लीची में लगने वाले प्रमुख कीटों को प्रबंधित किए बिना लीची की सफल खेती संभव नहीं
लीची में लगने वाले प्रमुख कीटों को प्रबंधित किए बिना लीची की सफल खेती संभव नहीं

प्रोफेसर (डॉ) एस.के. सिंह
प्रधान अन्वेषक
अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं
सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर,

भारत सरकार के कृषि एवम सहकारिता विभाग के वर्ष 2020 - 2021 के आंकड़े के अनुसार भारत में 97.91 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है जिससे कुल 720.12 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है, जबकि बिहार में लीची की खेती 36.67 हजार हेक्टेयर में होती है जिससे 308.06 हजार मैट्रिक टन लीची का फल प्राप्त होता है। बिहार में लीची की उत्पादकता 8.40 टन/हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.35 टन / हेक्टेयर है।

लीची बिहार का प्रमुख फल है। इसे प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है।यह फलों की रानी है। इसमें बीमारियां बहुत कम लगती हैं। लीची की सफल खेती के लिए आवश्यक है की इसमें लगने वाले प्रमुख कीटों के बारे में जाना जाय,क्योंकि इसमें लगने वाले कीटों कि लिस्ट लंबी है, बिना इन कीटों के सफल प्रबंधन के लीची की खेती संभव नहीं है।

1. फ्रूट एवं सीड बोरर (फल एवं बीज बेधक)
यह लीची के सबसे प्रमुख कीटों में से एक है। लीची के फल के  परिपक्व होने के पहले यदि मौसम में अच्छी नमी अधिक हो तो, फल बेधक कीटों के प्रकोप की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इस कीट के  पिल्लू लीची के गूदे के ही रंग के होते हैं जो डंठल के पास से फलों में प्रवेश कर फल को खाकर उन्हें हानि पहुँचाते हैं अत: फल खाने योग्य नहीं रहते। लीची की सफलतापूर्वक खेती के लिए आवश्यक है की इसमे लगने वाले प्रमुख कीट जिसे लीची का फल छेदक कीट कहते है, उसका प्रबंधन करना अत्यावश्यक है। लीची के फल में इस कीट का आक्रमण हो गया तो बाजार में इस लीची का कुछ भी दाम नही मिलेगा।
इस कीट के प्रबंधन के लिए लीची में फूल निकलने से पूर्व निंबिसिडिन (0.5%), नीम के तेल या निंबिन @ 4 मिली प्रति लीटर पानी में या किसी भी नीम आधारित कीटनाशक जैसे एजेडिरैचिन फॉर्मुलेशन निर्माताओं की अनुशंसित खुराक दिया जा सकता है। फूल में फल लगने के बाद पहला कीटनाशक का छिडकाव, फूल में फल लगने के बाद के दस दिन बाद जब फल लौंग के आकार के बराबर सेट हो जाते हैं तब थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल @ 0.7-1.0 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करते है। दूसरा कीटनाशक छिडकाव, पहले छिडकाव के 12-15 दिन बाद; इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL या थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी @ 0.7-1.0 मिली प्रति लीटर पानी। तीसरा कीटनाशक छिडकाव: अगर मौसम की स्थिति सामान्य है यानी रुक-रुक कर बारिश नहीं हो रही है तब फल तुड़ाई के 10-12 दिन पहले निम्नलिखित तीन कीटनाशकों में से किसी भी एक का छिड़काव करें यथा नोवलुरॉन 10% ईसी@1.5 मिली प्रति लीटर पानी या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी@ 0.7 ग्राम प्रति लीटर पानी या लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 5% ईसी @0.7 मिली प्रति लीटर पानी। लीची में फल छेदक कीट का प्रकोप कम हो इसके लिए आवश्यक है की साफ-सुथरी खेती को बढ़ावा दिया जाय।

2.  लीची माइट (लीची की मकड़ी)
लीची माइट अति सूक्ष्मदर्शी मकड़ी प्रजाति का कीट है ,जिसके नवजात और वयस्क दोनों ही कोमल पत्तियों की निचली सतह, टहनियों तथा पुष्पवृन्तों से लिपटकर लगातार रस चूसते रहते हैं, जिससे पत्तियाँ मोटी एवं लम्बी होकर मुड़ जाती है और उन पर मखमली (भेल्वेटी) रुआं सा निकल जाता है जो बाद में भूरे या काले रंग में परिवर्तित हो जाता है तथा पत्ती में गड्ढे बन जाते है। पत्तियाँ परिपक्व होने के पहले ही गिरने लगती हैं, पौधे बहुत ही कमजोर हो जाते हैं और शाखावो में फल बहुत कम लगते है। इस कीट की रोकथाम के लिए नवजात पत्तियों के निकलने  से पहले एवं फल की कटाई के बाद संक्रमित टहनियों को काट कर हटा देना चाहिए। जुलाई महीने में 15 दिनों के अंतराल पर क्लोरफेनपीर 10 ईसी @3 मिलीलीटर प्रति लीटर या प्रोपारगिट 57 ईसी @3 मिली लीटर प्रति लीटर के दो छिड़काव करना चाहिए। अक्टूबर महीने में  नए संक्रमित टहनियों की कटनी छंटनी करके क्लोरफेनपीर 10 ईसी @ 3 मिलीलीटर प्रति लीटर या प्रोपारगिट 57 ईसी @ 3 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करने से लीची माईट की उग्रता में भारी कमी आती है।

3.  शूट बोरर (टहनी छेदक)
इस कीट के कैटरपिलर (पिल्लू) लीची की नई कोपलों के मुलायम टहनियों से प्रवेश कर उनके भीतरी भाग को खाते हैं, इससे टहनियां सूख जाती हैं और पौधों की बढ़वार रुक जाती है। इस कीट के प्रबंधन  के लिए इस कीट से आक्रांत टहनीयो को तोड़कर जला देना चाहिए एवं सायपरमेथ्रिन की 1.0 मि.ली. दवा प्रति लीटर की दर से पानी में घोलकर नवजात पत्तियों के आने के समय 7 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करने से इस कीट की उग्रता में कमी आती है।

4. लीची बग
यह कीट बिहार में मार्च-अप्रैल एवं जुलाई-अगस्त के महीने में लीची बग का प्रकोप ज्यादा देखा जाता है। इसके नवजात और वयस्क दोनों ही नरम टहनियों, पत्तियों एवं फलों से रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देते हैं व फलों की बढ़वार रुक जाती है। वृक्ष के पास जाने पर एक विशेष प्रकार की दुर्गंध से इस कीड़े के प्रकोप का पता आसानी से लगाया जा सकता है। इससे बचाव के लिए नवजात कीड़ों के दिखाई देते ही  फ़ॉस्फामिडान नामक कीटनाशक की 1.5 मि.ली. दवा प्रति लीटर की दर से पानी में  घोलकर  दो छिड़काव 10-15 दिनों के अंतराल पर करें।

5. बार्क इटिंग कैटरपिलर (छिलका खाने वाले पिल्लू) 
इस कीट के कैटरपिलर (पिल्लू )बड़े आकार के होते है जो पेड़ों के छिलके खाकर जिन्दा रहते हैं एवं छिलकों के पीछे छिपकर रहते हैं। तनों में छेद अपने बचाव के लिए टहनियों के ऊपर अपनी विष्टा की सहायता से जाला बनाते हैं। इनके प्रकोप से टहनियां कमजोर हो जाती हैं और टूटकर गिर जाती है। 
इस कीट के प्रबंधन के लिए छाल खाने वाले कैटरपिलर के प्रति अतिसंवेदनशील लीची के पौधों की किस्मों को उगाने से बचें। कीट से प्रभावित शाखाओं को इकट्ठा करके जला दें। छेद में लोहे के तार डालकर कैटरपिलर को मारें। प्रभावित हिस्से को पेट्रोल या मिट्टी के तेल में भिगोए हुए रुई के फाहे से साफ करें।सितंबर-अक्टूबर के दौरान एक सिरिंज का उपयोग करके छिद्र में 5 मिलीलीटर डाइक्लोरवोस इंजेक्ट करें और छेद को मिट्टी से बंद करें। कार्बोफुरन 3जी ग्रेन्यूल्स को 5 ग्राम प्रति छिद्र पर रखें और फिर इसे मिट्टी से सील कर दें। मोनोक्रोटोफॉस के साथ पैड 10 मिली प्रति पेड़ या ट्रंक को कार्बेरिल 50 डब्ल्यूपी के साथ 20 ग्राम प्रति लीटर पर स्वाब करें। जब अंडे से अंडे निकल रहे हों और कैटरपिलर छोटे हों तो नियंत्रण पौधे के लिए फायदेमंद साबित होगा। इन कीड़ों से बचाव के लिए बगीचे को साफ़ रखना श्रेयस्कर पाया गया है।