आइए जानते है जाड़े के मौसम में आम के नए एवम पुराने बागों में क्या करें क्या न करें?
आइए जानते है जाड़े के मौसम में आम के नए एवम पुराने बागों में क्या करें क्या न करें?

प्रोफ़ेसर (डॉ.) एसके सिंह
एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना, डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय,
पूसा , समस्तीपुर बिहार

उत्तर भारत में जाड़े के मौसम में वातावरण में बहुत परिवर्तन देखने को मिलता है। कभी कभी तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है। कभी कभी कई कई दिन तक कोहरे छाए रहते है, सूर्य की किरणे देखने को ही नही मिलती है। जिन फल फसलों में दूध जैसे स्राव बहते है, वे जाड़े के मौसम में कुछ ज्यादा ही प्रभावित होते है, क्योंकि जाड़े में अत्यधिक कम तापक्रम की वजह से स्राव पेड के अंदर ठीक से नहीं बहते है जिसकी वजह से पौधे पीले होकर बीमार जैसे दिखने लगते है। इस तरह के वातावरण में बागवान यह जानना चाहते है की क्या करे की कम से कम नुकसान हो एवम अधिकतम लाभ मिले।
फल फसलों की प्रकृति बहुवर्षीय होती है इसलिए इनका रखरखाव खाद्यान्य फसलों से एकदम विपरीत होता है। आम में फूल फरवरी में आता है। इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है की क्या करें एवम क्या न करें अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना बढ़ जाएगी।

आम के नए एवम पुराने बागों की देखभाल
जाड़े के मौसम में आम के नए बागों के पौधों को पाले से बचाना अति आवश्यक है। जनवरी में नर्सरी में लगे पौधों को पाले से सुरक्षा के लिए घास फूस या पुआल से बने छप्पर से ढककर छोटे पौधों को बचाना चाहिए। पाले से बचाव के लिए बाग में समय-समय पर हल्की सिंचाई भी करते रहना चाहिए। बागों की निराई-गुड़ाई एवं सफाई भी करते रहना चाहिए।
आम के बड़े पेड़ों में जिसमे बौर आने वाले हो विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। इन्हीं पर फलोत्पादन निर्भर करेगा। जनवरी के प्रथम सप्ताह में आने वाले बौर में फल नहीं लगते और ये अक्सर गुच्छे का रूप धारण कर लेते हैं। अतः ऐसे बौर को काटकर नष्ट कर देना चाहिए। आम में उर्वरक देने का यह सही समय जून से लेकर 15 सितंबर तक है। इस समय 10 वर्ष या 10 वर्ष से बड़े आम के पेड़ों में 500 ग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फॉस्फोरस  तथा 750 ग्राम पोटाश प्रति पौधा तत्व के रूप में  प्रयोग करते हैं। इन्हें मिट्टी में मिलाकर हल्की सिंचाई कर दें। यदि पेड़ 10 वर्ष से छोटा है तो उपरोक्त डोज में 10 से भाग दे तथा पेड़ की उम्र से गुणा कर दे वही उस पेड़ की खाद एवं उर्वरक की मात्रा होगी। यदि आप ने उपरोक्त खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं कर पाए हो तो इस समय कुछ नही करना चाहिए। उपरोक्त खाद एवं उर्वरकों की मात्रा का प्रयोग आम में पूरी तरह से फल लग जाने के बाद करना चाहिए। आम के बागों इस समय कोई भी कृषि कार्य नहीं करना चाहिए अन्यथा बाग में आम के पेड़ों मंजर आने के स्थान पर नए नए पत्ते निकल आयेंगे। दिसंबर के अंत में बाग की ऊपरी सतह की बहुत हल्की गुड़ाई करके खरपतवार मुक्त करने के बाद आम के बाग में मीलीबग (गुजिया) के बचाव के लिए आम के तने पर पॉलीथीन की 2.5 फुट चौड़ी पट्टी सुतली से बांध दें तथा इसके ऊपर ग्रीस लगा दे एवं 250 ग्राम प्रति वृक्ष की दर से क्लोरपॉयरीफॉस धूल को पेड़ के चारों ओर की मिट्‌टी में मिला देना चाहिए। इसके अतिरिक्त, भूमि की सतह पर परभक्षी ब्यूवेरिया बेसियाना @ 2 ग्राम प्रति लीटर, 1×10 पावर 7 बीजाणु प्रति मिलीलीटर अथवा 5 प्रतिशत नीम बीज के गिरी सत्‌ का प्रयोग प्रौढ़ कीटों को मारने के लिए करें। 
फरवरी में पेड़ के चारों तरफ खूब अच्छी तरह से निराई गुड़ाई करें। मैंगो हॉपर (फुदका) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड की 1 मिली लीटर दवा को प्रति दो लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तथा चूर्णिल आसिता रोग से बचाव के लिए केराथेन नामक फफुंदनाशक की 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव फरवरी के अंतिम सप्ताह में अवश्य करें। तापक्रम काम हो मंजर काम या धीरे धीरे निकल रहे हो तो कैराथेन की जगह घुलनशील गंधक फफुंदनाशी की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से मंजर भी अच्छे से निकलते है एवम पाउडरी मिल्डीव नामक रोग भी कम लगता है। ध्यान रखने योग्य बात है कि इन्हीं दिनों पौधों पर फूल आते हैं और यदि किसी भी कीटनाशी का प्रयोग फूलों पर किया गया तो परागण करने वाले कीट आपके बाग में नही आयेंगे, संपूर्ण परागण न होने से कम फल लगेंगे। फरवरी में छोटे आम के पौधों के ऊपर से छप्पर हटा दें।