सोयाबीन की उन्नत किस्म JS 95-60: कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली किसानों की पहली पसंद

सोयाबीन की उन्नत किस्म JS 95-60: कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली किसानों की पहली पसंद
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Kisaan Helpline

Crops May 17, 2025

Soybean Variety JS 9560 : देश भर के किसानों के लिए खुशखबरी। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (JNKVV) द्वारा विकसित सोयाबीन की किस्म JS 95-60 अब मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में किसानों के लिए मुनाफे का विकल्प बन रही है। यह किस्म खास तौर पर बहुत जल्दी पकने वाली है, जिसके चलते इसकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

 

जल्दी पकने वाली किस्म, कई फायदे

JS 95-60 किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बहुत कम समय (केवल 85 से 88 दिन) में पक जाती है, जिससे किसानों को कटाई के तुरंत बाद रबी की फसल की तैयारी का मौका मिल जाता है। यह किस्म JS 93-05 जैसी अन्य पारंपरिक किस्मों की तुलना में करीब 8 से 10 दिन पहले पक जाती है।

 

उत्पादन क्षमता - किसानों की आय में वृद्धि

इस किस्म की अधिकतम उत्पादन क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मानी जाती है, जो आदर्श परिस्थितियों में प्राप्त की जा सकती है। सामान्यतः प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल उत्पादन आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यही कारण है कि यह किस्म किसानों के लिए आर्थिक रूप से बहुत लाभदायक साबित हो रही है।

 

बीज की विशेषताएँ – उच्च गुणवत्ता के साथ

·         बीज का आकार: अंडाकार और मोटा

·         रंग: दाना पीला और चमकदार, हायलम (नाभिका) हल्का भूरा

·         अंकुरण क्षमता: 85-90 प्रतिशत

·         बीज का वजन: 100 बीजों का वजन लगभग 10-13 ग्राम

 

पौधे की संरचना – रोग प्रतिरोधी और स्थिर

·         पौधे की ऊँचाई: 45-50 सेमी (बौनी किस्म)

·         पत्ती का रंग: गहरा हरा

·         तना, पत्ती और फली: चिकनी, बिना रोएँ वाली

·         फूल का रंग: नीला

·         फली का प्रकार: अधिकतर 3-4 दाने

·         फली फटने की समस्या नहीं होती, जिससे उपज को नुकसान नहीं होता।

 

खेती की विधि - वैज्ञानिक तरीके अपनाएँ

 

बीज दर और दूरी:

अच्छी फसल उपज के लिए 60-80 किलोग्राम/हेक्टेयर बीज दर अपनानी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी (1 फीट) होनी चाहिए।

 

मिट्टी का चयन:

जेएस 95-60 किस्म काली दोमट मिट्टी के लिए उपयुक्त मानी जाती है। ऐसी मिट्टी में पानी को अच्छी तरह से सोखने की क्षमता होती है और फसल को पोषण मिलता है।

 

बीज उपचार:

बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक (थिरम या कार्बेन्डाजिम) और कीटनाशक (इमिडाक्लोप्रिड या थियामेथोक्सम) से उपचारित करना चाहिए ताकि बीज जनित रोगों और कीटों से बचा जा सके।

 

जैविक कल्चर का उपयोग:

बीज को राइजोबियम और पीएसबी (फॉस्फेट सॉल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया) कल्चर से उपचारित करने से पौधे की वृद्धि बेहतर होती है और फसल को पर्याप्त फास्फोरस मिलता है।

 

रोग और कीट नियंत्रण - सतर्कता आवश्यक

जेएस 95-60 किस्म पीले मोजेक वायरस और स्टेम फ्लाई के प्रति संवेदनशील हो सकती है। इसलिए:

·         बुवाई से पहले बीज उपचार करना चाहिए।

·         समय-समय पर खेतों का निरीक्षण करें। जल निकासी की उचित व्यवस्था करें ताकि जलभराव न हो।

 

खरपतवार नियंत्रण - शुरुआती चरण में सफाई करें चूंकि यह किस्म जल्दी पक जाती है, इसलिए शुरुआती 20-25 दिनों तक खेतों को खरपतवार मुक्त रखना बहुत जरूरी है। इसके लिए: हाथ से निराई करें या प्री-इमर्जेंस हर्बिसाइड जैसे कि पेंडिमेथालिन का छिड़काव करें।

 

फसल चक्र और लाभ - दूसरी फसल का भी अवसर चूंकि जेएस 95-60 सिर्फ 85-88 दिनों में पक जाती है, इसलिए किसान इसके तुरंत बाद रबी की फसलें (जैसे कि चना या गेहूं) बो सकते हैं। इससे खेत का बेहतर उपयोग होता है और सालाना आय बढ़ती है।

 

जेएस 95-60 क्यों चुनें

विशेषताएं
 लाभ
फसल अवधि 85-88 दिन
उपज 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
रोग प्रतिरोधक क्षमता पीला मोजेक और तना मक्खी द्वारा नियंत्रित
मिट्टी की अनुकूलताकाली दोमट
बीज दर 60-80 किग्रा/हेक्टेयर
पौधे का प्रकार बौनी किस्म
दूसरी फसल की संभावनाअधिक


कृषि वैज्ञानिकों की सलाह

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि किसान खेत में बीज उपचार, समय पर बुवाई, खरपतवार नियंत्रण और जल निकासी की उचित व्यवस्था करें, तो जेएस 95-60 किस्म से अधिकतम उत्पादन मिलने की पूरी संभावना है।

 

महत्वपूर्ण सुझाव

·         बीज खरीदने से पहले प्रमाणित स्रोत से ही बीज खरीदें।

·         अंकुरण परीक्षण अवश्य कराएं।

·         स्थानीय कृषि अधिकारी से संपर्क कर मिट्टी की जांच कराएं।

·         कृषि विज्ञान केंद्र से तकनीकी मार्गदर्शन प्राप्त करें।

 

JS 95-60 - कम समय, अधिक उपज, अधिक लाभ

JS 95-60 किस्म चुनकर किसान कम समय में अधिक उपज और बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह किस्म आने वाले वर्षों में किसानों के लिए सोयाबीन उत्पादन का नया मानक बन सकती है।

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