लीची उत्पादन पर लगातार बढ़ते तापमान का असर कैसे करें प्रबंधन?
लीची उत्पादन पर लगातार बढ़ते तापमान का असर कैसे करें प्रबंधन?

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह 
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं
सह निदेशक अनुसन्धान 
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा ,समस्तीपुर, बिहार

अप्रैल महीने में ही तापमान का 40 डिग्री सेल्सियस के आस पास पहुंचने से लीची उत्पादक किसान बहुत चिंतित है। बढ़े तापमान ने लीची उत्पादक किसानों की चिंता बढ़ा दी है। लीची की सफल खेती के लिए आवश्यक है की फल की तुड़ाई तक अधिकतम तापमान 38 डिग्री से अधिक नही होना चाहिए। इसके विपरित अप्रैल महीने में ही तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आस पास पहुंच गया है। मार्च-अप्रैल में बढ़े तापमान का लीची उत्पादन पर असर निश्चित रूप से पड़ेगा। इस समय लीची के बाग की मिट्टी को हमेशा नम रखने की आवश्यकता है। यदि बाग की मिट्टी में नमी की कमी हुई तो इससे फल की बढ़वार बुरी तरह से प्रभावित होगी। जिस तरह से गर्मी लगातर बढ़ रही है किसानों के लिए खेत में नमी बनाए रखना मुश्किल हो गया है। अगर खेत में नमी नहीं रहेगी तो फल गिरने की प्रक्रिया में तेजी आएगी, अभी कितने प्रतिशत उत्पादन पर असर पड़ेगा ये कहना मुश्किल है, लेकिन असर तो पड़ेगा।
विगत कई वर्षों से मैं किसानों को लीची के बाग में ओवर हेड स्प्रिकलर(लीची के पेड़ की ऊंचाई पर फब्बारा द्वारा सिंचाई) लगाने की सलाह दे रहा हूं। यदि बाग में ओवर हेड स्प्रिकलर से प्रति दिन 4 घंटे सिंचाई किया जाय तो उपज एवम फल की गुणवक्त्ता में भारी वृद्धि होती है। इस तरह के बाग में रोग एवम कीड़े भी कम लगते है। इस तरह के बाग में सामान्य से 5 डीग्री सेल्सियस तापमान कम रहता है। फल 2 प्रतिशत से कम फटते है।

भारत सरकार के कृषि एवम सहकारिता विभाग के वर्ष 2020 - 2021 के आंकड़े के अनुसार भारत में 97.91 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है जिससे कुल 720.12 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है, जबकि बिहार में लीची की खेती 36.67 हजार हेक्टेयर में होती है जिससे 308.06 हजार मैट्रिक टन लीची का फल प्राप्त होता है। बिहार में लीची की उत्पादकता 8.40 टन/हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.35 टन / हेक्टेयर है।

लीची बिहार का प्रमुख फल है। इसे प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है। भारत में पैदा होने वाली लीची का लगभग 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है। अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। बिहार में ज्यादातर किसान लीची की शाही और चाइना किस्म की खेती करते हैं, लीची की बागवानों का साल भर का खर्च इन्हीं लीची के बागवानी पर ही चलता है, ऐसे में अगर लीची के उत्पादन पर असर पड़ा तो किसानों की कमाई पर भी असर पड़ता है।

लीची की शाही किस्म में फल लौंग के बराबर के हो चुके हैं इस समय लीची के पेड़ के थालों में हल्की सिंचाई करते रहे तथा सूखी घास की मल्च बिछाएं। यदि विगत मौसम में फल की तुड़ाई के उपरांत बाग प्रबंधन के समय बोरोन का प्रयोग नही किया था तो निश्चित रूप से शाही किस्म के पौधों में घुलनशील बोरेक्स @ 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। बोरेक्स की सही मात्रा का उपयोग करे, नहीं तो नुकसान हो सकता है। यदि आपका लीची का पेड़ 8-14 वर्ष के पौधों में 350 ग्राम यूरिया व 250 ग्राम पोटाश डालें और 15 वर्ष के ऊपर के पौधों में 450-500 ग्राम यूरिया व 300 से 350 ग्राम पोटाश डालें ध्यान रहें कि उर्वरकों का प्रयोग पर्याप्त नमी होने पर ही करें।

फ्रूट एवं सीड बोरर (फल एवं बीज बेधक) लीची के सबसे प्रमुख कीटों में से एक है। लीची के फल के  परिपक्व होने के पहले यदि मौसम में अच्छी नमी अधिक हो तो, फल बेधक कीटों के प्रकोप की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इस कीट के पिल्लू लीची के गूदे के ही रंग के होते हैं जो डंठल के पास से फलों में प्रवेश कर फल को खाकर उन्हें हानि पहुँचाते हैं अत: फल खाने योग्य नहीं रहते। लीची की सफलतापूर्वक खेती के लिए आवश्यक है की इसमे लगने वाले प्रमुख कीट जिसे लीची का फल छेदक कीट कहते है, उसका प्रबंधन करना अत्यावश्यक है। लीची के फल में इस कीट का आक्रमण हो गया तो बाजार में इस लीची का कुछ भी दाम नही मिलेगा।

इस कीट के प्रबंधन के लिए लीची में फूल निकलने से पूर्व निंबिसिडिन (0.5%), नीम के तेल या निंबिन @ 4 मिली प्रति लीटर पानी में या किसी भी नीम आधारित कीटनाशक जैसे एजेडिरैचिन फॉर्मुलेशन निर्माताओं की अनुशंसित खुराक दिया जा सकता है। फूल में फल लगने के बाद पहला कीटनाशक का छिडकाव, फूल में फल लगने के बाद के दस दिन बाद जब फल लौंग के आकार के बराबर सेट हो जाते हैं तब थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल @ 0.7-1.0 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करते है। दूसरा कीटनाशक छिडकाव, पहले छिडकाव के 12-15 दिन बाद; इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL या थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी @ 0.7-1.0 मिली प्रति लीटर पानी। तीसरा कीटनाशक छिडकाव: अगर मौसम की स्थिति सामान्य है यानी रुक-रुक कर बारिश नहीं हो रही है तब फल तुड़ाई के 12 से 15 दिन पहले निम्नलिखित तीन कीटनाशकों में से किसी भी एक का छिड़काव करें यथा नोवलुरॉन 10% ईसी@1.5 मिली प्रति लीटर  पानी या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी@ 0.7 ग्राम प्रति लीटर पानी या लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 5% ईसी @ 0.7 मिली प्रति लीटर पानी। अच्छे परिणाम के लिए कीटनाशी के साथ स्टिकर 0.3 मिली. प्रति लीटर अवश्‍य करें। लीची में फल छेदक कीट का प्रकोप कम हो इसके लिए आवश्यक है की साफ-सुथरी खेती को बढ़ावा दिया जाय।

मंजर या फल झुलसा व अन्य फफूंद रोगों से बचाव के लिए कीटनाशक के साथ ही कवकनाशी हेक्साकोनाजोल @1मीली लीटर प्रति लीटर पानी या थायोफेनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. @ 2 ग्राम प्रति लीटर का बगीचें में फल लगे या बिना लगे सभी पौधों पर छिड़काव करें।