गर्मी के मौसम में लौकी की खेती करने वाले किसानों के लिए विशेष सलाह, इन बातों का रखें ध्यान, मिलेगा बढ़िया उत्पादन
गर्मी के मौसम में लौकी की खेती करने वाले किसानों के लिए विशेष सलाह, इन बातों का रखें ध्यान, मिलेगा बढ़िया उत्पादन
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भारत में गर्मी का मौसम शुरू हो गया हैं। इस बीच, कई किसान इस समय गर्मियों में बोई जाने वाली लौकी की फसल लगाने की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल, किसी भी फसल की खेती को लेकर किसानों के मन में सवाल जरूर होते हैं।
कुछ ऐसे ही सवाल लौकी की खेती करने वाले किसानों के मन में आते हैं। जैसे लौकी की खेती कैसे की जाए ताकि पैदावार बढ़े और उन्हें घाटा न उठाना पड़े। 
ग्रीष्मकालीन फसलों की बुआई मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जाती है। गर्मी के मौसम में अगेती फसल लगाने के लिए किसान इसके पौधे पॉली हाउस से खरीदकर सीधे अपने खेतों में लगा सकते हैं। इसके लिए किसी प्लास्टिक बैग या प्लग ट्रे में कोकोपीट, पेर्लाइट, वर्मीक्युलाईट को 3:1:1 के अनुपात में रखकर बुआई करें।

सब्जियों में लौकी एक महत्वपूर्ण कद्दू की सब्जी है। इसकी खेती के अलावा इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे रायता, कोप्ता, हलवा, खीर आदि बनाने में किया जाता है। यह कब्ज को कम करने, पेट साफ करने, खांसी या कफ को दूर करने में बहुत फायदेमंद है। इसके मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, आहारीय फाइबर, खनिज लवण के अलावा कई विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। लौकी की खेती पहाड़ी इलाकों से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों तक बड़े पैमाने पर की जाती है. निर्यात की दृष्टि से सब्जियों में लौकी का बहुत महत्व है।

लौकी की खेती करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

उन्नत किस्में
  • काशी गंगा: इस किस्म के पौधे मध्यम वृद्धि वाले और मजबूत तने वाले होते हैं। नोड्स कम दूरी पर विकसित होते हैं। फल मध्यम लंबा (30.0 सेमी) और फल का व्यास छोटा (6.90 सेमी) होता है। प्रत्येक फल का औसत वजन 800-900 ग्राम होता है। फलों की पहली तुड़ाई गर्मी के मौसम में 50 दिन बाद और बरसात के मौसम में 55 दिन बाद की जा सकती है. इस प्रजाति की औसत उत्पादन क्षमता 43.5 टन/हेक्टेयर है। है।
  • काशी बहार: इस संकर प्रजाति में पौधे की प्रारंभिक गांठों से फल बनना शुरू हो जाते हैं। फल हल्के हरे, सीधे, 30-32 सेमी. वजन 780-850 ग्राम और लंबाई 7.89 सेमी. व्यास के होते हैं. इसकी औसत उपज 52 टन/हेक्टेयर है। है। यह किस्म गर्मी एवं बरसात दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है। यह प्रजाति नदियों के किनारे उगने के लिए भी उपयुक्त है।
  • पूसा नवीन: इस किस्म के फल बेलनाकार, सीधे और वजन लगभग 550 ग्राम होते हैं। इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 35-40 टन/हेक्टेयर है. है।
  • अर्का बहार: इस प्रजाति के फल सीधे, मध्यम आकार के और वजन लगभग 1 किलोग्राम होते हैं। फल हल्के हरे रंग के होते हैं तथा इसकी उत्पादन क्षमता 40-50 टन/हेक्टेयर होती है। है।
  • नरेंद्र रश्मी के फल हल्के हरे और छोटे होते हैं। फलों का औसत वजन 1 किलोग्राम होता है। ऐसा होता है। इस किस्म की औसत उपज 300 किलोग्राम/हेक्टेयर है। है। पौधों पर ख़स्ता और मृदुल फफूंदी का प्रकोप कम हो जाता है।
  • पूसा संदेश के पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं और गांठों पर निकट दूरी पर शाखाएं विकसित होती हैं। फल गोल, मध्यम आकार के और वजन लगभग 600 ग्राम होते हैं। वर्षा ऋतु की फसलों के लिए फलों की पहली तुड़ाई 55-60 दिनों के बाद की जा सकती है और ग्रीष्मकालीन फसलों के लिए फलों की पहली तुड़ाई 60-65 दिनों के बाद की जा सकती है। औसत उपज 32 टन/हे. ऐसा होता है।
इस फसल की बुआई या रोपाई नालियाँ बनाकर की जाती है। जहां तक संभव हो नाली की दिशा उत्तर से दक्षिण की ओर करें तथा पौधे एवं बीज नाली के पूर्व में लगाएं। लौकी की खेती के लिए ग्रीष्म एवं आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम होती है। लौकी के पौधे अधिक ठंड सहन नहीं कर पाते। इसलिए इनकी खेती विशेष रूप से मध्य भारत और आसपास के क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड होता है।  इसका मतलब यह है कि इसकी खेती गर्म राज्यों में बहुत अच्छी तरह से की जाती है। इसके अलावा खेती के लिए सही भूमि का चयन, बुआई का समय, बीज उपचार, उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन जैसी बातों का भी ध्यान रखना जरूरी है। अगर किसान इन सभी बातों को ध्यान में रखकर खेती करें तो पैदावार तो बढ़िया होगी ही, मुनाफा भी दोगुना होगा।

लौकी की बुआई के लिए नाली कितनी दूरी पर रखनी चाहिए? 

गर्मियों में नाली से नाली की दूरी 3 मीटर होती है। बरसात के मौसम में नाले से 4 मीटर की दूरी रखें। पौधे से पौधे की दूरी 90 सेमी रखें।

लौकी की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

अच्छी उपज के लिए पोषण के रूप में 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 35 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 30 कि.ग्रा. तत्व के रूप में पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा को दो बराबर भागों में बाँटकर 4-5 पत्ती अवस्था पर शीर्ष ड्रेसिंग के रूप में तथा शेष आधी मात्रा फूल आने से पहले शीर्ष ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।

किसान भाई ऐसे करें कीटों से अपना बचाव

लाल बग का संक्रमण सबसे अधिक कब होता है?
कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल): 
ध्यान रखें कि खेत में पौधे पर 2 से 3 पत्तियाँ आने के समय से ही लाल कद्दू बीटल कीटों का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
इस कीट का वयस्क चमकीली नारंगी रंग का होता हैं तथा सिर, वक्ष एवं उदर का निचला भाग काला होता है। सूण्ड़ी जमीन के अन्दर पायी जाती है। इसकी सूण्डी व वयस्क दोनों क्षति पहुँचाते हैं। प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों पर ज्यादा क्षति पहुँचाते हैं। ग्रब इल्ली जमीन में रहती है जो पौधों की जड़ पर आक्रमण कर हानि पहुँचाती है। ये कीट जनवरी से मार्च के महीनों में सबसे अधिक सक्रिय होते है। अक्टूबर तक खेत में इनका प्रकोप ज्यादा रहता है। नये एवं छोटे पौधे आक्रमण के कारण मर जाते हैं। फसलों के बीज पत्र एवं 4-5 पत्ती अवस्था इन कीटों के आक्रमण के लिए सबसे अनुकूल है। प्रौढ़ कीट विशेषकर मुलायम पत्तियाँ अधिक पसन्द करते है। अधिक आक्रमण होने से पौधे पत्ती रहित हो जाते है।

नियंत्रण 
सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से भी प्रौढ़ पौधा पर नहीं बैठता जिससे नुकसान कम होता है। जैविक विधि से नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5-10 मिली./ लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत @ 0.5 मिली./लीटर की दर से दो या तीन छिड़काव करने से लाभ होता है। इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी जैसे डाईक्लोरोवास 76 ईसी. 1.25 मिली./ लीटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ईसी. 1 मिली.. लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल, @ 0.5 मिली./लीटर की दर से 10 दिनो के अन्तराल पर पर्षीय छिड़काव करें।
इस कीट को खत्म करने के लिए सूर्योदय से पहले छिड़काव करें। सूर्योदय के बाद ये कीड़े भूमिगत छिप जाते हैं। जहां तक संभव हो बरसात के मौसम में मचान पर पौधे उगाएं। इससे बरसात के मौसम में पौधों के सड़ने की समस्या कम होगी और पैदावार भी बेहतर होगी।