बदला खेती करने का तरीका तो धरती उगलने लगी सोना
बदला खेती करने का तरीका तो धरती उगलने लगी सोना
Android-app-on-Google-Play

 

पश्चिमबंगाल। सिलीगुड़ी व आसपास के कुछ किसानों ने बदला खेती करने का तरीका तो धरती उगलने लगी सोना। इन किसानों की किस्मत ही बदल गई है। संयुक्त राज्य अमेरिका के पैराग्वे का 'ईस्टीविया' (मीठी तुलसी), अमेरिकी मूल की ही 'रेड रैस्पबेरी' फ्रांस मूल की 'स्ट्रॉबेरी' दक्षिण-पूर्व एशिया का 'ड्रैगन फ्रूट' व ताइवान मूल का 'रेड लेडी पपाया' आदि फल व सब्जियां अब उत्तर बंगाल में भी उगने लगी हैं। इससे न सिर्फ खेती-किसानी की सूरत-ए-हाल बल्कि बहुत से किसानों की तकदीर भी बदली है। यह सब उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय (एनबीयू) के बायो टेक्नोलोजी विभाग अधीनस्थ सेंटर फॉर फ्लोरिकल्चर एंड एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) के शोध व मेहनत के बलबूते संभव हो पाया है।

 

वर्ष 2006 में स्थापित इस 'कोफाम' द्वारा तब कुछ किसानों के साथ मिल कर शुरू किया गया कामकाज आज विस्तृत फलक ले चुका है। पूरे उत्तर बंगाल व पड़ोसी राज्य बिहार आदि जगहों से आज डेढ़ हजार से अधिक किसान इससे संबद्ध हैं। यहां के विशेषज्ञ समय-समय पर अपने यहां या अन्य जगहों पर या सीधे खेत-खलिहान जाकर बैठक, सभा, सेमिनार, कार्यशाला व तकनीकी प्रशिक्षण आदि के माध्यम से किसानों को 'नई खेती' की ओर आकर्षित करने में लगे हैं।

 

किसानो को इन प्रयासों ने बड़े बेहतर नतीजे दिए हैं। दार्जिलिंग जिला के सिलीगुड़ी महकमा के फांसीदेवा प्रखंड अंतर्गत निजबाड़ी के रहने वाले शांतिमय राय कल तक केवल लघु चाय उत्पादक किया करते थे। अब, अच्छे स्ट्रॉबेरी उत्पादक भी हैं। गत तीन वर्षो से अपनी सात कट्ठा जमीन पर हर साल स्ट्रॉबेरी की खेती करते हैं। सितंबर-अक्टूबर में लगभग 1400 पौधे लगाते हैं, और अप्रैल में फसल तैयार हो जाती है। सिलीगुड़ी के स्थानीय बाजारों में ही थोक में आकार व रंग के अनुरूप अपनी स्ट्रॉबेरी को 350 से 450 रुपये किलो बेच आते हैं। लाख-डेढ़ लाख रुपये की कमाई हो जाती है। वही स्ट्रॉबेरी बाजार में खुदरा 750 से 1000 रुपये किलो बिकती है।

 

जलपाईगुड़ी के मयनागुड़ी के गोपाल विश्वास पहले दवा दुकानों में दवाएं सप्लाई करने का काम करते थे। वह भी कोफाम से जुड़े और स्ट्रॉबेरी की खेती में जुट गए। आज उनके साथ लगभग 50 किसान स्ट्रॉबेरी उत्पादन कर हालात बदलने में लगे हैं। इसी तरह उत्तर दिनाजपुर जिले के इस्लामपुर महकमा अंतर्गत कानकी के पवित्र राय पारंपरिक किसान से अब 'रेड लेडी पपाया' (लाल मादा पपीता) के अच्छे उत्पादक हो गए हैं।

 

जलपाईगुड़ी जिला के बेलाकोबा निवासी, पेशे से प्राथमिक शिक्षक विनय दास भी नई खेती की ओर आकर्षित हुए। स्ट्रॉबेरी के साथ ही कलर्ड कैप्सिकम (रंगीन शिमला मिर्च), केला, पपीता व मौसमी सब्जियों की ऑर्गेनिक (जैविक) खेती शुरू की। आज वह अकेले नहीं हैं 50-60 किसानों का एक समूह उनके साथ है। ऐसे ही अनेक किसान हैं, जिनके हालात बदले हैं। वर्तमान में हॉर्टिकल्चरल में ये सफलताएं नजर आ रही हैं। इससे पूर्व फ्लोरिकल्चरल में ऑर्किड, मेरी गोल्ड (गेंदा फूल), जर्वेरा (ग्लैडयोलस) व एशियाटिक लिलि आदि फूलों के उत्पादन की सफलता भी रही है।

 

इसके अलावा गरीबी रेखा से नीचे के अनेक भूमिहीन परिवारों की सूरत बदलने को भी 'कोफाम' प्रयासरत रहा है। हाल ही में सरकार की ओर से पट्टा के तहत तीन-तीन कट्ठा जमीन पाने वाले अनेक भूमिहीन परिवारों विशेष कर महिलाओं को 'कोफाम' की ओर से 'किचन गार्डेनिंग' (रसोई बागवानी) का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। साथ ही उन्हें बीज, पौधे व आवश्यक उपकरण भी मुहैया कराए जा रहे हैं, ताकि वे कम से कम अपने परिवार की जरूरतों लायक सब्जियों आदि का उत्पादन कर पाएं। उनकी व उनके परिवार की पौष्टिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। 'कोफाम' के तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पांडेय ने बताया कि यहां नक्सलबाड़ी व खोरीबाड़ी प्रखंड में अब तक लगभग डेढ़ सौ महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

 

उन्होंने कहा कि यहां किसान अब नई खेती की और अग्रसर होने  लगे है। स्ट्रॉबेरी, रेड लेडी पपाया, रंगीन शिमला मिर्च व मशरूम उत्पादन में हमारे प्रयासों ने बेहतर सफलता पाई है। ज्यादा से ज्यादा किसान इससे जुड़ने लगे हैं। यहां से उत्पादित हो रहे स्ट्रॉबेरी की गुणवत्ता, रंग, आकार व स्वाद इतने अच्छे हैं कि ओमान सरकार के अधीनस्थ मस्कत में लैंडस्केप आर्किटेक्ट एवं एक्सपोर्ट बिजनेस से जुड़े बिहार मूल के रविशंकर हाल ही में यहां की स्ट्रॉबेरी लेकर मस्कत गए हैं। वह मस्कत में यहां की स्ट्रॉबेरी के आयात की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं।

 

उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट का भी विधान नगर व कूचबिहार में कुछ जगहों पर वाणिज्यिक उत्पादन किया गया है। रेड रैस्पबेरी, बीज रहित खीरा व अन्य कुछ फलों-सब्जियों के उत्पादन में किसान अपेक्षित दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इनकी खेती महंगी है। पॉली हाउस, ग्रीन हाउस आदि निर्माण करना पड़ता है। इसके साथ ही इनकी फसलें बहुत जल्द खराब हो जाती हैं तो इसमें जोखिम ज्यादा है। इसलिए अपेक्षित रूप में किसान इसमें दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। वे कम खर्च, कम समय, कम जोखिम में ज्यादा उत्पादन व ज्यादा मुनाफा चाहते हैं। अब हमारे कोफाम की ओर से जगह-जगह ऑर्गेनिक क्लब बना कर किसानों को ज्यादा से ज्यादा जोड़ा जा रहा है व प्रशिक्षित एवं सजग किया जा रहा है।

 

इसमें सरकारी मदद बहुत जरूरी

उत्तर बंगाल में स्ट्रॉबेरी उत्पादन के विस्तार में हमने गजब की सफलता पाई है। ईस्टीविया, ड्रैगन फ्रूट, रेड रैस्पबेरी आदि के उत्पादनों में अपेक्षित परिणाम नहीं दिख रहा। वह इसलिए कि इनकी खेती महंगी व जोखिम भरी है। मगर, सबसे बड़ी समस्या सहायक उद्योगों का न होना है। नई खेती से जो फल व सब्जियां उत्पादित हों उसके विपणन की व्यवस्था, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, ब्रांडिंग आदि की आवश्यकता सर्वोपरि है। हमने सरकार को प्रस्ताव भेजा पर अभी तक कोई रेस्पांस नहीं मिला। इसके अलावा पर्याप्त आधारभूत संरचना, मानव संसाधन, फंड आदि की कमी से भी कोफाम जूझ रहा है।  ये समस्याएं दूर हो जाएं तो तस्वीर और दिन दूनी-रात चौगुनी बदलेगी। खैर, सीमित संसाधनों में ही बेहतर परिणाम को हम तत्पर हैं। 

- डॉ. रंधीर चक्रवर्ती, संयोजक कोफान