Mushroom (मशरुम)
Basic Info
मशरुम की खेती का प्रचलन भारत में करीब 200 सालों से है। हालांकि भारत में इसकी व्यावसायिक खेती की शुरुआत हाल के वर्षों में ही हुई है। मशरूम कवक वर्ग का एक पौधा है। इसका कवक जाल ही इसका फलभाग होता है जिसे मशरूम कहा जाता है। कुछ लोग मशरूम का अर्थ कुकुरमुत्ते से लगाते हैं। यह गलत है। वास्तव में कुकुरमुत्ता तो मशरूम की ही एक विषैली जाति होती है तो खाने योग्य नहीं होती। बीजों द्वारा उगाया गया मशरूम सौ फीसदी खाने योग्य होता है। आज इसकी गणना भरपूर विटामिनों वाली सब्जियों में की जाती है। हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान (शीतकालीन महीनों में) जैसे राज्यों में भी मशरुम की खेती की जा रही है। जबकि इससे पहले इसकी खेती सिर्फ हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पहाड़ी इलाकों तक ही सीमित थी। मशरुम प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स, फॉलिक एसिड का बेहतरीन श्रोत है। यह रक्तहीनता से पीड़ित रोगी के लिए जरूरी आयरन का अच्छा श्रोत है।
मशरूम मुख्यतः तीन प्रकार की होती है।
1. बटन मशरुम - बटन मशरुम सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। बड़े पैमाने पर खेती के अलावे मशरुम की खेती छोटे स्तर पर एक झोपड़ी में की जा सकती है।
2. ढिंगरी (घोंघा) - यह भी एक स्वादिष्ट एवं खाने-योग्य खुम्बी है जिसको कुछ गर्म क्षेत्र जैसे 20-28 डी०सेग्रेड तापमान पर उगाया जा सकता है। इस समय आर्द्रता भी 75-80 प्रतिशत होना आवश्यक है।
3. पुआल मशरुम (सभी प्रकार के) - यह भी एक मशरूम की किस्म है जो अत्यधिक स्वादिष्ट तथा मैदानी क्षेत्रों में पूरे वर्ष उगने वाली मशरूम है। इसकी खेती धान के पुआल पर सफलतापूर्वक की जा सकती है जहां पर 25 डी०सेग्रेड तापमान से कम रहता है। वहां मुश्किल खेती की जाती है जहां पर तापमान अधिक रहता है। अर्थात् 25-32 डी०सेग्रेड तापमान पर सुगमतापूर्वक उगाया जाता है।
Frequently Asked Questions
Q1: मशरूम कितने दिनों में उगाया जा सकता है?
Ans:
अधिकांश मशरूम 35 से 42 दिनों तैयार हो जाता हैं, हालांकि कुछ फसलें 60 दिनों के लिए काटती हैं, और फसल 150 दिनों तक चल सकती है। अच्छी फसल के के लिए हवा का तापमान 57 ° से 62 ° F के बीच होना चाहिए।Q3: लंबी अवधि के लिए कौन सा मशरूम लिया जा सकता है?
Ans:
ऑइस्टर मशरूम मध्यम तापमान पर 20 से 300°C और आर्द्रता 55-70% तक वर्ष में 6 से 8 महीने की अवधि तक बढ़ सकता है। इसकी वृद्धि के लिए आवश्यक अतिरिक्त नमी प्रदान करके गर्मी के महीनों में भी इसकी खेती की जा सकती है।