आइए दिखाए फलों की रानी, लीची के फूलों की दुनिया
आइए दिखाए फलों की रानी, लीची के फूलों की दुनिया

प्रोफेसर (डॉ) एस.के. सिंह 

प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवम्
सह निदेशक अनुसंधान
डा. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय
पूसा, समस्तीपुर - 848 125

फलों की रानी लीची में जब फूल आते है उस समय का दृश्य अत्यंत मनोहर होता है। उसकी खूबसूरती का वर्णन करना अत्यंत कठिन कार्य है। लीची के बाग के बगल से गुजरने पर एक अत्यंत कर्ण प्रिय ध्वनि सुनाई देती है। बाग में मधुमक्खियों के झुंड अपने कार्य में लीन होकर परागण का कार्य कर रहे होते है। इस समय कोई भी होशियार बागवान इनके कार्य में किसी भी प्रकार का कोई भी छेड़छाड़ नही करता है क्योंकि वह जानता है की यदि छेड़छाड़ करेंगे तो ये मधुमखिया जो अपने कार्य में लीन है नाराज हो जाएगी एवम बाग से चली जायेगी जिसके कारण से परागण का कार्य बीच में ही छूट जाएगा एवम इस तरह से अपूर्ण परागण होने की वजह से फूल एवं फल झड़ जाएंगे। होशियार एवम चौकन्ना बागवान इन मधुमक्खियों का बाग में स्वागत करने के लिए लीची के बाग में 20 से 25 मधुमक्खियों के बॉक्से प्रति हेक्टेयर की दर से रखता है। मधुमक्खी के बॉक्से रखने से दो फायदे है पहला बाग में बहुत अच्छे से परागण होता है दूसरे उच्च कोटि की शहद भी प्राप्त होता है जिससे बागवान को अतरिक्त लाभ भी मिल जाता है।

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आइए आपको लीची के फूलों की दुनिया से भी परिचय कराते है। लीची के फूल छोटे, पीले-सफेद, कार्यात्मक रूप से नर या मादा और पंखुड़ी वाले होते हैं। कार्यात्मक रूप से नर फूलों में छह से दस पुंकेसर होते हैं। आमतौर पर मादा चक्र के साथ नर पुष्पन के दो चरण होते हैं: एक वास्तविक नर पुष्प पहले और फिर कार्यात्मक रूप से नर पुष्प जो पुष्पन अवधि के अंत में खुलता है। दूसरे नर फूल में अल्पविकसित बाइकार्पलेट स्त्रीकेसर होता है। यह पहले चरण में अनुपस्थित रहता है। कार्यात्मक रूप से मादा फूलों में छह से दस स्टैमिनोड होते हैं और एक कार्यात्मक, द्विअंडपी स्त्रीकेसर होता है। नर फूलों के अंतिम चरण में आमतौर पर मादा फूलों को निषेचित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अधिकांश पराग की आपूर्ति होती है। फूल 75 सेंटीमीटर (30 इंच) तक बड़े, कई शाखाओं वाले टर्मिनल क्लस्टर में बढ़ते हैं। जब फूल खिले हो उस समय किसी भी प्रकार का कोई भी कृषि रसायन खासकर कीट नाशक का प्रयोग नही करना चाहिए क्योंकि इससे फायदा तो कोई नही होगा बल्कि भारी नुकसान होगा। लीची के फूल के कोमल हिस्से इस रसायनों के प्रयोग से घायल हो सकते है एवम मेहमान मधुमक्खी नाराज होकर बाग छोड़ कर चले जायेंगे।