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इस बार की अनियमित बारिश ने सच में सबकी हालत “अटली मटली” कर दी है। कई जगह तो खेतों में पानी इतना भर गया कि मटर की फसल जैसे बह ही गई। जिनके खेत थोड़े ऊँचे थे, वहाँ की फसल तो कुछ हद तक बची, लेकिन बाकी जगहों पर मटर की हालत देखने लायक नहीं रही। चलिए आज इसी पर खुलकर बात करते हैं — बारिश ने मटर पर क्या असर डाला, अब क्या करें, और कैसे इस नुकसान को थोड़ा संभाला जा सकता है।
बारिश का असर — मटर की फसल पर पड़ा बड़ा झटका
बारिश अगर समय पर और संतुलित हो, तो फसल के लिए वरदान होती है। लेकिन जब ज़रूरत से ज़्यादा हो जाए, तो वही पानी आफत बन जाता है।
खेतों में पानी भर गया – मटर की फसल ज्यादा नमी बर्दाश्त नहीं कर पाती। जब खेत में पानी रुक जाता है तो जड़ों को हवा नहीं मिलती और पौधे पीले पड़ने लगते हैं।
फफूंदी और बीमारियाँ फैल गईं – लगातार गीली मिट्टी में फफूंदी बहुत तेज़ी से फैलती है। पत्तियाँ धब्बेदार हो जाती हैं और तने सड़ने लगते हैं।
बीज सड़ना और अंकुरन कम होना – बारिश के बाद जिन खेतों में बुवाई हुई, वहाँ बीज गल गए या अंकुर ठीक से नहीं फूटे।
पोषक तत्वों की कमी – लगातार बारिश से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व बह जाते हैं। इस वजह से पौधों का रंग फीका पड़ जाता है।
जिनके खेतों में मटर की फसल अभी भी बची है — उम्मीद अभी बाकी है!
अगर आपकी मटर की फसल अभी पूरी तरह खराब नहीं हुई है, तो घबराने की जरूरत नहीं। थोड़ी मेहनत और सही समय पर कदम उठाकर आप फसल को फिर से संभाल सकते हैं।
1. खेत का मुआयना करें
बारिश के बाद सबसे पहले अपने खेत का ध्यान से निरीक्षण करें। जहाँ पानी ज्यादा भरा था, वहाँ के पौधे देखकर अंदाज़ा लगाएँ कि कौन से हिस्से ठीक हैं और कौन से नहीं।
2. पानी तुरंत निकालें
अगर खेत में अब भी पानी भरा हुआ है, तो सबसे पहले पानी की निकासी करें। खेत के किनारों पर नालियाँ बनाएं ताकि पानी जल्दी बाहर जा सके। इससे जड़ों को फिर से ऑक्सीजन मिलेगी और पौधे संभलने लगेंगे।
3. बीमार पौधे हटाएं
जो पौधे पूरी तरह सड़ गए हैं या उन पर सफेद/काली फफूंदी दिख रही है, उन्हें खेत से बाहर निकालकर नष्ट करें। इन्हें वहीं छोड़ने से बीमारी फैल सकती है।
4. पत्तियों के पीले पड़ने पर ध्यान दें
अगर मटर की पत्तियाँ पीली पड़ने लगी हैं और कोई फफूंदी या धब्बे नहीं हैं, तो यह नाइट्रोजन की कमी का संकेत है। ऐसे में किसान भाई यूरेआ (Urea) का हल्का छिड़काव कर सकते हैं। लेकिन अगर पत्तियों पर फफूंदी या धब्बे हैं, तो समझिए बीमारी है — उसके लिए कवकनाशक (fungicide) का प्रयोग करें, यूरेआ नहीं।
5. पौधों की बढ़वार के लिए पोषण दें
मटर के पौधों को अब फॉस्फोरस और पोटैशियम की ज़रूरत है।
पोटैशियम के लिए DAP खाद का प्रयोग करें ताकि जड़ें मजबूत हों और फलियां ठीक से बनें। साथ ही आप मिट्टी को स्वस्थ बनाए रखने के लिए टाटा धुर्वी गोल्ड जैसे मल्टी-न्यूट्रिएंट सॉयल कंडीशनर का उपयोग भी कर सकते हैं। इससे पौधों की बढ़वार में सुधार होगा और फसल ज्यादा हरी-भरी दिखेगी।
अब बात दो सबसे जरूरी चीज़ों की — सिंचाई और खाद प्रबंधन
1. सिंचाई प्रबंधन
बारिश के बाद खेत सूखने लगे तो हल्की सिंचाई दें। ज़्यादा पानी देने से जड़ें फिर से सड़ सकती हैं।
अगर आपके पास ड्रिप सिंचाई की सुविधा है तो उसका उपयोग करें — इससे नमी बराबर बनी रहती है और पानी की भी बचत होती है। खेत में छोटी-छोटी नालियाँ बनाएँ ताकि पानी रुके नहीं और हर हिस्से में नमी संतुलित रहे।
2. खाद प्रबंधन
अगर मटर की फसल पीली पड़ रही है, तो पहले यह समझें कि कारण क्या है — पोषक तत्व की कमी या बीमारी?
पोषक तत्व की कमी होने पर यूरेआ (Urea) का संतुलित प्रयोग करें।
अगर बीमारी दिखे तो कवकनाशक (fungicide) का उपयोग करें, और इसे खेत में दवा विक्रेता या कृषि अधिकारी की सलाह से ही लगाएँ। फसल की अच्छी बढ़वार के लिए DAP खाद और टाटा ध्रुवी गोल्ड जैसे पोषक तत्व युक्त उत्पाद मददगार साबित हो सकते हैं।
थोड़ा सब्र, थोड़ी समझदारी – नुकसान से निकल आएंगे किसान भाई!
बारिश ने भले ही आपकी मेहनत पर पानी फेर दिया हो, लेकिन हिम्मत मत हारिए। जिन किसानों की मटर की फसल अभी भी खड़ी है, उनके पास मौका है कि फसल को फिर से संभालें।
समय पर सिंचाई, सही खाद का उपयोग और फसल की नियमित निगरानी करके आप नुकसान को काफी हद तक कम कर सकते हैं। और हाँ, अगली बार बुवाई से पहले खेत में पानी निकासी की बेहतर व्यवस्था ज़रूर करें, ताकि “अटली मटली” जैसी स्थिति दोबारा न हो।
आपकी मेहनत रंग लाएगी — बस ध्यान रखिए, फसल की जरूरत को समझिए, और सही समय पर कदम उठाइए।
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