जानिए गेहूं की फसल में मैंगनीज की कमी के लक्षण और नियंत्रण के उपाय
जानिए गेहूं की फसल में मैंगनीज की कमी के लक्षण और नियंत्रण के उपाय
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मैंगनीज की कमी के लक्षण गेहूं की ऊपरी पत्तियों पर पीली धारियों के रूप में नसों के बीच में प्रकट होते हैं, जबकि नसें स्वयं हरी रहती हैं। कुछ पौधों में नसों के बीच भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो आगे चलकर बड़े धब्बों का रूप ले लेते हैं। लक्षण सबसे पहले नये पत्ते से शुरू होकर धीरे-धीरे सभी पत्तों को प्रभावित करते हैं। इसलिए इसकी कमी में लक्षण सर्वप्रथम नई पत्तियों में दिखाई देता है। ऐसी मृदायें जिसमें मैंगनीज की उपलब्धता एक मि.ग्रा./ कि.ग्रा. मृदा या इससे कम होती है, अधिकांशतः उन्हीं मृदाओं में उगने वाली फसलों में मैंगनीज उर्वरकों के प्रयोग से गेहूं की उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है।


मैंगनीज की कमी वाले पौधे के ऊतकों में मैंगनीज की सांद्रता प्रायः 25 मि.ग्रा./कि.ग्रा. से कम होती है। गेहूं, जौ तथा जई ऐसी फसलें हैं, जिन्हें मैंगनीज की अधिक आवश्यकता होती है। फसलों में मैंगनीज की कमी के लक्षण दिखाई देते ही तुरन्त दूर करने के उपाय करने चाहिए। मैंगनीज उर्वरकों का प्रयोग मृदा में मिलाकर या खड़ी फसलों पर सीधे छिड़काव करके किया जाता है। मैंगनीज की कमी वाली मृदाओं में मृदा प्रयोग विधि से दी गई मैंगनीज का निर्धारण पौध अनुपलब्ध रूप में हो जाता है। प्रायः 0.5 प्रतिशत मैंगनीज सल्फेट के तीन छिड़काव 10-15 दिनों के अंतराल पर करने से मैंगनीज की कमी का नियंत्रण हो जाता है तथा गेहूं के उत्पादन पर्याप्त वृद्धि पायी गई है।