मानसून से पहले तैयार रहें: सोयाबीन की खेती के लिए जरूरी कदम और बीज चयन की पूरी जानकारी

मानसून से पहले तैयार रहें: सोयाबीन की खेती के लिए जरूरी कदम और बीज चयन की पूरी जानकारी
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Kisaan Helpline

Crops May 07, 2025

Soybean Ki Kheti: जैसे-जैसे जून का महीना नजदीक आ रहा है, वैसे ही किसानों की निगाहें मानसून पर टिक गई हैं। मौसम विभाग और कृषि अनुसंधान संस्थानों की रिपोर्टों के अनुसार, इस बार भी मानसून अपने निर्धारित समय पर दस्तक दे सकता है। ऐसे में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (ICAR-IISR) ने इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण सलाहें दी हैं, जिन्हें अपनाकर किसान अधिक उपज और लाभ कमा सकते हैं।

 

1. खेत की तैयारी और बुवाई की शुरुआत कब करें?

मानसून की पहली अच्छी बारिश (कम से कम 100 मिमी) के बाद ही सोयाबीन की बुवाई करनी चाहिए। यह इस बात की गारंटी देता है कि अंकुरण सही हो और फसल को शुरुआती नमी की कमी से नुकसान न हो।

खेत की तैयारी के लिए मानसून आने के बाद कल्टीवेटर और पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी और समतल बना लें। अंतिम जुताई से पहले खेत में 5-10 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद या 2.5 टन मुर्गी की खाद और साथ ही अच्छी बढ़वार और पैदावार के लिए टाटा स्टील धुर्वी गोल्ड का 25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से मिलाना पोषण प्रबंधन के लिए जरूरी है।

 

2. बीज का चयन और उपलब्धता पर ध्यान दें

अलग-अलग क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्मों का चयन करना जरूरी है। एक से अधिक किस्में चुनें ताकि किसी एक किस्म में रोग या मौसम का प्रभाव होने पर पूरी फसल खराब न हो।

 

देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुशंसित सोयाबीन प्रजातियाँ

 

मध्य क्षेत्रः मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड भाग, राजस्थान, गुजरात, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्रः

केंद्रीय स्तर पर नोटीफाईड किस्में: NRC 165, JS 22-12, JS 22-16, NRC 150, NRC 152, JS 21-72, RVSM 2011-35, NRC 138, AMS 100-39, RVS 76, NRC 142, NRC 130, MACS 1520, RSC 10-46, RSC 10- 52, AMS-MB 5-18, AMS 1001, JS 20-116, JS 20-94, JS 20-98, NRC 127

राज्य सरकार द्वारा अनुशंसितः मध्य प्रदेश NRC 157, NRC 131, NRC 136: महाराष्ट्रः MAUS 725, Phule Durva (KDS 992)

 

पूर्वी क्षेत्र (छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल तथा उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रः (असम, मेघालय, मणीपुर, नागालैण्ड व सिक्किम)

केंद्रीय स्तर पर नोटीफाईड किस्में: RSC 11-35, RSC 10-71, RSC 10-52, MACS 1407, MACS 1460, NRC 132, NRC 147, NRC 128, NRC 136, NRCSL-1, RSC 11-07, RSC 11-46, AMS 2014-1 (Purva), DSB 32, JS 20-116, KDS 753 (Phule Sangam), Kota Soya 1, Chhattisgarh Soya 1

राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित किस्मेंः छत्तीसगढ़ः छत्तीसगढ़ सोया; झारखण्डः बिरसा सोया-3, बिरसा सोया-4 मेघालयः उमियम सोयाबीन-1; हिमाचल प्रदेशः हिम पालम हरा सोया-1; जम्मू कश्मीर: शालीमार सोयाबीन-2

 

उत्तरी मैदानी क्षेत्रः पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के पूर्वी मैदान, मैदानी-उत्तराखण्ड एवं पूर्वी बिहार

केंद्रीय स्तर पर नोटीफाईड किस्में: PS 1640, SL-1074, SL-1028, NRC 128, SL-979, SL-955, Pant Soya 26, PS 1477, SL-958, Pusa -12

राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित किस्मेंः उत्तराखंडः उत्तराखंड काला सोयाबीन, पी. एस. 1521, पन्त सोयाबीन 23, पन्त सोयाबीन-21, पी.एस. 1368

 

उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रः हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रः

केंद्रीय स्तर पर नोटीफाईड किस्में: VL Soya 99, Pant Soybean-25, VL Soya 89

राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित किस्में: हिमाचल प्रदेश : हिम पालम सोया 1-; उत्तराखंडः वी.एल. भट्ट 201, वी.एल. सोया-77

 

दक्षिणी क्षेत्रः कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र का दक्षिणी भाग

केंद्रीय स्तर पर नोटीफाईड किस्में: MACS-NRC 1667, Karune, NRC 142, MACS 1460, AMS 2014-1, RSC 11-07, NRC 132, NRC 147, DSb 34, KDS 753 (Phule Kimaya), KDS 726 (Phule Sangam), DSb 23, MAUS 612, MACS 1281, KDS 344, MAUS 162, MACS 1188

राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित किस्मेंः

तेलंगानाः ALSB-50, बसार

महाराष्ट्र: एम.ए.यु.एस. 725, फूले दूर्वा (के.डी. एस. 992), AMS-1001;

कर्नाटकः के.बी.एस. 23

 

उपलब्ध बीज की गुणवत्ता जांच: अंकुरण परीक्षण के माध्यम से सोयाबीन की बुवाई के लिए उपलब्ध बीज का कम से कम 70% अंकुरण सुनिश्चित करें।

इनपुट: सोयाबीन की खेती के लिए आवश्यक इनपुट की खरीद और उपलब्धता सुनिश्चित करें।

 

3. बुवाई की विधि और बीज दर

सोयाबीन को 45 सेमी पंक्ति दूरी और 5–10 सेमी पौधों के बीच की दूरी पर बोया जाना चाहिए। बीज की गहराई 2–3 सेमी होनी चाहिए। एक हेक्टेयर में 60–70 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।

 

4. खाद और उर्वरक प्रबंधन

पोषक तत्व प्रबंधन/उर्वरकों का उपयोग: जैविक खाद के अलावा सोयाबीन की फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्व (25:60:40:20 किलोग्राम/हेक्टेयर नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर) बुवाई के समय ही दें। मध्य क्षेत्र के लिए अनुशंसित मात्रा इस प्रकार है:

1. यूरिया 56 किग्रा 375-400 किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 67 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश या

2. डीएपी 125 किग्रा + 67 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश + 25 किग्रा/हेक्टेयर बेंटोनेट सल्फर या

3. मिश्रित उर्वरक 12:32:16 @ 200 किग्रा 25 किग्रा/हेक्टेयर बेंटोनेट सल्फर

4. डीएपी 75 किग्रा + 50 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश + 50 किग्रा टाटा स्टील धुर्वी गोल्ड

 

5. सूखा/अत्यधिक वर्षा से बचाव के उपाय

पिछले कुछ वर्षों से असमय वर्षा और सूखे की समस्या लगातार देखी गई है। ऐसे में किसान BBF (Broad Bed Furrow) या रिज-फरो पद्धति अपनाएं। इससे पानी का बहाव नियंत्रित होता है और फसल सुरक्षित रहती है।

 

6. बीज उपचार और जैविक टीकाकरण

बीज को बोने से पहले कवकनाशी और कीटनाशक से उपचारित करें:

·         एज़ोक्सीस्ट्रोबिन + थियोफ़ेनेट मिथाइल + थायमेथोक्सम (10 मि.ली./किग्रा बीज)

·         वैकल्पिक रूप से: कार्बेन्डाजिम + मैंकोज़ेब (3 ग्राम/किग्रा बीज)

·         जैविक टीकाकरण के लिए: ब्रैडीराइजोबियम और ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें (5-10 ग्राम/किग्रा बीज)

·         बीज उपचार का सही क्रम: पहले कवकनाशी फिर कीटनाशक फिर जैविक कल्चर

 

7. खरपतवार नियंत्रण के उपाय

बुवाई के तुरंत बाद अनुशंसित खरपतवारनाशक का छिड़काव करें। छिड़काव के लिए पर्याप्त पानी जरूरी है:

·         450-500 लीटर/हेक्टेयर नेपसेक स्प्रेयर से

·         120 लीटर/हेक्टेयर पावर स्प्रेयर से

 

सोयाबीन की खेती को सफल बनाने के लिए सिर्फ बारिश का इंतजार काफी नहीं है। बुवाई से पहले की तैयारी, सही बीज चयन, उर्वरक व्यवस्था और बीज उपचार जैसे कदम समय पर उठाना जरूरी है। इन वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर किसान न केवल अधिक उपज पा सकते हैं, बल्कि मौसमी जोखिमों से अपनी फसल को सुरक्षित भी रख सकते हैं।

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