बैंगन की वैज्ञानिक खेती: जानिए ग्रीष्मकालीन बैंगन की उन्नत खेती की विधि एवं देखभाल
बैंगन की वैज्ञानिक खेती: जानिए ग्रीष्मकालीन बैंगन की उन्नत खेती की विधि एवं देखभाल
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Brinjal Farming: बैंगन की उत्पत्ति भारत में हुई। दुनिया में सबसे ज्यादा बैंगन चीन में उगाया जाता है और भारत इसके बाद दूसरे नंबर पर आता है। बहुत से लोग बैंगन को अपने किचन गार्डन और छत पर बागवानी के रूप में भी उगाते हैं। शहरी इलाकों में इसे गमलों, कंटेनरों और ग्रो बैग में भी आसानी से उगाया जा सकता है। बैंगन विटामिन और खनिजों का एक अच्छा स्रोत है। पोषण की दृष्टि से इसे टमाटर के समकक्ष माना जाता है। बैंगन की खेती साल भर की जा सकती है। इसकी फसल अन्य फसलों की तुलना में अधिक मजबूत होती है। इसकी कठोरता के कारण इसे शुष्क एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।

बैंगन की अच्छी फसल के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 5 और 7 के बीच होना चाहिए। पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। बैंगन के पौधे 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस पर अच्छे से विकास करते हैं। एवं न्यूनतम 13°से. तापमान पर भी उगाया जा सकता है.

बैंगन की किस्में
  • पूसा हाइब्रिड-15- बैंगन की इस किस्म को अधिक उपज के लिए उगाया जाता है. इस किस्म के पौधों को फल देने में 80 दिन का समय लगता है. इसके फल लंबे और गहरे बैंगनी रंग के होते हैं।
  • अर्का नवनीत (हाइब्रिड) - इसके फल अंडाकार, गहरे बैंगनी रंग के और बहुत कम बीज वाले होते हैं।
  • अर्का निधि- यह भी अधिक उपज देने वाली किस्म है और गुच्छों में फल देती है। इसके फल हरे-बैंगनी रंग के होते हैं।
  • काशी कोमल- यह एक संकर किस्म है. इसमें रोपाई के 35-40 दिन बाद फूल आने लगते हैं. फल हल्के बैंगनी, लंबे, मुलायम और औसत 13 सेमी. लंबे हैं।
  • काशी प्रकाश- इस किस्म के फल हल्के हरे धब्बों के साथ आकर्षक होते हैं और इनका औसत वजन 190 ग्राम होता है. ऐसा होता है। रोपाई के 80-82 दिन बाद कटाई शुरू हो जाती है और औसतन 650-700 क्विंटल/हेक्टेयर उपज मिलती है।
  • काशी संदेश- यह एक संकर किस्म है. फल बैंगनी, मध्यम आकार के गोल और वजन 200 - 250 ग्राम होते हैं। तक। रोपाई के 76 दिन बाद कटाई शुरू हो जाती है। इसकी औसत उपज 780 क्विंटल/हेक्टेयर तक होती है.
  • काशी तरु- इस किस्म के पौधे लम्बे और उभरे हुए होते हैं. रोपाई के 45-50 दिन बाद फूल आना शुरू हो जाता है। फल लंबे और बैंगनी रंग के होते हैं। रोपाई के 75-80 दिन बाद फलों की तुड़ाई शुरू हो जाती है।
एक हेक्टेयर खेत में बैंगन लगाने के लिए 250-350 ग्रा. सामान्य किस्मों की एवं 200-250 ग्रा. संकर किस्मों के बीज पर्याप्त हैं। नर्सरी में बुआई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा 2 ग्राम/किग्रा. बीज अथवा बाविस्टिन 2 ग्रा./कि.ग्रा. बीजों की दर से अवश्य उपचारित करना चाहिए।

रोपण एवं देखभाल
बुआई के 21 से 25 दिन बाद पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं। बिहार राज्य में बैंगन की ग्रीष्मकालीन फसल के लिए रोपण फरवरी-मध्य मार्च के बीच किया जाना चाहिए। पंक्ति से पंक्ति के बीच 60 सेमी. तथा पौधे से पौधे के बीच 50 सेमी. का अंतर रखते हुए ही इसे लगाना उचित होता है। संकर किस्मों के लिए कतारों के बीच 75 सेमी की दूरी रखें. तथा पौधों के बीच 60 सेमी. दूरी बनाए रखना ही काफी है. रोपाई सदैव शाम के समय ही करनी चाहिए। इसके बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए तथा पौधा स्थापित होने तक प्रतिदिन सिंचाई करनी चाहिए। समय-समय पर फसल की निराई-गुड़ाई करना जरूरी है। पहली निराई-गुड़ाई रोपाई के 20-25 दिन बाद तथा दूसरी निराई-गुड़ाई 40-50 दिन बाद करनी चाहिए। यह क्रिया मिट्टी में हवा का पर्याप्त संचार भी सुनिश्चित करती है।

खाद एवं उर्वरक
अच्छी उपज के लिए 200-250 क्विंटल/हे. की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा फसल में 120-150 कि.ग्रा. ग्राम। नाइट्रोजन (260-325 कि.ग्रा. यूरिया), 60-75 कि.ग्रा. फास्फोरस (375-469 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 50-60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर पोटाश (83-100 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश) की आवश्यकता होती है।

सिंचाई
ग्रीष्मकालीन बैंगन की खेती में अधिक उपज पाने के लिए सही समय पर पानी उपलब्ध कराना बहुत जरूरी है। गर्मी के मौसम में हर 3-4 दिन में पानी देना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बैंगन की फसल में पानी खड़ा न हो, क्योंकि यह फसल पानी खड़ा नहीं सहन कर सकती।
टैरेस गार्डनिंग के तहत ग्रो बैग, कंटेनर, गमले और बाल्टियों में लगाए गए बैंगन के पौधों को रोजाना पानी देना चाहिए। सबसे पहले गमले की मिट्टी की सतह को उंगली से दबाकर जांच लें। अगर मिट्टी सूख गई है तो तुरंत पानी दें नहीं तो बैंगन का पौधा सूख सकता है।

कटाई और मार्केटिंग
किस्म के आधार पर बैंगन के पौधे रोपण के लगभग 50 से 70 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं। बैंगन के फलों की कटाई शाम के समय करना सबसे अच्छा होता है जब वे नरम और चमकदार होते हैं। कटाई में देरी से फल सख्त और बदरंग हो जाते हैं। साथ ही उनमें बीज भी विकसित होते हैं। इससे बाजार में उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है  कटाई के बाद फलों को छांटना चाहिए और विपणन के लिए उचित आकार की टोकरियों में भेजना चाहिए।