Kisaan Helpline
राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस पर एक सच्ची पुकार
भारत का किसान — मेहनती, जज़्बे से भरा हुआ और धरती का सच्चा पूजारी। वही किसान जो अपने पसीने से देश को अन्न देता है, आज अनजाने में अपनी ही मिट्टी से ज़हर उगा रहा है। तकनीक, तेज़ उत्पादन और मुनाफ़े की अंधी दौड़ में वह दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन यह नहीं जानता कि यही मेहनत धीरे-धीरे उसकी सेहत पर भारी पड़ रही है।
वह सोचता है —
“रासायनिक खाद डालूंगा तो फसल दोगुनी होगी, कीटनाशक छिड़कूंगा तो फसल बचेगी।”
पर क्या कभी उसने यह सोचा है कि यही रसायन उसकी सांसों, खून और जीवन में ज़हर बनकर उतर रहे हैं?
ज़हर की बूँदें जो जीवन छीन रही हैं
हर बार जब किसान अपने खेत में कीटनाशक का छिड़काव करता है
वो हवा में उड़ते सूक्ष्म ज़हरीले कणों को अपनी सांसों के साथ अंदर खींच लेता है।
ये कण उसके फेफड़ों, खून और शरीर के अंगों में जमा होकर धीरे-धीरे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का कारण बनते हैं।
शुरुआत में इसका असर नजर नहीं आता, लेकिन लंबे समय तक लगातार संपर्क में रहने से यह शरीर को भीतर से खोखला कर देता है। त्वचा पर जलन, सिरदर्द, सांस लेने में कठिनाई और फिर धीरे-धीरे लिवर, ब्लड, लंग, प्रॉस्टेट और ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारियाँ उभर आती हैं।
आंकड़े जो चेतावनी देते हैं
अध्ययनों से पता चला है कि जिन क्षेत्रों में कीटनाशक और रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग होता है,
वहाँ कैंसर के मामले सामान्य क्षेत्रों की तुलना में तीन से पाँच गुना ज़्यादा पाए जाते हैं।
पंजाब का “कैंसर बेल्ट” — मलोट से भटिंडा क्षेत्र — इसका एक जीता-जागता उदाहरण है।
हर साल सैकड़ों किसान और उनके परिवार इन रासायनिक जहरों की चपेट में आ रहे हैं।
भारत में हर साल करीब 14 से 15 लाख नए कैंसर मरीज सामने आते हैं,
जिनमें से एक बड़ी संख्या ग्रामीण इलाकों और खेती से जुड़े लोगों की है।
अब वक्त है जागने का
हमें यह समझना होगा कि —
“फसल का बढ़ना ज़रूरी है, लेकिन जीवन का बचना उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है।”
पूरी तरह से रासायनिक खेती छोड़ना तुरंत संभव नहीं है,
लेकिन धीरे-धीरे इस जहर पर नियंत्रण किया जा सकता है।
हमारी पारंपरिक खेती — जो गोबर, जैविक अवशेषों और प्राकृतिक उपायों पर आधारित थी —
आज फिर से समाधान बन सकती है।
जब न रसायन थे, न मशीनें — तब भी धरती उपजाऊ थी, मिट्टी स्वस्थ थी और किसान तंदुरुस्त था।
प्राकृतिक खेती: धरती और जीवन दोनों का उपचार
प्राकृतिक कीटनाशक (छिड़काव के विकल्प)
नीम का तेल या अर्क – कीड़ों की प्रजनन क्षमता को रोकता है, सुरक्षित और सस्ता विकल्प।
लहसुन, अदरक और हरी मिर्च का घोल – अधिकांश कीटों को भगाने में असरदार।
गौमूत्र व गोबर आधारित छिड़काव – पौधों को पोषण देने के साथ-साथ कीट नियंत्रण करता है।
फेरोमोन ट्रैप्स – कीड़ों के प्रजनन चक्र को बाधित करते हैं।
हल्दी, एप्सम सॉल्ट, बेकिंग सोडा घोल – पत्तियों पर लगने वाले फफूंद और कीटों को रोकते हैं।
पाइरेथ्रिन – गुलदाउदी पौधों से प्राप्त प्राकृतिक कीटनाशक।
प्राकृतिक खाद
गोबर कम्पोस्ट – मिट्टी की नमी और उपजाऊ शक्ति बढ़ाता है।
वर्मी कम्पोस्ट (केचुआ खाद) – पोषक तत्वों का संतुलित स्रोत।
जीवामृत, पंचगव्य, अमृत जल – सूक्ष्मजीवों की वृद्धि बढ़ाते हैं और मिट्टी को पुनर्जीवित करते हैं।
हरी खाद और फसल अवशेष – खेत को प्राकृतिक रूप से पुनः उर्वर बनाते हैं।
किसान के लिए छोटे लेकिन बड़े कदम
छिड़काव करते समय हमेशा मास्क, दस्ताने और सुरक्षा कपड़े पहनें।
कीटनाशक मिलाने या छिड़काव के बाद हाथ-पैर और चेहरा साबुन से धोएं।
कीटनाशकों के खाली डिब्बे या बोतलें खेत या पानी के स्रोत के पास न फेंकें।
एक ही खेत में बार-बार एक ही रसायन का उपयोग न करें।
फसल चक्र अपनाएँ — ताकि मिट्टी का संतुलन बना रहे।
धीरे-धीरे जैविक खेती, मिश्रित खेती और प्राकृतिक उत्पादों की ओर बढ़ें।
किसान से किसान तक एक संदेश
अब खेतों में ज़हर नहीं, जीवन उगाने का वक्त है।
सुरक्षित किसान ही स्वस्थ भारत की नींव है।
राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस पर आइए संकल्प लें —
हम अपनी मिट्टी, अपने शरीर और अपने भविष्य को
ज़हर से नहीं, प्रकृति से जोड़ेंगे। क्योंकि अगर किसान सुरक्षित रहेगा, तो भारत समृद्ध रहेगा।
कृषि केवल उत्पादन का माध्यम नहीं, यह जीवन का आधार है।
अगर हम स्वस्थ खेती की ओर कदम बढ़ाएं,
तो आने वाली पीढ़ियाँ न केवल भरपूर फसलें पाएँगी,
बल्कि एक सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण भी।
“स्वस्थ किसान, स्वस्थ मिट्टी, स्वस्थ भारत।”
ऐसी ही कृषि और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी के लिए — जुड़े रहें ‘किसान हेल्पलाइन’ के साथ।
जहाँ हर किसान के सवाल का हल मिलता है, और हर खेत को मिलती है नई दिशा।
लेखक: वैभव श्रीवास्तव
Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.
© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline