गर्मी के मौसम में कर सकते है सोयाबीन की खेती, मिलेगा कम लागत में अधिक मुनाफा
गर्मी के मौसम में कर सकते है सोयाबीन की खेती, मिलेगा कम लागत में अधिक मुनाफा
Android-app-on-Google-Play

Garmi me soybean ki kheti: बदलते वक्त के साथ खेती के तरीके भी बदल रहे हैं। अधिक मुनाफा कमाने के लिए बहुत से लोग अपनी पारंपरिक खेती को छोड़कर आधुनिक खेती को अपना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग अपनी खेती की मिट्टी का भरपूर फायदा उठा रहे हैं। जैसा कि आप सभी जानते हैं किसान भाइयों ने अपने खेतों से गेहूं और मटर की फसल निकाल ली है और अब अपने खेतों को खाली न छोड़ने के लिए उन्होंने उसमें सोयाबीन की बुआई शुरू कर दी है।

जैसा कि हम जानते हैं कि रबी सीजन की फसलें जैसे गेहूं, सरसों, आलू, प्याज और मटर आदि फसलें कटकर खेतों से निकल चुकी हैं और इस समय किसानों के खेत खाली हैं। ऐसे में किसान अब अपने खेतों को खाली छोड़ने की बजाय उनमें सोयाबीन की बुआई शुरू कर सकते हैं। सोयाबीन स्वास्थ्य के लिए एक बहुमुखी खाद्य पदार्थ है और ग्रीष्मकालीन सोयाबीन की खेती सिंचित परिस्थितियों में कम लागत पर सफलतापूर्वक की जा सकती है। भारत में सर्वाधिक सोयाबीन का उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है।

ग्रीष्मकालीन सोयाबीन की खेती के लिए रखें इन बातों का ध्यान

बुआई के लिए कम अवधि वाली किस्मों का चयन करना चाहिए ताकि वर्षा ऋतु से पहले फसल की कटाई की जा सके। अधिक तापमान होने पर मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करते रहें। ग्रीष्मकालीन सोयाबीन की खेती तभी की जानी चाहिए जब सिंचित जल की पर्याप्त उपलब्धता हो। मानसून आने से पहले फसल की कटाई करना उचित रहेगा। कटाई के बाद अनाज को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करना चाहिए।

ग्रीष्मकालीन सोयाबीन की खेती के फायदे

ग्रीष्मकालीन सोयाबीन में रोग एवं कीटों का प्रकोप कम होता है और फसल बारिश शुरू होने से पहले तैयार हो जाती है। सोयाबीन की फसल दलहनी होने के कारण इसकी जड़ों में ग्रंथियाँ पाई जाती हैं, जिनमें वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करने की क्षमता होती है, जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ती है। ऐसे में धान, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, गन्ना आदि जैसी खरीफ फसलों की खेती करते समय किसानों को कुछ प्रतिशत नाइट्रोजन की आपूर्ति की जाती है। इससे किसानों की लागत कम हो जाती है। गेहूं और मटर की फसल के बाद ज्यादातर किसान अपने खेतों में सोयाबीन की खेती करने लगे है। कई स्थानों पर सोयाबीन का अंकुरण भी शुरू हो गया है। इस समय इस खेती में लागत भी कम आती है और बाजार में दाम भी अच्छे मिलते हैं। 

ग्रीष्मकालीन सोयाबीन की उन्नत किस्में

ग्रीष्मकालीन बुआई के लिए कम अवधि वाली किस्मों की सिफारिश की जाती है। मध्य प्रदेश के लिए मुख्यतः जे.एस.- 93-05, जे.एस.- 95-60, जे.एस.- 335, जे.एस.- 97-05, एन.आर.सी.- 7, एन.आर. सी.-37, जे.एस.-80-21, समृद्धि एवं एम.ए.यू.एस.-81 आदि।

सोयाबीन के बीज की मात्रा एवं बीज उपचार

सोयाबीन की छोटे दाने वाली किस्मों के लिए बीज की मात्रा 65 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और बड़े दाने वाली किस्मों के लिए बीज की मात्रा 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए. बीज बोने से पहले उन्हें राइजोबियम, कैप्टान, थीरम, कार्बेन्डाजिम या थायोफैनेट मिथाइल की उचित मात्रा का मिश्रण बनाकर उपचारित करें। इससे बीज के अंकुरण के दौरान होने वाली बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।

जलवायु, मिट्टी एवं उपयुक्त तापमान

सोयाबीन की खेती रेतीली एवं हल्की भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सोयाबीन के लिए अधिक उपयुक्त होती है। जहां भी खेत में पानी जमा हो वहां सोयाबीन की फसल न काटें। भूमि का pH मान 7 से 7.5 के बीच होना चाहिए। सोयाबीन की खेती के लिए गर्म जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। सोयाबीन के पौधे गर्म और आर्द्र जलवायु में अधिक पैदावार देते हैं। सोयाबीन के पौधे सामान्य तापमान में अधिक उत्पादन देते हैं। इसके बीजों को अंकुरित होने के लिए 20-24 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।

खेत की तैयारी एवं उर्वरक

सोयाबीन की खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले गर्मियों में खाली खेतों की मिट्टी पलटने वाले हल से 8 से 10 इंच की गहराई तक गहरी जुताई करें। इससे हानिकारक कीड़ों की सभी अवस्थाएं नष्ट हो जाएंगी। खेत की पहली जुताई के बाद खेत में गोबर की खाद डालें। खेत में पानी जमा होने से सोयाबीन की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसलिए अधिक उत्पादन के लिए खेत में जल निकासी की व्यवस्था करना आवश्यक है। जहां तक संभव हो अंतिम निराई-गुड़ाई समय पर करनी चाहिए, ताकि अंकुरित खरपतवार नष्ट हो सकें। अगर आप सोयाबीन की खेती में रासायनिक उर्वरक का उपयोग करना चाहते हैं तो प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम सल्फर का छिड़काव कर सकते हैं।

खरपतवार नियंत्रण

सोयाबीन की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों का उपयोग किया जाता है। प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई की जाती है। इसके पौधों की प्रारंभिक निराई-गुड़ाई रोपण के 25 से 35 दिन बाद की जाती है, इसके अलावा यदि रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण किया जाता है तो फसल लगाने के बाद मेटोलाक्लोर, इमाजेथापायर और क्यूज़ेलफॉप इथाइल की उचित मात्रा का छिड़काव करना पड़ता है। इसके अलावा खेत में बीज बोने से पहले फ्लूक्लोरोलिन या ड्राईफ्लोरालिन का छिड़काव करें।

सोयाबीन बोने का सही समय एवं विधि

खेती के लिए सोयाबीन के बीज को 18 इंच की दूरी पर सीड ड्रिल से बोना अधिक फायदेमंद होता है. सीड ड्रिल से बुआई करने पर बीज कम लगता है तथा पौधे भी समान दूरी पर लगते हैं। फसल बोने के एक सप्ताह बाद यदि कंदों में किसी स्थान पर अंकुरण न हो तथा मिट्टी में नमी हो तो खाली स्थानों पर खुरपी की सहायता से बीज बोने से वांछित संख्या में पौध स्थापित हो जाती है। अच्छी उपज के लिए खेत में. सोयाबीन की बुआई के लिए मार्च का महीना उपयुक्त माना जाता है जब तापमान 22-24 डिग्री सेल्सियस हो।

खेती के लिए सिंचाई विधि

सोयाबीन की अच्छी फसल को 40 से 50 सेमी. पानी की आवश्यकता होती है। फूल आने, फल लगने, दाना बनने तथा दाना विकास के समय सोयाबीन की सिंचाई बहुत महत्वपूर्ण है। सोयाबीन की एक सिंचाई फलियों में दाने भरते समय अवश्य करनी चाहिए। रेतीली मिट्टी में भारी मिट्टी की अपेक्षा अधिक बार सिंचाई करनी पड़ती है। इसके बाद जब पौधों पर फलियां आने लगें तो मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार स्प्रिंकलर के माध्यम से हल्की सिंचाई करनी होती है।

फसल की कटाई, लाभ और उपज

सोयाबीन की फसल बीज रोपण के 85 से 95 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों की पत्तियाँ पीली होकर झड़ने लगें तथा फलियों का रंग भी भूरा दिखाई देने लगे तो इसकी कटाई कर खेत में अच्छी तरह सुखा लिया जाता है। इसके बाद इसे थ्रेशर के जरिए अलग कर लिया जाता है। ग्रीष्मकालीन सोयाबीन के एक हेक्टेयर खेत से 20 से 25 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त होता है। इसकी बाजार कीमत 3,500 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल है। जिसके मुताबिक, इसकी एक बार की फसल से किसानों को 1 से 1.5 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है।