जानिए जून माह में किये जाने वाले महत्वपूर्ण कृषि कार्यों के बारे में
जानिए जून माह में किये जाने वाले महत्वपूर्ण कृषि कार्यों के बारे में
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सोयाबीन की खेती: सोयाबीन "जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बुवाई का कार्य पूर्ण करें। सोयाबीन की बुवाई कतार में कूड़ व मेंड़ विधि से करें तथा बुवाई के समय खाद व बीज को एक साथ मिलाकर न बोयें। बुआई हेतु बीज की अनुसंशित मात्रा का ही उपयोग करें। बीज की गुणवत्ता की जांच हेतु बीज का अंकुरण परीक्षण करें। सोयाबीन बीज की बुवाई 45 सेमी पंक्ति से पंक्ति की दूरी व 3 से 5 सेमी पौध से पौध की दूरी पर करें। बुवाई से पूर्व बीज को फफूंद नाशक दवा, कीटनाशक दवा तथा सबसे अतः में जैव उर्वरकों से उपचारित कर बुआई करें। सोयाबीन के साथ मक्का की मिश्रित खेती भी लाभदायक होती है । इसमें 1 फुट की दूरी पर दो सोयाबीन की लाइनो के बाद 1 लाइन मक्का लगायें। एनपीके की संतुलित मात्रा के साथ प्रति एकड़ 150 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से जिप्सम डालें। खेत में पानी नहीं रूकना हानिकारकहोता है, इसलिए अच्छे जल निकास वाला खेत चुने।

मूंगफली: सिंचित क्षेत्रों में मूगफली की बुआई जून के अन्त तक पूरी कर लें। बारानी क्षेत्रों में मानसून आने पर जुलाई के सप्ताह तक बो दें । यह 110-130 दिन में पक जाती हैं । हल्के गठन व अच्छे जल निकास वाली भूमि मूंगफली के लिए अच्छी होती है । लाइन से लाइन की दूरी एक फुट और पौधों से पौधों की दूरी 6-9 इंच रखें। यदि प्रमाणित बीज न हो तो थिराम या कैप्टान दवाई से बीज को उपचारित कर लें। एनपीके के साथ गंधक का भी प्रयोग करें। इससे पाईदावार में वृद्धि के साथ ही तेल की मात्रा भी बढ़ जाती है।

धान जून माह के दूसरे पखवाड़े से रोपाई का कार्य शुरू कर दें। चौड़ी पत्ती व मौथा खरपतवार की रोकथाम हेतु पौयराजों सल्यूरान की 25 ग्राम मात्रा का प्रति हे. की दर से रोपाई के तीन से पाँच दिन बाद छिड़काव करें।

मूंग व उर्द - मूंग फसल की कटाई 70 से 80 प्रतिशत फलियाँ पकने पर तथा उर्द की कटाई पूरी फसल पकने पर करें।

अरहर - अरहर फसल की बुआई हेतु बीज दर 20 किग्रा. प्रति हे, की दर से उपयोग करें, तथा 60x30 सेमी. पर लंबी अवधि की किस्मों की बुवाई करें।

गन्ना - आवश्यकतानुसार फसल की सिंचाई व निराई गुड़ाई करें। गन्ने में पाइरिल्ला कीट का प्रकोप दिखाई पड़ने पर क्यूनॉलफॉस 25 ईसी की 1.5 लीटर मात्रा का प्रति हे. की दर से उपयोग करें। अंगोला बेधक, तना बेधक व जड़ बेधक कीट की रोकथाम हेतु कार्बोफ्यूरान 3 जी की 25 किग्रा मात्रा या फॉरेट 10 जी की 20 किग्रा मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें।

सब्जियाँ एवं फल
टमाटर, मिर्च एवं बैगन - फरवरी मार्च माह में रोपी गई फसल से तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें। आवश्यकतानुसार फसल की सिंचाई व निराई व गुड़ाई करें। जुलाई अगस्त में रोपाई हेतु पौध शाला में बीज बुआई का कार्य पूर्ण करें। पकी मिर्च तोड़कर सुखा लें। प्याज और लहसुन – सुखाई हुई कंदों को नमी रहित स्थान पर भण्डारित करें तथा समय समय पर भण्डार कक्ष का अवलोकन कर खराब हुई कंदों को भण्डार कक्ष से बाहर करें।

कद्दूवर्गीय फसलें – खरीफ ऋतु की फसल लेने हेतु कद्दूवर्गीय फसलें जैसे तोरई, लोकी, कद्दू, खीरा आदि की बुआई का कार्य पूर्ण करें।

खेतों में वर्षा जल का संरक्षण
गर्मी की जुताई व मेड़बन्दी: वर्षा से पूर्व खेतों की अच्छी तरह मेंड़बंदी कर दें, जिससे खेत का पानी और मिट्टी  न बहे तथा खेत की मिट्टी वर्षा जल को अधिक से अधिक सोख सके। बताते चलें, इससे पहली वर्षा के जल में निहित नाइट्रोजन का भी भूमि में संचय हो जाता है और परिणामस्वरूप भूमि की उर्वराशक्ति में इजाफा हो जाता है।

तालाबों में जल का संरक्षण
वर्षा के पानी को तालाबों में ले जाकर जमा करें, इसके लिए गाँव की जल निकास व्यवस्था इसी माह चुस्त दुरुस्त कर लें ताकी पूरा का पूरा पानी तालाब में पहुँच जाय। इस जल का उपयोग पशुओं को पीने हेतु तथा खेती के लिए करें। यदि जल के सरंक्षण के प्रति हम अभी से सजग न हुए तो भविष्य में पानी की किल्लत होना लाजिमी है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जल सभी जीवधारियों के लिए निहायत जरूरी है। इसीलिए कहा गया है “जल ही जीवन है“। “गाँव का पानी गाँव में और खेत का पानी खेत में”, इसी अवधारणा के अनुसार आइये जल के संरक्षण एवं सदुपयोग का संकल्प लें। जल है तो जीवन है।