अप्रैल माह में केला की खेती में किए जाने वाले महत्वपूर्ण कृषि कार्य एवं इसमें लगने वाले आभासी तना (स्यूडोस्टेम) वीविल कीट का प्रबंधन कैसे करें?
अप्रैल माह में केला की खेती में किए जाने वाले महत्वपूर्ण कृषि कार्य एवं इसमें लगने वाले आभासी तना (स्यूडोस्टेम) वीविल कीट का प्रबंधन कैसे करें?

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह 
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवम्
सह निदेशक अनुसंधान
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय
पूसा, समस्तीपुर - 848 125

बिहार में केला कुल 34.64 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है, जिससे कुल 1526 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार की उत्पादकता 44.06 टन /हेक्टेयर है। राष्ट्रीय स्तर पर केला 880 हजार  हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है , जिससे कुल 30,008 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। केला की राष्ट्रीय उत्पादकता 34.10 टन /हेक्टेयर है। भारतवर्ष में, क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से बिहार 9वें नम्बर पर तथा उत्पादन एवं उत्पादकता की दृष्टिकोण से 7वें नम्बर पर आता है। बिहार में केला के क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने की असीम सम्भावनायें हैं। इसके लिए आवश्यक है की केला विकास की विभिन्न अवस्थाओं के लिए आवश्यक कृषि कार्य किए जाय। जून- जुलाई में उत्तक संबर्धन से लगाया गया केला का पौधा इस समय 8-9 महीने का हो गया होगा, अब इसमे हल्की जुताई-गुड़ाई करने के बाद प्रति केला 200 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश एवं 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें तथा मिट्टी चढ़ा दे, क्योकि अब इसमे फूल आने ही वाला है। ज्ञातव्य हो की बिहार में केला के लिए 300 ग्राम नत्रजन, 200 ग्राम फास्फोरस एवम् 300 ग्राम पोटाश तत्व के रूप प्रति पौधा देने की अनुसंशा किया जाता हैं एवम् सलाह दिया जाता है की उपरोक्त उर्वरकों की मात्रा को तीन या चार बराबर बराबर हिस्से मे बाट दिया जाय। जब चार हिस्से मे देना हो तो 0,3,6,9 वे महीने में यदि 3 हिस्से मे देना हो तो 0,4,8 महीने में ऊर्वरकों को देना चाहिए।

सूखी एवं रोगग्रस्त पत्तियों को तेज चाकू से समय-समय पर काटते रहना चाहिए। येसा करने से रोग की सान्ध्रता भी घटती है एवं  रोग का फैलाव भी कम होता है। हवा एवं प्रकाश नीचे तक पहुचता रहता है, जिससे कीटों की संख्या में भी भारी कमी आती  है। अधिकतम उपज के लिए एक समय में कम से कम 13-15 स्वस्थ पत्तियों का होना आवश्यक होता है। आवश्यकतानुसार हल्की- हल्की  सिचांई करे। गर्मियों के मौसम में 3-4 के अंतराल में पानी देना चाहिए। यदि पत्तियों या पौधों में  किसी भी प्रकार का सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दिखाई दे तो अविलंब उस कमी को दूर करने के लिए उसका छिड़काव करें। उपरोक्त सभी उपाय आगामी केला की उपज को सीधे प्रभावित करेगा।

जब केला की फसल को खुटी फसल के रुप (Ratoon crop) में लेते हैं तो उसमे आभासी तना बेधक कीट की समस्या देखने को मिलती है। आभासी तना (स्यूडोस्टेम) से आक्रांत पौधे को आभासी तना (स्यूडोस्टेम) के आधार से काटें और 100 मिलीलीटर बेवेरिया बेसियाना (@3 मि.ली. प्रति लीटर) या क्लोरपाइरीफोस (@2.5 मि.ली. प्रति लीटर) + स्टिकिंग एजेंट (@1 मि.ली. प्रति लीटर) से उपचारित करें।

इस कीट से बचाव के लिए क्लोरोपाइरीफोस (@2.5 मिली प्रति लीटर + 1 मिली स्टिकिंग एजेंट) या एजेडिरैचिन 1% (@2.5 मि.ली. प्रति लीटर) 5 महीने पुराने केले के तने पर रगड़कर लगाया जा सकता है।

बंच की कटाई के बाद,आभासी तना (स्यूडोस्टेम) को 30 सेमी लंबाई के टुकड़ों में काटा जा सकता है और कीट को संग्रह करने के लिए जाल के रूप में उपयोग किया जाता है। इस कीट की उग्रता कम हो इसके लिए आवश्यक है की केला के बाग की निराई गुड़ाई  किया जाय एवम्  स्वच्छ खेती को बढ़ावा देने की आवश्यक है।