Kisaan Helpline
मानसून की दस्तक के साथ ही मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और
अन्य सोयाबीन उत्पादक राज्यों के किसानों के लिए राहत भरी खबर है। कृषि
वैज्ञानिकों और मौसम विभाग के अनुसार 25 से 01 जुलाई 2025 के सप्ताह को सोयाबीन की
बुवाई के लिए उपयुक्त समय माना गया है। इस दौरान सही कृषि तकनीकों और उन्नत
किस्मों के उपयोग से किसान अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
किसानों के लिए यह सलाह दी गई है:
कम से कम 2-3 किस्मों की बुवाई करें:
कृषकों को सलाह दी गई है कि वे अपने क्षेत्र की जलवायु के
अनुसार और विभिन्न परिपक्वता अवधि वाली 2-3 नोटिफाइड किस्मों को चुनकर बुवाई करें।
इससे जलवायु जोखिमों से फसल को बचाना आसान होगा।
जलवायु के अनुसार किस्म का चयन करें:
मालवा और अन्य क्षेत्रों के लिए जहां किसान खरीफ के बाद रबी
और गर्मी की फसलें भी लेते हैं,
उन्हें शीघ्र परिपक्वता वाली किस्में जैसे JS 23-09,
JS 22-12 का चयन करने की सलाह है। जबकि केवल खरीफ में खेती करने वाले किसान मध्यम
या अधिक अवधि वाली किस्मों जैसे NRC
157, JS 21-72
आदि का चयन करें।
बीज का अंकुरण परीक्षण अनिवार्य:
बुवाई से पूर्व बीज का अंकुरण परीक्षण करें और 70% या उससे
अधिक अंकुरण वाले बीज ही उपयोग में लाएं। इससे पौध संख्या में एकरूपता बनी रहती
है।
अंतरवर्तीय फसलों का लाभ उठाएं:
असिंचित क्षेत्रों में सोयाबीन के साथ अरहर, और सिंचित
क्षेत्रों में मक्का, ज्वार, कपास, या बाजरा की
अंतरवर्तीय फसल लगाकर किसानों को अतिरिक्त आमदनी का अवसर मिलेगा।
जैविक खाद और संतुलित उर्वरक का उपयोग:
गोबर की खाद,
कम्पोस्ट या मुर्गी खाद का उपयोग कर भूमि की उर्वरता बनाए रखें। इसके अलावा, बुवाई के समय
ही 25:60:40:20
NPKS/हेक्टेयर
उर्वरक की आपूर्ति आवश्यक है।
सही दूरी और गहराई से बुवाई करें:
शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए 30 सेमी पंक्ति दूरी, 5-7 सेमी पौधों
की दूरी, और 2-3
सेमी गहराई से बुवाई करें। जबकि मध्यम अवधि वाली किस्मों के लिए 45 सेमी पंक्ति
दूरी व 5-10 सेमी पौध दूरी उपयुक्त मानी गई है।
बीजोपचार जरूरी:
फसल की प्रारंभिक अवस्था में रोग व कीट से बचाव और अंकुरण
सुधार के लिए बीज का उपचार फफूंदनाशक,
कीटनाशक और जैविक कल्चर से करें। इसके लिए FIR विधि का पालन करें।
खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान दें:
बुवाई पूर्व,
बुवाई के तुरंत बाद,
अथवा खड़ी फसल में उपयुक्त खरपतवारनाशकों का छिड़काव करें। किसान नेपसेक
स्प्रेयर या पावर स्प्रेयर से उपयुक्त मात्रा में पानी का उपयोग करें।
उन्नत सोयाबीन किस्में (कुछ उदाहरण):
·
मध्य क्षेत्र (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश
का बुन्देलखण्ड भाग,
राजस्थान,
गुजरात,
महाराष्ट्र का विदर्भ एवं मराठवाडा क्षेत्र): JS
23-03, JS 23-09, MAUS 731, Gujarat Soya 4, JS 22-12, JS 22-16, NRC 165, NRC
157, MAUS 725 (Maharashtra*), NRC 150, Phule Durva (KDS 992 Maharashtra*), JS
21-72, RVSM 2011-35, AMS 100-39 (PDKV Amba), NRC 142, MACS 1520, RSC 10-46, RSC
10-52, AMS-MB-5-18 (Suvarn Soya)
·
पूर्वी क्षेत्र (छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा एवं
पश्चिम बंगाल) एवं उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रः (असम,
मेघालय,
मणीपुर,
नागालैण्ड व सिक्किम) : RSC 10-71, RSC 10-52, Birsa Soya-4 (Jharkhand*), MACS 1407, MACS 1460, NRC 128, RSC 11-07 and RSC 10-46उत्तरी
भारत: PS 1670, SL 1074, NRC 128, Pant Soybean 27
·
उत्तरी मैदानी क्षेत्रः (पंजाब,
हरियाणा,
दिल्ली,
उत्तर प्रदेश के पूर्वी मैदान, मैदानी
उत्तराखण्ड व पूर्वी बिहार) : Pusa Soybean 21, NRC 149, Pant Soybean 27, PS 1670, SL 1074, SL 1028, NRC 128, Uttarakhand Black Soybean (Bhat 202-Uttarakhand*) SL 979, SL 955, Pant Soybean 26 (PS 1572), PS 1368, PS 24 (PS 1477), VLS 89
·
उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रः हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश व
उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रः NRC 197, VLS 99, Him Palam Soya-1
(Himachal Pradesh*), Pant Soybean 25 (PS 1556), Shalimar Soybean-1 (J&K)
·
दक्षिणी क्षेत्रः कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश व
महाराष्ट्र का दक्षिणी भाग: ALSB
50 (Telangana*), MAUS 725 (Maharashtra*), Phule Durva (KDS 992 (Maharashtra*)
NRCMACS 1667, NRC 142, MACS 1460, 132, DSb 34, KDS 753 (Phule Kimaya), KBS 23
(Karnataka*) NRC
कृषि वैज्ञानिकों की विशेष सलाह:
पिछले वर्षों में अतिवृष्टि, सूखा और असमय बारिश के अनुभवों को देखते हुए वैज्ञानिकों ने
बी.बी.एफ. विधि (Broad
Bed Furrow) या रिज-फरो प्रणाली से बुवाई करने की सलाह दी है, जिससे जल निकास
और फसल बचाव सुनिश्चित हो सके।
यह समय सोयाबीन की बुवाई के लिए न केवल उपयुक्त है, बल्कि
वैज्ञानिक पद्धतियों का पालन कर कम लागत में अधिक उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता
है। सही किस्म, बीजोपचार, जैविक खाद, उर्वरक व
खरपतवार नियंत्रण किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।
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