जानिए जायद सीजन में प्याज की सेट्स (गाँठे) तैयार करने का तरीका
जानिए जायद सीजन में प्याज की सेट्स (गाँठे) तैयार करने का तरीका
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उत्तरी भारत में, प्याज की खेती आमतौर पर रबी फसल के रूप में की जाती है, जबकि महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में इसकी खेती खरीफ और रबी दोनों मौसमों में की जाती है। खरीफ प्याज के मामले में महाराष्ट्र में सबसे अधिक क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है और फसल की कटाई अक्टूबर-दिसंबर के बीच की जाती है। भंडारण के दौरान कंदों के अंकुरण के कारण अक्टूबर के बाद फसल का भंडारण नहीं किया जा सकता है। उत्तर भारत के बाजार में रबी की फसल आने से पहले महाराष्ट्र में उगाई जाने वाली खरीफ फसल का प्याज अक्टूबर-अप्रैल तक उपलब्ध रहता है। सीमित उत्पादन और भारी परिवहन लागत के कारण इस अवधि के दौरान प्याज की कीमतें अधिक होती हैं। प्याज की खरीफ फसल की महत्ता को देखते हुए शाकीय विज्ञान संभाग, भा.कृ.अ. सं., नई दिल्ली ने उत्तरी भारत में प्याज की खरीफ फसल की संभावनाओं की पहल की। इस संभाग द्वारा सृजित प्रौद्योगिकी यहां नीचे दी गई है जिसे दिल्ली, हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेष, बिहार, राजस्थान तथा मध्यप्रदेष के किसानों ने अपने खेतों में अपनाया है।

किस्में: एन-53, एग्रीफाउंड डार्क रेड, बसवंत-780 और अर्का कल्याण, पूसा रिद्धि

पौध तैयार करनाः प्याज की पौध उठी हुई क्यारियों में तैयार की जानी चाहिए। बीज बोने से पहले मिट्टी का उपचार करना चाहिए। बीजों को क्यारियों में बोने से पूर्व कैप्टान के 0.3 प्रतिशत घोल से 5 लीटर प्रति वर्ग मीटर की दर से उपचारित करना चाहिए। उत्तर भारत के मैदानी भागों में बीजों की बुआई मध्य जनवरी से फरवरी के प्रथम सप्ताह तक कर देनी चाहिए। लगभग 15-20 ग्राम प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र। बीज बोना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि में लगाने के लिए 3.0 मीटर की 50-55 क्यारियाँ। क्षेत्रफल पर्याप्त है जिसमें 8 से 10 किग्रा बीज बोया जाता है।

रोपणः खरीफ प्याज के लिए प्याज की नर्सरी फरवरी में तथा सेट (कंद) मई में तैयार की जाती है। इन सेटों को जुलाई-अगस्त में ऊंचे टीलों पर लगाया जाता है। इसके अलावा जुलाई-अगस्त में सीधे पौध तैयार कर रोपाई की जा सकती है। लेकिन पैदावार सेट से ज्यादा होती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए लगभग 12-15 क्विंटल सेट की आवश्यकता होती है। खेत में 20-25 टन गोबर की खाद में 120 किग्रा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फास्फोरस तथा 90 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाते हैं। इसके अलावा 10-15 किग्रा/हेक्टेयर गंधक (सल्फर) भी मिलाना चाहिए। नवंबर-दिसंबर में खरीफ प्याज तैयार हो जाता है और एक हेक्टेयर से करीब 200 क्विंटल प्याज प्राप्त किया जा सकता है। खरीफ प्याज का भंडारण नहीं किया जा सकता है। इसलिए खुदाई के बाद करीब एक महीने के अंदर इसे बाजार में बेच देना चाहिए। चूंकि इस समय बाजार में प्याज की उपलब्धता कम होती है, इसलिए खरीफ प्याज की बिक्री आसानी से हो जाती है और मुनाफा भी खूब होता है.

कटाई: कटाई रोपण के लगभग 5 महीने बाद दिसंबर-जनवरी के दौरान की जाती है, जब पत्तियों में रंग फीका पड़ जाता है और कंदों को उचित आकार और समुचित रंग आने पर खुदाई के लिए तैयार हो जाता है। पौधे के ऊपरी भाग को बनाये रखते हुए कंदों की खुदाई की जाती है (कम तापमान के कारण वे सूखते नहीं हैं)। ऊपरी भाग को सुखाने के लिए फसल को कुछ दिनों के लिए खेत में ही रखा जाता है। बाद में पत्तियों को हटा दिया जाता है और कंदों को बाजार में भेजने से पहले 2-3 दिनों के लिए सुखाया जाता है।

भंडारण: बढ़वार को नियंत्रित करने तथा कंदों को सूखा तथा गठीला होने देने के लिए कटाई से 10 दिन पहले ही सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। एम एच-40 (मैलेइक हाइड्रेज़ाइड) घोल 2500 पी पी एम (मि.ग्रा./लीटर जल) का छिड़काव रोपण के 90-95 दिन बाद करने से भंडारण के दौरान कंदों में अंकुरण फूटने में कमी आती है।

उपजः खरीफ फसल की उपज 150-200 क्विंटल/हेक्टेयर है जोकि रबी फसल की तुलना में कम है। अच्छे प्रबंधन से उपज को 250 क्विंटल/हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है।