नील गाय से होने वाले नुकसान को कम करने की सस्ती एवं कम श्रम साध्य तकनीक
नील गाय से होने वाले नुकसान को कम करने की सस्ती एवं कम श्रम साध्य तकनीक

प्रोफेसर (डॉ) एस.के.सिंह 
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवम्
सह निदेशक अनुसंधान
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय
पूसा, समस्तीपुर - 848 125

श्री सुधीर शाह,पटोरी, समस्तीपुर के अनुभव.....
नील गाय से होने वाले नुकसान को कम करने की सस्ती एवं कम श्रम साध्य तकनीक

किसानों की आज के तारीख में जो सबसे बड़ी समस्या है वह है नीलगाय है। बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में नील गाय के साथ साथ लावारिस पशु भी बहुत बड़ी समस्या है, लेकिन वहा की सरकार लावारिस पशुओं को गोशाला में रखने की व्यवस्था कर रही है लेकिन नीलगायों पर वहा भी कोई समाधान नहीं है। नीलगाय से तो वैसे सभी फसल बुरी तरह से प्रभावित होती है लेकिन उद्यानिक फसले कुछ ज्यादा ही प्रभावित होती है। नीलगाय (घडरोज) किसानों के लिए बड़ी समस्या बन गयी है। इसके नाम में गाय शब्द होने की वजह से इसे गोवंश मानने के कारण इनका वध भी नहीं किया जा सकता और इनसे फसलो को बचाना बहुत मुश्किल हो गया है। जंगल झाडियों के समाप्त होने के बाद नीलगाय खेतों में शरण ले रही हैं। यह गन्ना, अरहर आदि के खेत में छिपी रहती हैं और मौका पाते ही बाहर निकलकर फसलों को खाने के साथ ही नष्ट भी कर देती हैं। इससे किसानों को भारी आर्थिक क्षति होती है।

आज मुझे श्री सुधीर शाह जी जो मूलतः साहपुर पटोरी ,समस्तीपुर के रहने वाले है उनके अनुभव को जानने का मौका लगा। मुझे लगा की उनके इस अनुभव को आपके साथ साझा किया जाय। उनके अनुसार नील गाय को उन्होने सफलतापूर्वक नियंत्रित किया है, उनके अनुसार इसमें खर्चा मात्र 10 रुपये आता है और इसने शारीरिक श्रम 1 घंटा देना होता है। उनके अनुसार सड़े हुए या यू कहे खराब दो अंडे ले जिसे 15 लीटर पानी में घोल ले और उसे सड़ने के लिए 5 से 10 दिन के लिए छोड़ दे ताकि गंध अधिक से अधिक उत्पन्न हो सके। प्रत्येक 15 दिन पर कई जगहों पर इस घोल को जमीन पर ही छिड़काव करें, खास तौर पर उधर अवश्य छिड़के जिधर से नील गाय खेत में प्रवेश करते है। पौधो पर छिड़कने की आवश्यकता नहीं है। उनके अनुसार चूंकि यह जानवर स्वभाव से सख्त शाकाहारी होते है उन्हे सड़े हुए अंडे की दुर्गंध बहुत नापसंद हैं, इसलिए जहा पर इस घोल का छिड़काव किया गया होगा वहा पर नील गाय कत्तई आना पसंद नही करते है। इस विधि से आप नील गाय ही नही बल्कि  बंदर को भी नियंत्रित कर सकते हैं। श्री शाह के मुताबिक यह घोल जितना पुराना होगा  उतना ही असरकारक होगा। इसका प्रयोग फसलों पर नही करना है। यह नील गाय एवं बंदर के लिए रिपेलेंट (दूर भागने वाला) का कार्य करता है। श्री शाह के मुताबिक आस पास के किसान इस विधि का प्रयोग करके अपनी फसलों को नील गाय से बचा रहे है। नील गाय भगाने की यह सस्ती एवं असरकारक विधि है इसका प्रयोग करके आप अपनी फसलों को बचा सकते है।

इसे किसानों के लाभार्थ अधिक से अधिक शेयर करें....