अप्रैल मई में फल वृक्षों यथा आम, लीची, अमरूद, बेल, आंवला, कटहल को लगाने के तैयारी शुरू करें
अप्रैल मई में फल वृक्षों यथा आम, लीची, अमरूद, बेल, आंवला, कटहल को लगाने के तैयारी शुरू करें

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह 
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं 
सह निदेशक अनुसन्धान 
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार 

फल वृक्षों के बाग लगाने से पूर्व की तैयारी बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि बाग लगते समय की भूल हमें बहुत समय तक परेशान करती है। इसलिए हमे वैज्ञानिक विधि से बाग लगाना चाहिये जिससे बाग से अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। नया बाग लगाते समय कई बातों को ध्यान में रखना अच्छा होता है। बाग लगाने के लिए ऐसा स्थान का चयन करना चाहिए जहॉ पर जल जमाव न होता हो। मिट्टी के नीचे कंकड़ पत्थर की कड़ी परत नहीं होनी चाहिये, जल का स्तर 3 से 4 मीटर नीचे होना चाहिये, ऐसा न होने पर फल वृक्षों की जड़ें ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पाती हैं। जिसके कारण कुछ समय बाद वृक्ष सूख जाते हैं। बाग लगाने के खेत की भूमि को समतल कर जल निकास की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिये। सिंचाई की आधुनिक विधि जैसे टपक सिंचाई को अपनाकर ऊँची नीची भूमि जहाँ पानी न भरता हो, नए बाग लगाये जा सकते हैं।

नए बाग लगाने की कई विधियां प्रचलित है यथा आयताकार विधि में पंक्ति से पंक्ति की दूरी अधिक तथा पौध से पौध की दूरी अपेक्षाकृत कम रहती है। जिसके कारण पौध आयात के चारों कोनों पर लगे दिखाई पड़ते हैं। इस विधि में पौधों के विकास हेतु सूर्य का प्रकाश पर्याप्त मात्रा में मिलता है। वर्गाकार विधि में पौध से पौध की दूरी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी बराबर रखी जाती है। यह एक सरल व सर्वाधिक अपनायी जाने वाली विधि है। त्रिभुजाकार विधि में पौधे त्रिभुज के तीनों कोनों पर लगे दिखायी पड़ते हैं। यह रेखांकन वर्गाकार विधि के समान होता है परन्तु समान अंकों वाली पंक्तियों के पौधे असमान अंकों वाली पंक्तियों के मध्य लगाये जाते हैं।षटभुजाकार विधि में पौधे किसी षटभुज के छः कोनों व केन्द्र में लगे दिखाई पड़ते हैं। इस विधि में भूमि का अधिक से अधिक उपयोग होता है और वर्गाकार विधि की अपेक्षा 15 प्रतिशत अधिक पौध लगते हैं। परिरेखा विधि पहाड़ी व ढलान वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है। इसमें ढाल के अनुसार परिरेखायें बना ली जाती हैं और उस पर पौध लगाये जाते हैं। पौध से पौध की दूरी सुविधानुसार घटाई व बढ़ाई जा सकती है। इस विधि से भूमि कटाव कम होता है। इस विधि में टपक सिंचाई विधि उपयोगी रहती है।

बाग लगाने हेतु गड्ढे की खुदाई का कार्य अप्रैल मई माह में करना चाहिये। गड्ढे की ऊपरी आधी मिट्टी एक तरफ तथा नीचे की आधी मिट्टी दूसरी तरफ रखनी चाहिये तथा गड्ढा एक माह तक खुला छोड़ देते हैं। आकार में गड्ढे 1 मीटर लम्बे 1 मीटर चौड़े तथा 1 ही मीटर गहरे होने चाहिये। जून के अन्त में गड्ढे की भराई करते हैं और ध्यान रखते हैं कि ऊपर वाली मिट्टी ऊपर न रहे। भराई से पूर्व प्रति गड्ढा की दर से 25 से 30 किलोग्राम खूब सड़ी गोबर की खाद, 25 से 50 ग्राम फोरेट 10 जी खुदी हुई मिट्टी में मिलाकर भर देते हैं। फल के पौधे लगते समय कभी भी रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग नही करना चाहिए। रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग ,बाग लगाने के एक साल बाद करना चाहिए, क्योंकि लगाए गए पौधो में जड़ों का विकास भी समुचित हो गया रहता है। भरते समय मिट्टी को अच्छी तरह दबाकर भरते हैं तथा सतह से 15 से 20 सेन्टीमीटर उठा रखते हैं। गढ्ढे के केन्द्र में एक लकड़ी को गाड़ देते है। जब एक दो वर्षा हो जाये और गड्ढे की मिट्टी बैठकर समतल हो जाये तो उसमें पौधा गढ्ढे के केन्द्र में लगाया जा सकता है।

फल वृक्षों का रोपण जुलाई-अगस्त में करना अच्छा होता है। पौधों को सीधा तथा उतना ही गहरा लगाना चाहिये जितना गहरा वह नर्सरी में लगा था। अधिक गहरा लगाने से पौधों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है। रोपण हेतु भरे हुये गड्ढे के केन्द्र में पौध की पिण्डी के आकार का छोटा गड्ढा बनाकर पिण्डी उसमें रखकर मिट्टी भरकर अच्छी तरह दबा देना चाहिये। रोपण सायंकाल करके सिंचाई कर देना चाहिये।

जिस भी फल का आपको बाग लगाना उसकी प्रजातियों का चयन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। क्षेत्र के अनुकूल ऐसी प्रजातियों का चयन करना चाहिये जिनकी पैदावार अधिक हो तथा बाजार में अच्छी मांग हो, और जिनमें कीट व व्याधियों का प्रकोप भी कम होता हो। रोपण हेतु पौध का क्रय बहुत विश्वसनीय नर्सरी से करना चाहिये क्योंकि रोपण हेतु पौध में कमी का पता प्रायः तब चलता है जब बाग तीन चार वर्षों का हो जाता है एवं फलत की अवस्था में आ जाता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसा देखा गया है कि किसान पौध खरीदने में लापरवाही कर देते हैं ऐसा नहीं होना चाहिये। पौधों का क्रय कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों, राजकीय पौधशालाओं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रों अथवा विश्वसनीय पौधशालाओं से ही करना चाहिये। सम्भव हो तो बाग लगाने के एक वर्ष पूर्व ही कुछ अग्रिम राशि जमाकर अपने लिये पौध आरक्षित करा लें।