लीची के मातृ पेड़ से गूटी (एयर लेयरिंग) विधि द्वारा नए पौधे कैसे करें तैयार ?
लीची के मातृ पेड़ से गूटी (एयर लेयरिंग) विधि द्वारा नए पौधे कैसे करें तैयार ?

लीची प्रवर्धन  का सही समय चल रहा है ....
लीची के मातृ पेड़ से गूटी (एयर लेयरिंग) विधि द्वारा नए पौधे कैसे करें तैयार ?

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (फल) एवं
सह निदेशक अनुसंधान
डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय
पूसा 848 125, समस्तीपुर बिहार

लीची के पौधे बीज तथा कायिक प्रवर्धन द्वारा तैयार किये जा सकते हैं। बीज से तैयार पौधों में फलन 10 से 15 वर्ष बाद आती है, जो गुणों में भी अपने मातृ पौधे के समान नहीं होते तथा गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती है। गुणवत्ता बनाये रखने और जल्दी फलन प्राप्त करने के लिए पौधे कायिक प्रवर्धन द्वारा ही तैयार किये जाने चाहिए।
कायिक प्रवर्धन लीची में बहुत ही प्रचलित विधि है। कायिक प्रवर्धन से प्राप्त पौधों में फलन - अपेक्षाकृत कम समय में प्रारंभ हो जाती है। यह विधि सरल और आसान है। इस विधि से प्राप्त पौधे अपने मातृ वृक्ष के सामान होते हैं। इस प्रर्वधन द्वारा किसी नई प्रजाति का विकास संभव नहीं है। यह विधि सघन बागवानी मे लिए बहुत ही उपर्युक्त एवं लाभकारी होती है। लीची मे कायिक प्रवर्धन कई विधियों द्वारा किया जाता हैं, जैसे-माउंड या स्टुल लेयरीग, गूटी या एयर लेयरिंग, कलम बाँधना (ग्राफ्टिग), वेज कलम बांधना, भेट कलम, जीभी कलम इत्यादि बहुत सारी विधिया है, लेकिन लीची में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रचलित विधि गूटी या एयर लेयरिंग जिससे आसानी से नए लीची के पौधे तैयार किये जा सकते है। इस विधि में सफलता का प्रतिशत भी ज्यादा है। अतः इसी विधि से अधिक से अधिक पौधे तैयार करे।

लीची की व्यावसायिक खेती के लिए गूटी विधि द्वारा तैयार पौधा का ही उपयोग किया जाना चाहिए। बीजू पौधों में पैतृक गुणों के अभाव के कारण अच्छी गुणवत्ता के फल नहीं आते हैं तथा उनमें फलन भी देर से होता है। गूटी तैयार करने के लिए मई-जून के महीने में स्वस्थ एवं सीधी डाली जो कम से कम 7-8 महीना पुराना हो तथा जिसकी मोटाई (1 से 1.5 सेमी) कम से कम पेंसिल से मोटी हो उसका चुनाव करते है, इसके बाद चुनी हुई डाली के शीर्ष से 40-60 सें.मी. नीचे किसी गांठ के पास गोलाई में 2-2.5 सें.मी. चौड़ाई में टहनी के चारों तरफ के छिलके को तेज चाकू या सिकेटीअर से निकाल देते हैं। इसके बाद इसे एक सप्ताह के लिए छोड़ देते है। एक हप्ते के बाद  टहनी के छिले हिस्से के ऊपरी सिरे पर आई.बी.ए. के 2000 पी.पी.एम. का पेस्ट या रूटेक्स का लेप लगाकर कटे हिस्से को नम मॉस घास से ढककर या चिकनी गीली मिट्टी लगा के ऊपर से 400 गेज की सफेद पालीथीन का टुकड़ा लपेट कर सुतली से कसकर दोनों हिस्सों को खूब अच्छी तरह से  बांध देते है। गूटी बाँधने के लगभग 2 माह के अंदर जड़े पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है। इस समय डाली की लगभग आधी पत्तियों को निकालकर एवं मुख्य पौधे से काटकर नर्सरी में आंशिक छायादार स्थान पर लगा दिया जाता है। नियमित तौर पर सिंचाई कीट व्याधि नियंत्रण करने, पोषक तत्वों के पर्णीय छिड़काव करने और खरपतवार निकालते रहने से स्वस्थ पौधे शीघ्र तैयार हो जाते हैं। भारतवर्ष में गूटी बांधने का सबसे उपयुक्त समय मानसून की शुरूआत यानि जून से जुलाई है, जो चल रहा है अतः अधिक से अधिक पौधे स्वयं तैयार करें।