं। फल आलू के समान पोषण मूल्य प्रदान करते हैं। उन्हें कच्चा खाया जा सकता है या विभिन्न पारंपरिक फिलिपिनो में पकाया जा सकता है। यह इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर में पिसांग सुगंध (फिलिपिनो ट्यूरोन के समान), पिसांग गोरेंग (तले हुए केले), कोलक पिसांग और पिसांग केपोक कूकस (उबले हुए केले) जैसे व्यंजनों में भी लोकप्रिय है।सबा को एक फिलिपिनो मसाला के रूप में भी संसाधित किया जाता है जिसे केले केचप के रूप में जाना जाता है, जिसका आविष्कार फिलिपिनो फूड टेक्नोलॉजिस्ट और युद्ध की नायिका मारिया वाई ओरोसा (1893-1945) ने किया था। सबा का गहरा लाल पुष्पक्रम (केले के दिल, स्थानीय रूप से फिलीपींस में पुसो एनजी सबा के रूप में जाना जाता है) खाने योग्य हैं। मोमी, हरी पत्तियों का उपयोग दक्षिण पूर्व एशिया में देशी व्यंजनों के पारंपरिक आवरण के रूप में भी किया जाता है। रेशों को ट्रंक और पत्तियों से भी लिया जा सकता है और रस्सियों, चटाई और बोरियों के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। सबा केले की खेती सजावटी पौधों और छायादार वृक्षों के रूप में उनके बड़े आकार और दिखावटी रंग के लिए की जाती है।

फिया-03

यह फिया ग्रुप की दुसरी संकर प्रजाति है। यह प्रजाति ब्लूगो समूह से सम्बन्धित है। इसके फल को सब्जी के रूप मे तथा पका कर खाने हेतु प्रयोग में लाते हैं। फिया-01 के समान यह प्रजाति भी चतुर्थगुणी है, जिसकी आनुवांषिक संरचना एएबीबी है। इस प्रजाति के पौधे सीधे, पुष्ट एवं मजबूत होते हैं। पौधे की ऊँचाई 2.5-3.5 मीटर होता है। फसल की अवधि 13-14 महीने की होती है। इस प्रजाति से 40 किलोग्राम की घौद को प्राप्त किया गया है। प्रति घौद छिमियाँ (फल) 200-230 होती हैं। प्रत्येक फल का वजन 150-180 ग्राम का होता है। यह प्रजाति भी पानामा विल्ट, काला सिगाटोका तथा सूत्रकृमि के प्रतिरोग अवरोधी है।