सोयाबीन की फसल में लगने वाला ये रोग बेहद ही खतरनाक है, ऐसे करें इस रोग की पहचान और बचाव के उपाय
सोयाबीन की फसल में लगने वाला ये रोग बेहद ही खतरनाक है, ऐसे करें इस रोग की पहचान और बचाव के उपाय
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सोयाबीन, भारत की महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। यह खरीफ के मौसम में उगायी जाती है। वर्तमान समय में मौसम के बदलते परिवेश व अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों से सोयाबीन की खेती में विभिन्न रोगों का प्रकोप देखा जा रहा है। किसान सोयाबीन की फसल में सोयाबीन मोजेक वायरस से होने वाली बीमारी को लेकर भी चिंतित हैं। क्योंकि इस बीमारी के लगने के बाद फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। साथ ही उत्पादन भी घट जाता है। इससे किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है।

अगर आप सोयाबीन की खेती करना चाहते हैं लेकिन पीला मोजेक रोग से डरते हैं तो अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आइये आपको सोयाबीन की फसल को प्रभावित करने वाले मुख्य रोग पीला मोजेक रोग (yellow mosaic disease) के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं, इस रोग के कारण, लक्षण और बचाव...
 
पीला मोजेक रोग क्या है?


यह वायरसजनित रोग है, जो कि सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। यदि रोग की तीव्रता व संक्रमित पौधों की संख्या शुरुआत में अधिक हो जाये, तो पीला मौजेक रोग न केवल उस खेत में अपितु आसपास के खेतों में भी तेजी से फैलता है।
सोयाबीन मोजेक पॉटीवायरस से होने वाला विषाणु जनित रोग है। यह मुख्य रूप से सफेद मक्खी के कारण होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर सफेद मक्खी के बैठने के बाद यह रोग अन्य पौधों पर बैठकर पूरे खेत की फसलों में फैल जाता है। यदि लगातार वर्षा होती है तो इस रोग का संक्रमण फसलों को प्रभावित नहीं करता है। लेकिन यदि वर्षा तीन से चार दिन के अंतराल पर होती है तो सफेद मक्खी के माध्यम से फसलों में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है।

सोयाबीन के साथ-साथ यह अन्य दलहनी फसलों को भी प्रभावित करता है। रोग की गंभीरता बढ़ने पर सोयाबीन की उपज 50 से 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है। यह विषाणु जनित रोग है।

पीला मोजेक रोग की पहचान (पीला मोजेक रोग के लक्षण)
  • रोग, पौधे की नई पत्तियों पर अनियमित चमकीले धब्बों के रूप में प्रकट होता है।
  • पत्तियों पर पीला क्षेत्र बिखरा हुआ अथवा मुख्य शिराओं के साथ पीली पट्टी के रूप में दिखाई देता है। रोग की तीव्रता अधिक होने पर अधिक नुकसान की आशंका बढ़ जाती है।
  • पीला मोजेक रोग होने पर फसल की पत्तियां पीली हो जाती हैं।
  • इसके प्रकोप से पत्तियां खुरदरी हो जाती हैं और उन पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं।
  • पीला मोजेक रोग होने पर संक्रमित पौधे मुलायम होकर सिकुड़ने लगते हैं।
  • इस दौरान फसल की पत्तियां गहरे हरे और भूरे रंग की हो जाती हैं और पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे भी दिखाई देने लगते हैं।
  • फसल में अचानक सफेद मक्खियां पनपने लगती हैं और पत्तियों पर बैठकर फसल की गुणवत्ता खराब कर देती हैं।
  • यह समस्या फसल की शुरुआती अवस्था में ही दिखाई देने लगती है, इसलिए फसल की निगरानी करके इन लक्षणों को पहचानें और समय रहते रोकथाम के उपाय करें।
सोयाबीन में पीला मोजेक रोग रोग से बचाव के उपाय
  • बुआई के लिए रोग प्रतिरोधक या सहनशील नई उन्नत प्रजातियों जैसे-जे.एस. 20-98, जे.एस. 20-29, जे.एस. 20-116, जे.एस. 20-94, जे.एस. 20-69, आर.वी. एस. 2001-18, जे.एस. 20-34 आदि का चयन करें।
  • बीजोपचार थायामेथोक्साम 30 एफ.एस. नामक कीटनाशक से 10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से करें।
  • समय से बुआई (2 जून से 5 जुलाई के मध्य) करनी चाहिये।
  • खरपतवार की समस्या का समुचित प्रबंधन करें।
  • रोग के लक्षण दिखते ही ऐसे पौधे को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये।
  • रोग का फैलाव बढ़ने पर कीटों के नियंत्रण के लिए खड़ी फसल में 35 दिनों की अवस्था पर इमिडाक्लोप्रिड 48 प्रतिशत एफ. एस. 125 मि.ली. मात्रा का प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
  • इन रोगों के वाहक सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए पहले से मिश्रित कीटनाशक थायमेथोक्सम (12.6% +) + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन (125 मिली / हेक्टेयर) या बीटा-साइफ्लूथ्रिन (बीटा-साइफ्लूथ्रिन) + इमिडाक्लोप्रिड (350 मिली / हेक्टेयर) का छिड़काव करें।