गर्मियों में तिल की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद, कमा सकते है अच्छा-खासा मुनाफा
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Til ki kheti : भारत में तिलहन की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। रबी और खरीफ सीजन की फसलों के साथ-साथ अब किसान गर्मियों में तिल की खेती भी कर रहे है। यह किसानों को कम समय में अच्छा मुनाफा देता है। तिल का प्रयोग अधिकतर तेल बनाने में किया जाता है। आपको बता दें कि तिल की खेती महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में बड़े पैमाने पर की जाती है।
गर्मियों में तिल की खेती
तिल की खेती गर्मियों में की जा सकती है लेकिन इस समय आपको फसल की उचित देखभाल करनी होगी। गर्मी के दिनों में इसकी बुआई मार्च से अप्रैल के बीच कर देनी चाहिए। तिल की बुआई करते समय मिट्टी का तापमान, पानी की आपूर्ति और रोशनी का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। हालाँकि, अपने क्षेत्र की भूमि और मौसम के अनुसार स्थानीय किसानों या कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेना फायदेमंद साबित होगा।
तिल की खेती के लिए गर्मी का मौसम अनुकूल है
जलवायु की दृष्टि से तिल के लिए लंबे गर्म मौसम वाली उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। यह पौधा गर्म जलवायु में उगता है। इसकी खेती अच्छे जल निकास वाली भूमि में करनी चाहिए, इसके लिए वर्षा जल की आवश्यकता नहीं होती है, इसकी बुआई सामान्य पीएच मान वाली भूमि में करनी चाहिए, पौधे की अधिक वृद्धि के लिए 25 से 27 डिग्री तापमान अच्छा होता है, ऐसा इसलिए है क्योंकि इसकी पौधे 40 डिग्री का सामान्य तापमान आसानी से सहन कर सकते हैं।
उपयुक्त मिट्टी
वैसे तो तिल की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अधिक उपज पाने के लिए किसान इसे बलुई दोमट मिट्टी में बोते हैं जिसमें जीवाश्म अधिक होते हैं जो तिल की खेती के लिए अच्छी होती है।
खेत की तैयारी
खेत की गहरी जुताई कर खेत को समतल कर समतल कर लेना चाहिए. खेत तैयार करते समय उचित मात्रा में सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालें।
तिल की उन्नत किस्में
ग्रीष्मकालीन प्रमुख किस्में
- टी.के.जी. 21 यह किस्म 80 से 85 दिन में पक जाती है और लगभग 6 से 8 प्रति हेक्टेयर उपज देती है.
- टी.के.जी. 22, जे.टी. 7, 81, 27 :- यह 75 से 85 दिन में पक जाती है, 30 से 35 दिन में फूल आने लगते हैं तथा उपज 8 से 10 प्रति हेक्टेयर होती है।
- इसके साथ ही किसान इन किस्मों की बुआई करके भी अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकता है जैसे:
- टी.सी. 25, आरटी. 46, टी. 13, आर. टी. 125, टी. 78, आर. टी. 127, आर. टी. 346, वीआरआई- 1, पंजाब टिल 1, टीएमवी- 4, 5, 6, चिलक राम, गुजरात टिल 4, हरियाणा टिल 1, सीओ- 1, तरूण, सूर्या, बी- 67, पययुर- 1, शेखर और सोमा आदि।
बुवाई का समय
गर्मी के मौसम में किसान इसकी बुआई फरवरी माह में कर सकते हैं।
बीज दर
यदि किसान छिटकवा विधि से बुआई करता है तो प्रति हेक्टेयर 5 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, यदि पंक्तियों में बोता है तो प्रति हेक्टेयर 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। अधिक उपज के लिए पौधे से पौधे की दूरी 8 सेमी रखनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
अधिक उपज प्राप्त करने के लिए किसान को बुआई से पहले 250 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग करना चाहिए तथा 100 से 120 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर खेत में डालना चाहिए.
सिंचाई
गर्मियों में हर 8 से 10 दिन में सिंचाई करनी चाहिए। किसान भाइयो तिल की खेती में ध्यान रखने वाली सबसे जरूरी बात यह है की जब इसके पोधो में फूल आ जाते है तब इसकी अधिक सिंचाई नहीं करनी चाइये नहीं तो फूल गिरने की सम्भावना होती है।
उत्पादन
मानसून तिल की तुलना में ग्रीष्मकालीन तिल का उत्पादन अधिक और बेहतर गुणवत्ता वाला होता है। एक हेक्टेयर में 1000 से 1800 किलोग्राम ग्रीष्मकालीन तिल की पैदावार होती है। यदि समय रहते उचित कदम उठाए जाएं तो और भी अधिक उत्पाद तैयार होने की संभावना है।
कटाई एवं भंडारण
फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब पौधों की पत्तियाँ पीली होकर गिरने लगें तथा नीचे की फलियाँ पक जाएँ, ताकि बीज गिरने न लगें। फसल को काटकर सीधे खेत या खलिहान में रखना चाहिए।