जानिए खरबूजे की उन्नत किस्मों के बारे में, जो दे सकती है आपको बेहतर कमाई
जानिए खरबूजे की उन्नत किस्मों के बारे में, जो दे सकती है आपको बेहतर कमाई
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किसान धान, गेहूं, चना, मक्का जैसी फसलों के साथ-साथ फलों और सब्जियों की खेती करके भी अपनी आय बढ़ा सकते हैं। गर्मी के मौसम में तरबूज और खरबूज की काफी मांग रहती है और बाजार में इनके अच्छे दाम भी मिलते हैं। इसे देखते हुए खरबूजे की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है।

खरबूजा ककड़ी वर्गीय कुल का विशिष्ट सदस्य है। भारत में इसकी खेती लगभग सभी प्रान्तों में की जाती है। देश के उत्तरी राज्य जिनमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं बिहार के शुष्क व अर्ध शुष्क क्षेत्रों में इसकी खेती बहुतायत में होती है। व्यापारिक मांग बढ़ने से महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु आदि पश्चिम-दक्षिण प्रांतो में भी इसकी खेती व्यापक रूप से होने लगी है। समूचे भारत वर्ष में खरबूजे का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाने लगा है। 

खरबूजे के पके फलों का उपयोग अकेले या दूसरे फलों के साथ मिलाकर फल सलाद के रूप में भी किया जाता है। इसके फलों के छोटे-छोटे टुकड़ों में शक्कर (चीनी) मिला कर स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में भी खाया जाता है। कच्चे फलों को सब्जी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। ग्रामीण परिवेश में खरबूजे के छिलकों को ताजा या सुखा कर सब्जी बनाने के काम में लिया जाता है। इसके बीजों की गीरी का उपयोग मेवे, विभिन्न प्रकार के मिष्ठान तथा शीतल पेय पदार्थ बनाने में किया जाता है।

मार्च-अप्रैल में गेहूं की कटाई के बाद खेत खाली हो जाएंगे। ऐसे में किसान खाली पड़े खेतों में खरबूजे की खेती कर बेहतर मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप भी खरबूजे की खेती करने की सोच रहे हैं तो हम आपको खरबूजे की टॉप किस्मों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो आपको बेहतरीन कमाई दे सकती हैं।

खरबूजे की उन्नत किस्में

खरबूजे में स्थानीय एवं उन्नत किस्में बहुत हैं जो अपने क्षेत्र विशेष में अधिक प्रचलित हैं। स्थानीय किस्मों में उत्पादकता एवं गुणवत्ता स्थिर नहीं होने के उपरान्त भी इनका प्रयोग जारी है। जबकि देश में क्षेत्रवार खरबूजे की उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। उन्नत एवं संकर किस्मों में अधिक उत्पादन एवं सुनिश्चित गुणवत्ता युक्त उपज निश्चित है जिससे बाजार में एक समान रूप के विश्वसनीय फल उपलब्ध कराए जा सकते हैं। कुछ प्रमुख किस्मों का वर्णन निम्न प्रकार है:-

खरबूजे की हरा मधु किस्म

इस किस्म का विकास पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा किया गया है। फल गोलाकार तथा हरे, सफेद रंग के होते हैं, जिन पर हरी धारियां पाई जाती है। फल का गूदा भी हल्का हरा होता है जिसमें 12 से 15 प्रतिशत तक मिठास होती है। यह एक पछेती किस्म है। इस किस्म के पौधों की औसतन लम्बाई 2.5 मीटर होती है तथा फलों का औसतन भार एक किलोग्राम होता है। यह किस्म व्यापक क्षेत्र के लिए अनुकूल है। इस किस्म के फलों की भण्डारण एवं परिवहन क्षमता कम होती है। यह प्रजाति चूर्णीय आसीता एवं मृदुरोमिल आसिता रोग के प्रति काफी संवेदनशील है।

खरबूजे की पूसा शरबती किस्म

इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा श्कुटामाश् नामक वंशक्रम को एक अमरीकी किस्म श्कैन्टेलूप रेजिस्टैन्टश के साथ संकरित करा कर किया गया है। यह अगेती किस्म है। नदी के पाटों में खेती के लिए इस किस्म को उपयुक्त माना गया है। इसके फल गोल, छिलकों पर एक जाल सा होता है जिस पर हरी धारियां पाई जाती हैं। गूदा मोटा एवं फलों में बीच का खाली भाग कम होता है। गूदे का रंग नारंगी एवं मिठास 11 से 12 प्रतिशत तक होती है। फल का औसत भार 800 ग्राम तथा पौधों की औसत लम्बाई 1.5 मीटर होती है।

खरबूजे की पूसा मधुरस किस्म

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली से विकसित इस किस्म के फल गोल, चपटे, गहरे हरे रंग के धारी युक्त होते हैं। फल का गूदा नारंगी रंग का तथा रसीला होता है जिसमें 12 से 14 प्रतिशत तक मिठास होती है। फलों का औसतन भार 1.0 किलोग्राम होता है। इस किस्म की बेलों में फैलाव अधिक होता है। फसल 90 से 95 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।

खरबूजे की पूसा रसराज किस्म

यह एक संकर किस्म है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली से विकसित किया गया है। फल चिकने, लम्बोत्तर व धारी रहित होते हैं। गूदा हरा तथा बहुत मीठा होता है जिसमें 12 से 13 प्रतिशत शर्करा होती है। फल का औसत वजन 1.0 किग्रा होता है। फल तुड़ाई 75 से 80 दिन बाद प्रारम्भ हो जाती है।

खरबूजे की दुर्गापुरा मधु किस्म

कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा, जयपुर द्वारा विकसित इस किस्म के फल मध्यम आकार के लम्बोत्तर होते हैं। यह एक अगेती किस्म है तथा फलों का औसत वजन 500 से 700 ग्राम होता है। छिलका चिकना एवं हरा-पीलापन लिए होता है। फल का गूदा हल्का हरा, स्वादिष्ट एवं रसीला होता है। गूदे में 12-14 प्रतिशत तक मिठास होती है। फल का बीज वाला भाग बड़ा होता है।

खरबूजे की पंजाब सुनहरी किस्म

इस किस्म को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना ने विकसित किया है। यह एक अगेती किस्म है। फल गोलाकार एवं औसतन 1.00 किलोग्राम भार के होते हैं। छिलका हल्का हरा तथा मोटा होता है। गूदा मोटा एवं नारंगी रंग का रसीला होता है जिसमें 11.0 प्रतिशत मिठास होती है। इस किस्म के फल भण्डारण एवं परिवहन के लिए काफी उपयुक्त हैं। इसमें चूर्णीय आसीता एवं मृदुरोमिल आसिता रोगों का प्रभाव नहीं होता है।

खरबूजे की एम.एच.-10 किस्म

इस किस्म को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से मादा पितृ (डब्लू आई 998) और नर पितृ (पंजाब सुनहरी) के बीच संकरण से विकसित किया गया है। इस किस्म के पौधे मध्यम बढ़वार लिए होते हैं। फल गोल जिनका औसत वजन 900 ग्राम होता है। गूदा मोटा एवं हल्का दूधिये रंग का एवं रसीला होता है।

खरबूजे की पंजाब हाइब्रिड किस्म

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा नर बध्य लाइन (एम. एस.-1) तथा हरा मधु के बीच संकरण द्वारा इस किस्म को विकसित किया गया है। पौधों की बेलें बड़ी होती हैं। फल हल्के हरे पीले रंग के होते हैं। इन पर हल्के हरे रंग की धारियां होती हैं। छिलका जालीदार होता है। गूदा नारंगी रंग का एवं सुगंधित होता है। गूदे में 12 प्रतिशत तक मिठास होती है। यह किस्म फल मक्खी एवं चूर्णीय आसिता के प्रति सहिष्णु है।

खरबूजे की अर्का राजहंस किस्म

इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा किया गया है। यह एक मध्य अगेती किस्म है। फल अण्डाकार, छिलका सफेद रंग का जाली युक्त होता है। गूदा मोटा, सफेद व बहुत मीठा होता है जिसमें 12 से 14 प्रतिशत तक मिठास होती है। फल का औसतन भार 1.0 से 1.5 किलोग्राम होता है। यह किस्म चूर्णीय आसिता रोग के प्रतिरोधिता पाई जाती है।

खरबूजे की अर्का जीत किस्म

यह एक अगेती किस्म है जिसका विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा किया गया है। फल छोटे तथा गोल होते हैं तथा छिलका नारंगी रंग का होता है। फल बहुत अधिक मीठे होते हैं जिनमें 15 से 17 प्रतिशत तक शर्करा होती है। फल का औसतन भार 400 ग्राम होता है।

खरबूजे की हिसार मधुर किस्म

इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से विकसित किया गया है। फल गहरे लाल रंग के होते हैं जिस पर 10 धारियां होती है। गूदा नारंगी रंग का एवं सुगंधित होता है। इसमें मिठास 8.5 प्रतिशत तक होती है। यह एक अगेती किस्म है तथा 75-80 दिन में फल तोड़ने योग्य हो जाते हैं।

खरबूजे की आर.एम.-43 किस्म

कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा, जयपुर द्वारा विकसित इस किस्म के फल हरी धारियों युक्त लम्बोत्तर होते हैं। फल आकार में छोटे तथा औसतन वजन 550 ग्राम होता है। इस किस्म के पौधे काफी बढ़ने वाले होते है। फलों की पहली तुड़ाई बुवाई के 80 से 85 दिनों बाद प्रारम्भ हो जाती है। फलों का गूदा हरा एवं सुगंधित होता है जिसमें 12-14 प्रतिशत तक मिठास होती है। बीज वाला भाग छोटा होता है। फलों में लम्बे समय तक भण्डारण एवं परिवहन क्षमता होती है।

खरबूजे की एम.एच. वाई-3 किस्म

यह किस्म कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा, जयपुर द्वारा विकसित की गई है। दुर्गापुरा मधु व पूसा मधुरस में संकरीकरण की चयन प्रक्रिया अपना कर इसको विकसित किया गया है। इसके पौधे अधिक बढ़ने वाले तथा 2.5 से 3 मीटर तक लम्बे होते हैं। बुवाई के 45 दिन बाद फूल तथा 95-100 दिन बाद फलों की तुड़ाई प्रारम्भ हो जाती है। फल चपटे, गोल, चिकने तथा हल्के हरे-पीले रंग के होते हैं। फल में बीज वाला भाग मध्यम होता है तथा गूदा हरा एवं मुलायम होता है। गूदे में मिठास 13-16 प्रतिशत तक होता है। फलों का औसत भार 700 से 800 ग्राम तथा एक हेक्टेयर क्षेत्र से 150 से 200 क्विंटल फलोत्पादन हो जाता है।

खरबूजे की एम.एच.वाई.-5 किस्म

कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा, जयपुर दुर्गापुरा मधु एवं हरा मधु किस्मों में संकरीकरण द्वारा इस किस्म का विकास कर चयन किया गया है। पौधे 2.0 से 2.5 मीटर लम्बे तथा फैलने वाले होते हैं। बुवाई के 45 दिन बाद फूल तथा 95 दिन बाद पहली तुड़ाई प्रारम्भ हो जाती है। फल चपटे, गोल, एवं नुकीले, चिकने तथा हल्के पीले रंग के होते हैं। गूदा हल्का हरा, मुलायम जिसमें मिठास 13 से 16 प्रतिशत तक होती है। फलों का औसतन भार 700 से 800 ग्राम होता है। बीज वाला भाग मध्यम आकार का होता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र से 150 से 200 क्विंटल फल उत्पादन हो जाता है।

खरबूजे की आर.एन.-50 किस्म

इस किस्म की संस्तुति दुर्गापुरा मधु एवं सलेक्शन 1 में संकरीकरण कर चयन क्रिया के पश्चात कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा द्वारा की गई है। इसके पौधे 2.5 मीटर लम्बे व अच्छे फैलने वाले होते हैं। फल लम्बोत्तर गोल, छिलका हरा पीला जिस पर 10 हरी धारियां होती हैं। गूदा हरा एवं मिठास 14 से 16 प्रतिशत तक होती है। फलों का औसतन वजन 500 ग्राम होता है तथा बीज वाला भाग मध्यम आकार का होता है। बुवाई के 80 से 85 दिनों बाद पहली फलन तुड़ाई पर आ जाती है एवं प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल उत्पादन होता है।

उपरोक्त उन्नत किस्मों के अतिरिक्त हमारे देश में खरबूजे की कई स्थानीय प्रजातियाँ है जो कि क्षेत्र विशेष में उगाई जाती हैं एवं बहुत प्रचलित भी है। इन स्थानीय किस्मों के फलों में समानता न होकर विविधता अधिक होती है। स्थानीय किस्मों की गुणवत्ता भी अविश्वसनीय होती है। दूसरी तरफ देश में निजी कम्पनियों द्वारा खरबूजे की कई संकर व उन्नत किस्मों का विपणन भी होता है। यह किस्में कई फसल उत्पादक क्षेत्रों में काफी प्रचलित हैं एवं इनके फल बाजार में अच्छी गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता के लिए जाने जाते हैं। निजी कम्पनियों के बीज किसानों को सरलता से उपलब्ध हो जाने से इनका प्रयोग व्यापक स्तर पर बढ़ता जा रहा है।