हरी मटर की खेती: कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल, जानिए पूरी जानकारी

हरी मटर की खेती: कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल, जानिए पूरी जानकारी
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Kisaan Helpline

Crops Jul 22, 2025

देशभर में सब्जी वाली मटर यानी हरी मटर की खेती काफी लोकप्रिय होती जा रही है। खासतौर पर मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों के कई हिस्सों में किसान इसे सब्जी फसल के रूप में अपनाते हैं। यह मटर न केवल हमारे खाने के लिए स्वादिष्ट और पौष्टिक है, बल्कि इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिलता है।

 

हरी मटर क्यों है खास?

·         हरी मटर में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन A और B, आयरन, फॉस्फोरस और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं।

·         यह शुगर कंट्रोल करने में मदद करती है और पाचन को भी सुधारती है।

·         मटर की फलियों से निकले दाने खाने के काम आते हैं, वहीं उसका भूसा मवेशियों के लिए अच्छा चारा बनता है।

·         हरी मटर का उपयोग सब्जी, सूप, फ्रोजन फूड और डिब्बाबंद उत्पादों में किया जाता है।

 

खेती के लिए मौसम और तापमान

हरी मटर को ठंडी और नम जलवायु पसंद होती है। बीज अंकुरित करने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा रहता है। यदि तापमान अधिक हो जाए, तो फलियों में मिठास कम हो जाती है।

 

कौन-सी ज़मीन सबसे उपयुक्त?

मटर एक दलहनी फसल है, इसलिए इसे किसी भी ऐसी ज़मीन में उगाया जा सकता है जिसमें नमी हो। दोमट और मटियार दोमट मिट्टी, जिसका पीएच 6.0 से 7.5 के बीच हो, मटर की खेती के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है।

 

हरी मटर की उन्नत किस्में

·         अगेती किस्में: ए.पी.-3, अगेता, अर्किल, हरभजन

·         मध्यम अवधि की किस्में: आजाद पी

 

इन किस्मों को उनके जलवायु, रोग प्रतिरोधक क्षमता और उत्पादन क्षमता के आधार पर चुना जाता है।

 

बुआई का समय और बीज की मात्रा

हरी मटर की बुआई मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर के बीच करना सबसे बेहतर होता है।

·         अगेती किस्मों के लिए 100-120 किलो बीज प्रति हेक्टेयर

·         मध्यम या देर से बोई गई किस्मों के लिए 80-90 किलो बीज प्रति हेक्टेयर

 

बीज उपचार का तरीका

बीज को राइजोबियम बैक्टीरिया से उपचारित करना जरूरी है। इससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है और फसल की गुणवत्ता सुधरती है।

 

बीज उपचार विधि:

·         गुड़ का 10% घोल तैयार करें और उसे उबालकर ठंडा करें।

·         इस घोल में राइजोबियम मिलाएं।

·         इस मिश्रण को बीज पर अच्छे से छिड़कें और मिलाएं।

·         बीजों को छांव में सुखाएं, लेकिन कभी भी धूप में न सुखाएं।

 

सिंचाई की जानकारी

·         पहली सिंचाई फूल निकलते समय (लगभग 45 दिन बाद) करें।

·         दूसरी सिंचाई फली बनने के समय (60 दिन बाद)।

·         यदि पानी की कमी है तो केवल एक सिंचाई भी फायदेमंद हो सकती है।

 

खरपतवार नियंत्रण

·         फसल को 35-40 दिन तक खरपतवारों से बचाना जरूरी होता है। इसके लिए 1-2 बार निराई-गुड़ाई करें।

·         अगर रसायनों का उपयोग करना हो तो फ्लूक्लोरेलिन (बेसालिन) की 1 किलो मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।

 

रोग और कीटों से बचाव

फली छेदक कीट:

यह कीट फलियों को अंदर से खाकर नुकसान करता है।

इससे बचाव के लिए:

ट्राइजोफास (1 मि.ली./लीटर) या

प्रोफेनोफास (0.75-1 मि.ली./लीटर) पानी में मिलाकर छिड़कें।

 

गेरुई रोग (फफूंदी जनित):

इससे बचाव के लिए: डाइथेन एम-45 या डाइथेन जेड-78 (2.25 किलो/1000 लीटर पानी) का छिड़काव करें।

 

 चूर्णिल फफूंद:

·         यह रोग सफेद पाउडर जैसे धब्बों के रूप में दिखाई देता है।

·         घुलनशील गंधक (3 किलो/1000 लीटर पानी) से छिड़काव करें।

 

तुड़ाई और उत्पादन

·         मटर की तुड़ाई सुबह या शाम के समय करना चाहिए ताकि गुणवत्ता बनी रहे।

·         एक फसल में लगभग 3-4 बार तुड़ाई की जाती है।

 

उपज:

·         अगेती किस्में: 3-4 टन/हेक्टेयर

·         मध्यम किस्में: 6-7 टन/हेक्टेयर

 

भंडारण की व्यवस्था

हरी मटर को 32°F तापमान और 85-90% नमी में 2 सप्ताह तक ताजा रखा जा सकता है। इसके लिए कोल्ड स्टोरेज सबसे अच्छा तरीका है।

 

हरी मटर की खेती किसानों के लिए कम लागत में अधिक लाभ देने वाली फसल है। इसकी खेती से न केवल बाजार में अच्छी कीमत मिलती है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। अगर वैज्ञानिक तरीके से बीज उपचार, सिंचाई, तुड़ाई और भंडारण किया जाए, तो किसान इससे अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

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