औषधिय गुणों से भरपूर जामुन लगाए एवं अप्रत्याशित लाभ पाए
औषधिय गुणों से भरपूर जामुन लगाए एवं अप्रत्याशित लाभ पाए

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसंधान
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा, समस्तीपुर, बिहार

भारत, विश्व की मधुमेह की राजधानी है और अधिकांश घरों में मधुमेह, जिसे 'शर्करा रोग' के रूप में जाना जाता है। मधुमेह मुख्य रूप से एक जीवन शैली की स्थिति है जो भारत में सभी आयु समूहों में खतरनाक रूप से बढ़ी है, और युवा आबादी में इसका प्रसार भी 10% से अधिक हो गया है। शहरी क्षेत्रों की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बदतर है, जहां सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों में बीमारी का प्रसार लगभग दोगुना है।  विशेष रूप से युवा आबादी में मधुमेह की वर्तमान वृद्धि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चिंता का कारण है।

भारत में जिस गति से डायबटीज रोग बढ़ रहा है, हमारा ध्यान इस रोग के प्रबंधन के लिए सबसे पहले जिस फल की तरफ सबसे पहले जाता है, वह जामुन है। जामुन के फल के साथ साथ इसकी गुठली से बने पाउडर का उपयोग डायबिटीज रोग के प्रबंधन में किया जाता है। इससे इस रोग के प्रबंधन के लिए होम्योपैथिक दवा भी बनाई जाती है।

आज हम आप को जामुन के बारे में बताएंगे की जामुन की खेती कैसे करें और इससे अधिक से अधिक लाभ कैसे प्राप्त करें। जामुन को एक बार लगाने के बाद इससे 50 से 60 साल तक फल प्राप्त करते है। जामुन के फल अपने औषधि गुण के साथ साथ लोग इसके फलों को खाना बहुत ज्यादा पसंद करते हैं। इसके फलों का जैम, जेली, शराब, और शरबत बनाने में भी उपयोग लिया जाता है।

जामुन के नए बाग लगाने के लिए जून, जुलाई, अगस्त का महीना सर्वोत्तम होता है। कई औषधीय गुणों से भरपूर इसके फल गहरे बैंगनी से काले एवं अंडाकार होते हैं। आजकल बाजार में जामुन के फलों का अच्छा मूल्य मिलने के कारण किसान अब इसकी खेती के प्रति जागरूक हो रहे है एवं अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाह रहे है।

जामुन के फल काले रंग के होते हैं, गुद्दा गहरे लाल रंग का होता है। इसके फल में अम्लीय गुण होता है। जिस कारण इसका स्वाद कसेला होता है। जामुन के अंदर कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जिनके कारण इसका फल मनुष्य के लिए उपयोगी होता है। इसके फलों को खाने से मधुमेह, एनीमिया, दाँत और पेट संबंधित बीमारियों में लाभ मिलता है।

जामुन के वृक्ष को उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले प्रदेशों में आसानी से उगाया जा सकता है। जामुन का पूर्ण विकसित पेड़ लगभग 20 से 25 फीट से भी ज्यादा लम्बाई का होता है, जो एक सामान्य वृक्ष की तरह दिखाई देता है। इसकी खेती के लिए उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है।

भूमि
जामुन लगाने के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में ज्यादा उपयुक्त होती है। इसके वृक्ष को कठोर और रेतीली भूमि में नही उगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6 से 8 के बीच में होना चाहिए।

जलवायु
जामुन को उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली जगहों पर सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। भारत में इसे ठंडे प्रदेशों को छोड़कर कहीं पर भी लगाया जा सकता है। इसके पेड़ पर सर्दी, गर्मी और बरसात का कोई ख़ास असर देखने को नही मिलता। लेकिन जाड़े में पड़ने वाला पाला और गर्मियों में अत्यधिक तेज़ धूप इसके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है। इसके फलों को पकने में वर्षा का ख़ास योगदान होता है। लेकिन फूल बनने के दौरान होने वाली वर्षा इसके लिए नुकसानदायक होती है।

जामुन के बीजों के अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है। अंकुरित होने के बाद पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है।

जामुन की उन्नत किस्में
जामुन की कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं एवं कई किस्में जनता की पसंद की वजह से लोकप्रिय है जो निम्नवत है

राजा जामुन
जामुन की इस प्रजाति को भारत में अधिक पसंद किया जाता है। इस किस्म के फल आकर में बड़े, आयताकार और गहरे बैंगनी रंग के होते हैं। इसके फलों में पाई जाने वाली गुठली का आकार छोटा होते हैं। इसके फल पकने के बाद मीठे और रसदार बन जाते हैं।

सी.आई.एस.एच. जे - 45
इस किस्म का विकास सेंट्रल फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर ,लखनऊ, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया है।इस किस्म के फल के अंदर बीज नहीं होते। इस किस्म के फल सामान्य मोटाई वाले अंडाकार दिखाई देते हैं। जिनका रंग पकने के बाद काला और गहरा नीला दिखाई देते है। इस किस्म के फल रसदार और स्वाद में मीठे होते हैं। इस किस्म के पौधे गुजरात और उत्तर प्रदेश में अधिक उगाये जाते हैं।

सी.आई.एस.एच. जे - 37
इस किस्म का निर्माण सेंट्रल फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर ऑफ़ लखनऊ, उत्तर प्रदेश के द्वारा किया गया है।इस किस्म के फल गहरे काले रंग के होते हैं। जो बारिश के मौसम में पककर तैयार हो जाते हैं। इसके फलों में गुठली का आकार छोटा होता है। इसका गुदा मीठा और रसदार होता है।

जामवंत
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - केंद्रीय उपोष्ण बागवानी लखनऊ के वैज्ञानिकों के दो दशकों के अनुसंधान के परिणामस्वरूप जामवंत नामक जामुन की प्रजाति विकसित किया गया। जामवंत में कसैलापन बिलकुल नहीं होता है। इसमें 90 प्रतिशत से ज्यादा गुद्दा होता है। इसकी गुठली काफी ज्यादा छोटी होती है। इस प्रजाति के जामुन का पेड़ बौना और सघन शाखाओं वाला होता है। फल गुच्छों में एवं फल पकने पर हल्के बैगनी रंग के हो जाते है। जामवंत जामुन की किस्म पूरी तरह से एंटीडायबिटिक और बायोएक्टिव तत्वों से भरपूर होती है। यह जामुन मई से लेकर जुलाई के दौरान दैनिक उपयोग का फल बन जाता है। फल आकर्षक गहरे बैंगनी रंग के साथ बड़े आकार के फलों के गुच्छे इस किस्म की विशेषता है। जामवंत प्रजाति के जामुन का फल औसतन वजन 24 ग्राम होता है। इसके गूदे में अपेक्षाकृत हाई एस्कॉर्बिक एसिड के कारण इसको पोषक तत्वों में धनी बनाता है। जून के तीसरे सप्ताह के बाद इसमें से फल तुड़ाई योग्य हो जाते है।

काथा 
इस किस्म के फल आकार में छोटे होते हैं। जिनका रंग गहरा जामुनी होता है। इस किस्म के फलों में गुदे की मात्रा कम पाई जाती है। जो स्वाद में खट्टा होता है। इसके फलों का आकार बेर की तरह गोल होता है।

गोमा प्रियंका
इस किस्म का विकास केन्द्रीय बागवानी प्रयोग केन्द्र गोधरा, गुजरात के द्वारा किया गया है। इस किस्म के फल स्वाद में मीठे होते है। जो खाने के बाद कसेला स्वाद देते है। इसके फलों में गुदे की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। इस किस्म के फल बारिश के मौसम में पककर तैयार हो जाते हैं।

भादो
इस किस्म के फल सामान्य आकार के होते हैं. जिनका रंग गहरा बेंगानी होता है। इस क़िस्म के पौधे पछेती पैदावार के लिए जाने जाते हैं। जिन पर फल बारिश के मौसम के बाद अगस्त महीने में पककर तैयार होते हैं। इस किस्म के फलों का स्वाद खटाई लिए हुए हल्का मीठा होता है।

उपरोक्त प्रजातियों के अलावा और भी कई किस्में हैं जिनकी अलग अलग प्रदेशों में उगाकर अच्छी पैदावार ली जाती हैं। जिनमें नरेंद्र 6, कोंकण भादोली, बादाम, जत्थी और राजेन्द्र 1 जैसी कई किस्में शामिल हैं।

जामुन लगाने के लिए गड्डे तैयार करना
 जामुन के पौधे खेत में गड्डे तैयार कर लगाए जाते हैं। गड्डों को तैयार करने से पहले खेत की शुरुआत में गहरी जुताई कर उसे कुछ दिन के लिए खुला छोड़ देंते है। खेत को खुला छोड़ने के कुछ दिन बाद फिर से खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मौजूद ढेलों को तोड़कर भुरभूरा बना लेते है। उसके बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना ले। खेत को समतल बनाने के बाद 7 से 8 मीटर की दूरी पर एक मीटर व्यास वाले डेढ़ से दो फिट गहरे गड्डे तैयार कर लें। इन गड्डों में उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद को मिट्टी में मिलकर भर दें। खाद और मिट्टी के मिश्रण को गड्डों में भरने के बाद उनकी गहरी सिंचाई कर ढक दें। इन गड्डों को बीज या पौध रोपाई के एक महीने पहले तैयार किया जाता है।

पौध लगाना
जामुन के पौधे बीज से या कलम के माध्यम से तैयार किये जाते हैं। जामुन के पौधे किसी सरकारी नर्सरी या किसी मान्यता प्राप्त नर्सरी से प्राप्त किए जा सकते है, जहाँ से इनको खरीदकर खेत में लगा सकते हैं।

नर्सरी में जामुन के पौधे को कलम के माध्यम से तैयार करने के लिए साधारण कलम रोपण, गूटी, और ग्राफ्टिं विधि का इस्तेमाल करते हैं।

पौध लगाने का समय और तरीका
जामुन के पौधे बीज और कलम दोनों माध्यम से लगाए जा सकते हैं। लेकिन बीज के माध्यम से लगाए गए पौधे फल देने में ज्यादा वक्त लेते हैं। बीज के माध्यम से पौधों को उगाने के लिए एक गड्डे में एक या दो बीज को लगभग 5 सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए। उसके बाद जब पौधा अंकुरित हो जाए तब अच्छे से विकास कर रहे पौधे को रखकर दूसरे पौधे को नष्ट कर देना चाहिए।

पूर्ण विकसित जामुन के पौधे
इसके बीजों को गड्डों में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए। जबकि पौध के माध्यम से पौधों को लगाने के लिए पहले तैयार किये गए गड्डों में खुरपी की सहायता से एक और छोटा गड्डा तैयार किया जाता है। इस गड्डे में इसकी कलम को लगाया जाता है। इसकी कलम को तैयार किये गए गड्डे में लगाने से पहले उसे कार्बेंडाजिम नामक फफुंदनाशक से उपचारित कर लेना चाहिए। उसके बाद पौधों को तैयार किये गए गड्डों में लगाकर उसे चारों तरफ से अच्छे से मिट्टी में दबा देना चाहिए।

जामुन के पौधे बारिश के मौसम में जून से अगस्त तक लगाने चाहिए। इससे पौधा अच्छे से विकास करता है। क्योंकि बारिश के मौसम में पौधे को विकास करने के लिए अनुकूल तापमान मिलता रहता है। जबकि बीज के माध्यम से इसके पौधे तैयार करने के लिए इन्हें बरसात के मौसम से पहले मध्य फरवरी से मार्च के अंत तक उगाया जाता है उगाया।

पौधों की पानी देना
जामुन के पूर्ण रूप से विकसित पेड़ को ज्यादा पानी की जरूरत नही होती। लेकिन शुरुआत में इसके पौधों को पानी की आवश्यकता होती है। इसके पौधों या बीज को खेत में तैयार किया गए गड्डों में लगाने के तुरंत बाद पानी देना चाहिए। उसके बाद गर्मियों के मौसम में पौधों को सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए और सर्दियों के मौसम में 15 दिन के अंतराल में पानी देना पर्याप्त होता है।

इसके पौधों को शुरुआत में सर्दियों में पड़ने वाले पाले से बचाकर रखना चाहिए। बारिश के मौसम में इसके पौधे को अधिक बारिश की जरूरत नही होती। जामुन के पेड़ को पूरी तरह से विकसित होने के बाद उसे साल में 5 से 7 सिंचाई की ही जरूरत होती है, जो ज्यादातर फल बनने के दौरान की जाती है।

उर्वरक की मात्रा
जामुन के पेड़ों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है। इसके लिए पौधों को खेत में लगाने से पहले तैयार किये गए गड्डों में 10 से 15 किलो पुरानी सड़ी गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें। गोबर की खाद की जगह वर्मी कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल भी किया जा सकता है। जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के रूप में शुरुआत में प्रत्येक पौधों को 100 से 150 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को साल में तीन बार चार चार महीने के अंतर पर देना चाहिए। लेकिन जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाये तब जैविक और रासायनिक दोनों खाद की मात्रा को बढ़ा दें। पूर्ण रूप से विकसित वृक्ष को 50 से 60 किलो जैविक और 1से1.5 किलो रासायनिक खाद की मात्रा साल में चार बार देनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण
जामुन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण निराई गुड़ाई कर करनी चाहिए. इससे पौधों की जड़ों को वायु की उचित मात्रा भी मिलती रहती है। जिससे इसका वृक्ष अच्छे से विकास करता हैं। इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज और पौध रोपण के 18 से 20 दिन बाद कर देनी चाहिए। उसके बाद पौधों के पास खरपतवार दिखाई देने पर फिर से गुड़ाई कर दें। जामुन के पौधों को शुरुआत में अच्छे से विकसित होने के लिए सालभर में 7 से 10 गुड़ाई और व्यस्क होने के बाद चार से पांच गुड़ाई की जरूरत होती है। इसके अलावा पेड़ों के बीच खाली बची जमीन पर अगर कोई फसल ना उगाई गई हो तो बारिश के बाद खेत सूखने पर हलकी जुताई कर देनी चाहिए। जिससे खाली जमीन में जन्म लेने वाली खरपतवार नष्ट हो जाती हैं।

पौधों की देखभाल
जामुन के पेड़ों को देखभाल की ख़ास जरूरत होती है। इसके लिए शुरुआत में इसके पौधों पर एक मीटर की ऊंचाई तक कोई भी नई शाखा को ना पनपने दें। इससे पेड़ों का तना अच्छा मजबूत बनता है, और पेड़ों का आकार भी अच्छा दिखाई देता है। इसके अलावा हर साल फल तुड़ाई होने के बाद शाखाओं की कटाई करनी चाहिए। इससे पेड़ पर नई शाखाएं बनती है। जिनसे पेड़ों के उत्पादन में वृद्धि देखने को मिलती है। पेड़ों की कटाई के दौरान सूखी हुई शाखाओं को भी काटकर हटा देना चाहिए।

जब तक पौधे छोटे है तब तक दूसरी फसल उगा सकते है
जामुन के पेड़ों को खेत में 7 से 8 मीटर की दूरी पर तैयार किये गए गड्डों में लगाया जाता है, और इसके वृक्ष लगभग तीन से 5 साल बाद फल देना शुरू करते हैं। इस पेड़ों के बीच खाली बची भूमि में सब्जी, मसाला और कम समय वाली बागबानी फसलों को उगाकर अच्छी खासी कमाई कर सकते है।

जामुन में लगनेवाल प्रमुख रोग एवं कीट
जामुन के पेड़ों पर कई तरह के कीट और रोग लगते हैं। जिनसे पेड़ों की बढ़वार पर फर्क देखने को मिलता है। जिसका ससमय रोकथाम कर अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है।

मकड़ी जाला
पेड़ पर इस कीट की वजह से कई पत्तियों को आपस में सफ़ेद रंग के रेशों से जोड़कर एकत्रित कर लेती हैं। जिनके अंदर इसके कीट जन्म लेते हैं, जो फलों के पकने के दौरान उन पर आक्रमण करते हैं। जिससे फल आपस में मिलकर खराब हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए एकत्रित की हुई पत्तियों को फल लगने से पहले ही तोड़कर जला देना चाहिए। इसके अलावा इस कीट के लगने पर पेड़ों पर इंडोसल्फान या क्लोरपीरिफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

पत्ती झुलसा
जामुन के पेड़ों पर पत्ती झुलसा का रोग मौसम परिवर्तन के दौरान और तेज़ गर्मी पड़ने पर देखने को मिलता है। इस रोग के लगने पर पेड़ों को पत्तियों पर भूरे पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं। और पत्तियां किनारों पर से सुखकर सिकुड़ने लगती है। जिसके कुछ दिनों बाद पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है. जिसकी वजह से पौधों का विकास रुक जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एम-45 की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

फल और फूल झडन
पौधों पर फूल और फल बनने के दौरान ये रोग देखने को मिलता है, जो ज्यादातर पौधों में पोषक तत्व की कमी की वजह से लगता है। इसके अलावा फूल झडन का रोग फूल बनने के दौरान बारिश होने पर भी लग जाता है। इस रोग के लगने पर पैदावार कम प्राप्त होती है। बोरोन की 4 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर इस विकार की रोकथाम के लिए पौधों पर छिडकाव करना चाहिए।

फल छेदक
फल छेदक रोग की मुख्य वजह पत्ता जोड़ मकड़ी रोग होता हैं। पत्ता जोड़ मकड़ी के लगने पर एकत्रित हुई पत्तियों में इस रोग का कीट जन्म लेता है, जो फल लगने पर उनके अंदर प्रवेश कर फलों को नुक्सान पहुँचाता है।इस रोग के लगने पर पौधे पर नीम के तेल या नीम के पानी का छिडकाव करना 10 से 12 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए।

पत्तियों पर सुंडी रोग
जामुन के पेड़ों पर सुंडी का आक्रमण पौधों की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है। इस रोग का लार्वा पौधे की कोमल पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइमेथोएट या फ्लूबैनडीयामाइड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

फलों की तुड़ाई और सफाई
जामुन के फल पकने के बाद बैंगनी काले रंग के दिखाई देते हैं। जो फूल खिलने के लगभग डेढ़ महीने बाद पकने शुरू हो जाते हैं। फलों के पकने के दौरान बारिश का होना लाभदायक होता है। क्योंकि बारिश के होने से फल जल्दी और अच्छे से पकते हैं। लेकिन बारिश अधिक तेज़ या तूफ़ान के साथ नही होनी चाहिए. जामुन के फलों को पकने के बाद उन्हें नीचे गिरने से पहले ही तोड़ा जाता है। इसके फलों की तुड़ाई रोज़ की जानी चाहिए। क्योंकि फलों के गिरने पर फल जल्दी ख़राब हो जाते हैं। इसके फलों की तुड़ाई करने के बाद उन्हें ठंडे पानी से धोना चाहिए। फलों को धोने के बाद उन्हें जालीदार बाँस की टोकरियों में भरकर पैक किया जाता है। फलों को टोकरियों में भरने से पहले खराब दिखाई देने वाले फलों को अलग कर लेना चाहिए।

उपज
जामुन के वृक्ष 4 से 5 वर्ष के बाद फल आने लगता है लेकिन लगभग 8 साल बाद पूर्ण रूप से फलन देना शुरू करते हैं। पूर्ण रूप से तैयार होने के बाद एक पौधे से 80 से 90 किलो तक जामुन प्राप्त हो जाती है, जबकि एक हेक्टेयर में इसके लगभग 250 से ज्यादा पेड़ लगाए जा सकते हैं। जिनका कुल उत्पादन 25000 किलो तक प्राप्त हो जाता है। जिसका बाज़ार भाव 100 से 120 रूपये किलो के आसपास पाया जाता हैं। इस हिसाब से  एक बार में एक हेक्टेयर से लगभग 20 लाख तक की कमाई कर सकते हैं।