फसल और मिट्टी के लिए फायदेमंद है हरी खाद, जानिए हरी खाद के लिए उपयुक्त फसलें और फायदे के बारे में
फसल और मिट्टी के लिए फायदेमंद है हरी खाद, जानिए हरी खाद के लिए उपयुक्त फसलें और फायदे के बारे में
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मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरा शक्ति में गिरावट का मुख्य कारण कृषि आदानों का अंधाधुंध उपयोग है। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक एवं असंतुलित प्रयोग से आज अधिकांश मृदाओं में आधे से ज्यादा पोषक तत्वों की कमी हो गयी है। इसकी कमी का सीधा प्रभाव फसल उत्पादकता एवं मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। वर्तमान समय में हम जिस मोड़ पर खड़े है वहां पर उर्वरकों के उपयोग को पूर्णत: छोड़ना तो संभव नहीं है, परन्तु हम इनके उपयोग को कम जरूर कर सकते हैं। उर्वरकों के उपयोग को कम करने तथा मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरा शक्ति को सुधारने का सबसे अच्छा एवं सस्ता उपाय हरी खाद हो सकता है।

हरी खाद क्या है 
कृषि में हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती भूमि में पोषक तत्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदार्थों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। प्रायः इस तरह की फसल को हरी अवस्था में ही हल या हैरो चलाकर मृदा में मिला दिया जाता है। मृदा में मिलाने के कुछ दिनों में फसल अवशेष सड़ जाते हैं। इससे मृदा में पोषक तत्वों एवं कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि होती है, जिससे मृदा स्वास्थ्य व उर्वरा शक्ति में सुधार होता है। हरी खाद के प्रयोग से हम रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम कर सकते हैं एवं खेती की लागत को भी काफी हद तक घटा सकते हैं। हरी खाद के लगातार उपयोग से मृदा उर्वरता तो बढ़ती ही है, इसके साथ ही मृदा में लाभदायक जीवों की संख्या में भी वृद्धि होती है। हरी खाद के लिए उपयुक्त फसलों को खेत में ही उगाया जा सकता है या अन्य जगह से लाकर खेत में उपयोग किया जा सकता है। हरी खाद के लिए मुख्यत: दलहनी फसलों को उगाया जाता है। इन फसलों की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु पाया जाता है। यह जीवाणु वातावरण में उपलब्ध नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध करवाता है। इसके अलावा दलहनी फसलों की वृद्धि तेजी से होती हैं, जिससे कम समय में अधिक मात्रा में जैव पदार्थ, मृदा में मिलाया जा सकता है।

जानिए हरी खाद के फायदे

हरी खाद, फसल एवं मृदा दोनों के लिए फायदेमंद होती है। इसके निम्नलिखित फायदे हैं:
  • हरी खाद का अपघटन शीघ्रता से होता है जिससे मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बनी रहती है। इससे मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि होती है, जिससे मृदा की भौतिक दशाओं मुख्यतः संरचना एवं जलधारण क्षमता, जैविक एवं रासायनिक दशाओं में सुधार होता है।
  • लैँचा की हरी खाद लेने से क्षारीय मृदाओं के पी-एच मान में कमी आती है और इससे इन मृदाओं में पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है। हरी खाद मृदा में मौजूद सूक्ष्मजीवों के लिए आहार एवं ऊर्जा की पूर्ति करती है।
  • हरी खाद से मृदा में नाइट्रोजन के साथ-साथ अन्य प्राथमिक पोषक तत्वों तथा द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा में भी वृद्धि होती है। हरी खाद पलवार का काम करती है, जिससे मृदाक्षरण में कमी आती है। हल्की मृदाओं में पोषक तत्वों के अपक्षालन में कमी आती है। इससे मृदा की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी होती है।
  • हरी खाद के रूप में मुख्यत: लेग्युमिनेसी कुल की फसलों का उपयोग किया जाता है। इससे नाइट्रोजन उर्वरकों की मात्रा को 25 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
  • इससे मृदा में वायु संचार बढ़ता है एवं मृदा तापमान में संतुलन आता है। मृदा में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है, जिससे मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है। फसलों में कीट एवं रोगों के प्रकोप में कमी आती है।
  • मित्र कीटों की संख्या में वृद्धि होती है। खरपतवारों की समस्या में कमी आती है।
  • इस प्रकार हरी खाद को उगाने से फसलों का उत्पादन बढ़ता है एवं उत्पादन लागत में कमी आती है, जिससे किसानों को अधिक आर्थिक लाभ मिलता है।
हरी खाद के लिए उपयुक्त फसलें
हरी खाद के लिए मुख्यत: लेग्युमिनेसी कुल की फसलों का उपयोग किया जाता है। मुख्य खेत में ही उगाकर हरी खाद बनाने के लिए मुख्य फसलें जैसे-ढैचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार, बरसीम आदि हैं। इनके अलावा कुछ वृक्षों, झाड़ियों एवं खरपतवारों को भी हरी खाद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वृक्षों एवं झाड़ियों में करंज, नीम. सुबबूल, तरवड़ आदि की टहनियों एवं पत्तियों को हरी खाद के लिए उपयोग किया जा सकता है। जलकुंभी, आक, टेफरोसिया आदि खरपतवारों को भी हरी खाद के लिए उपयोग किया जा सकता है। इन सभी में ढैचा सबसे उपयुक्त फसल है, जिसे सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से उगाकर हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।