दुर्गम स्थानों पर भी लगा सकते है सोलर पावर ट्री , जहा पर बिजली पहुंचाना मुश्किल, बिजली का सस्ता एवं बेहतर विकल्प
दुर्गम स्थानों पर भी लगा सकते है सोलर पावर ट्री , जहा पर बिजली पहुंचाना मुश्किल, बिजली का सस्ता एवं बेहतर विकल्प

Dr. S.K. Singh
सह निदेशक अनुसन्धान 
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा , समस्तीपुर, बिहार 

डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव ने विश्विद्यालय में योगदान देने के साथ ही सोलर ट्री के स्थापना पर विशेष बल दिया। विश्विद्यालय के प्रसिद्ध सरस्वती गार्डन में स्ट्रीट लैंप एवं फब्बारो को सोलर ट्री के माध्यम से संचालित करने के साथ साथ ढाब क्षेत्र में जहा बिजली पहुंचाना बहुत मुश्किल है वहा पर रात्रि में प्रकाश के साथ साथ 3 हॉर्स पावर के सबमर्सिबल पंप के माध्यम से सिंचाई सोलर ट्री के माध्यम से किया जा है। सोलर ट्री को किसानों के मध्य लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से इसे विश्वविद्यालय द्वारा संचालित विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों पर प्रकाश एवं 3 हॉर्स पावर के सबमर्सिबल पंप के माध्यम से सिंचाई करने के उद्देश्य से लगाया गया है। इसे लगाने में प्रारंभिक लागत कुछ ज्यादा है, लेकिन इसे लगा कर बिजली बिल में 15 से 20 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है। सोलर ट्री के माध्यम से विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाईयों में सफलतापूर्वक सौर ऊर्जा उत्पादित किया जा रहा है। इसे और किसानों के मध्य प्रचारित करने की आवश्यकता है।

देश में ऊर्जा संकट की समस्या को हल करने के लिए सीएसआईआर-सीएमईआरआई (केन्द्रीय मैकेनिकल इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान) वैज्ञानिक ने ऐसा सोलर पावर ट्री बनाया है जो सौर ऊर्जा से बिजली की आपूर्ति करता है। इस सोलर ट्री की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसको बहुत ही कम जगह में और कहीं भी लगाया जा सकता है। पूर्व के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है सौर ऊर्जा  के लिए जो सबसे बड़ी समस्या थी वह जमीन थी। 'सोलर पावर ट्री' इस समस्या का बेहतर समाधान है।

solar-power-tree

सोलर पावर ट्री के फायदे

  • बहुत कम जगह में ज्यादा से ज्यादा बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।
  • बिजली के बिल जमा करने की झंझट से मुक्ति
  • सोलर ट्री का प्रयोग 30- 35 साल तक आसानी से किया जा सकता है।
  • तेज हवा या तूफान आने पर भी इसके गिरने का कोई डर नहीं है।
  • सोलर ट्री को इस तरह तैयार किया गया है कि एक सोलर पैनल की छाया दूसरे सोलर पैनल पर न पड़े और सब आसानी से चार्ज हो जाते है।
  • दुर्गम स्थानों पर जहा बिजली पहुंचाना मुश्किल है यथा नदी के किनारे के ढाब क्षेत्र में, सड़कों के किनारे, ऊंची नीची जमीन पर सोलर ट्री आसानी से लगाये जा सकते है।
  • सोलर पैनलों से अधिकतम लाभ के लिए आवश्यक है की पैनल हमेशा साफ़ सुथरे रहे, सोलर पैनल के ऊपरी हिस्से तक को साफ करने के लिए इसमें फ़ब्बारा लगा होता है।
  • सोलर पैनल सोलर ट्री की विभिन्न शाखाओं पर अधिक ऊंचाई पर लगे होते है इसलिए जमीन पर लगे पैनल की तुलना में उन्हें अधिक धूप मिलती है। इससे ज्यादा सौर ऊर्जा का उत्पादन होता है।

आइए जानते है की सोलर ट्री क्या है ?
सीएसआईआर-सीएमईआरआई के वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्व में पांच किलोवाट सोलर पावर का उत्पादन करने के लिए लगभग 500 वर्ग फुट जमीन की आवश्कता होती थी। लेकिन पांच किलोवाट का सोलर पावर ट्री लगाने के लिए मात्र चार वर्ग फुट की आवश्यकता होगी। सोलर पावर ट्री दूर से देखने पर एक पेड़ जैसा दिखाई देता है जिसकी कई शाखाएं होती है। इसकी हर शाखा पर लगभग 30 सोलर पैनल लगे होते है। सोलर ट्री का विकास केन्द्रीय मैकेनिकल इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। सोलर ट्री के बारे में जानकारी देते हुए संबंधित वैज्ञानिक बताते है की "सौर ऊर्जा बनाने के लिए देश मे किसी भी राज्य को हरित ऊर्जा पर बने रहने के लिए हज़ारो एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी लेकिन सोलर ट्री लगाने के लिए बहुत कम जमीन पर लगा कर हजारों मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। सोलर ट्री को वर्ष 2008 में ही तैयार कर लिया गया था। लेकिन सरकार का ध्यान 2016 में गया जब केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने अपने आवास पर 'सोलर ट्री' लगवा कर इसका उद्घाटन किया। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि बिजली के संकट को दूर करने में सोलर प्लांट की बड़ी भूमिका है। इसलिए देश के हर नागरिक को इसके बारे में विशेष तौर पर सोचना होगा। सरकार भी इस दिशा में प्रयास कर रही है।

सबसे पहले 3 किलोवाट, 5 किलोवाट उसके बाद 7.5 किलोवाट तक के सोलर ट्री संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए है, 9 किलोवाट तक के सोलर ट्री तैयार करने के प्रयास चल रहे है। पूर्व के आंकड़े के अनुसार पांच किलोवाट तक के सोलर ट्री लगाने की लागत लगभग  पांच लाख के आस पास आती है। वर्तमान लागत के संबंध में संस्थान के वैज्ञानिकों से या ऑनलाइन इंडिया मार्ट से संपर्क किया जा सकता है।