Taramira (तारामीरा)
Basic Info
आप जानते है तारामीरा सरसों परिवार की फसल हैं, तारामीरा फसलों के समूह में तोरिया, भूरी सरसों, पीली सरसों तथा राया आते है। तारामीरा फसल की लंबाई 2 से 3 फीट तक की होती है। यह सरसों के प्रजाति जैसी होती है लेकिन इसके दाने या फलियां लाल होते हैं। सभी क्षेत्रों में खेती की जाने वाली इस तारामीरा को उपजाऊ एवं अनुपयोगी भूमि में उगया जा सकता है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 35 से 37 प्रतिशत पायी जाती है,इसका तेल खाने योग्य होता हैं। सर्वाधिक तारामीरा राजस्थान के हनुमानगढ़ और श्री गंगानगर जिले में उत्पादन होता हैं। इसके अलावा नागौर, जोधपुर,टोंक, जयपुर, भरतपुर, अलवर में भी पर्याप्त उत्पादन होता हैं।
Seed Specification
बुवाई का समय
नमी की उपलब्धि के आधार पर इसकी बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिये।
दुरी
कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर रखें।
गहराई
कतारों में 5 सेंटीमीटर गहरा बीज बोयें।
बुवाई का तरीका
तारामीरा की बुवाई सीधे बीजों से प्रसारण विधि या सीडड्रिल द्वारा की जाती हैं।
बीज की मात्रा
तारामीरा की खेती के लिए 5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है।
बीज का उपचार
बुवाई से पहले बीज को 1.5 ग्राम मैंकोजेब द्वारा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करें।
Land Preparation & Soil Health
अनुकूल जलवायु
तारामीरा रबी मौसम की फसल है, जिसे ठन्डे शुष्क मौसम और चटक धुप वाले दिन कि आवश्यकता होती है।अधिक वर्षा वाले स्थान इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
भूमि का चयन
तारामीरा को उपजाऊ एवं अनुपयोगी भूमि में उगया जा सकता है, लेकिन तारामीरा हेतु हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। अम्लीय एवं ज्यादा क्षारीय भूमि इसके लिये बिल्कुल उपयोगी नहीं है।
खेत की तैयारी
तारामीरा की खेती अधिकांशत: बारानी क्षेत्रों में, जहां अन्य फसल सफलतापूर्वक पैदा नहीं की जा सकती हो, वहां की जा सकती है। खरीफ की चारे, उड़द, मूंग, चौंला, मक्का, ज्वार आदि की फसल लेने के बाद यदि नमी हो, तो एक हल्की जुताई करके सफलतापूर्वक इसे बोया जा सकता है। जहां तक सम्भव हो वर्षा ऋतु में तारामीरा की बुवाई हेतु खेत खाली नहीं छोडऩा चाहिये।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
तारामीरा के अच्छे विकास के लिए खेत तैयारी के समय गोबर की खाद और बुवाई के समय फसल में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 15 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिये।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के समय समय पर आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई
अच्छी पैदावार लेने के लिए जहां सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था हो वहां तारामीरा फसल में प्रथम सिंचाई 40 से 50 दिन में, फूल आने से पहले करें, तत्पश्चात आवश्यकता पड़ने पर दूसरी सिंचाई दाना बनते समय करें।
Harvesting & Storage
फसल की कटाई
तारामीरा फसल के जब पत्ते झड़ जायें और फलियां पीली पड़ने लगे तो फसल काट लेनी चाहिए अन्यथा कटाई में देरी होने पर दाने खेत में झड़ जाने की आशंका रहती है।
भंडारण
तारामीरा के बीजों के भंडारण हेतु नमी रहित स्थान का चयन करे।
उत्पादन
उपरोक्त तकनीक और अनुकूल स्थितियों में 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त हो जाती है।
Crop Related Disease
Description:
संक्रमण आमतौर पर गोलाकार, ख़स्ता सफेद धब्बे के रूप में शुरू होता है जो पत्तियों, तनों और कभी-कभी फलों को प्रभावित कर सकता है| यह आमतौर पर पत्तियों के ऊपरी हिस्सों को कवर करता है लेकिन नीचे की तरफ भी बढ़ सकता है।Organic Solution:
नीम की खली/पोंगामिया खली 100 किग्रा./एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय मिट्टी में डालेंChemical Solution:
कार्बेन्डाजिम 50% WP @ 120 ग्राम 240 लीटर पानी में या बेनोमाइल 50% WP @ 80 ग्राम 200 लीटर पानी/एकड़ में या थियोफेनेट मिथाइल 70% WP @ 572 ग्राम 00-400 लीटर पानी/एकड़ में स्प्रे करें।

Description:
सफेद जंग कवक जैसे जीव एल्बुगो कैंडिडा के कारण होता है। यह रोगज़नक़ सच्चे जंग रोगजनकों की तुलना में डाउनी मिल्ड्यू-प्रकार के रोगजनकों से अधिक निकटता से संबंधित है। सफेद रतुआ रोगज़नक़ का स्रोत जो महामारी की शुरुआत करता है, रोगग्रस्त पौधों के ऊतकों और बीज में गठित निष्क्रिय विश्राम संरचनाएं (ओस्पोरस) हैं। माना जाता है कि ओस्पोर्स बारिश और सिंचाई के पानी के छींटे और संभवतः मिट्टी को उड़ाने से फैलते हैं।Organic Solution:
सल्फर, नीम के तेल, काओलिन या एस्कॉर्बिक एसिड पर आधारित पर्ण स्प्रे गंभीर संक्रमण को रोक सकते हैं।Chemical Solution:
बीज उपचार सफेद जंग की घटनाओं को कम कर सकते हैं, लेकिन जब ध्वनि सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ एकीकृत किया जाता है तो यह सबसे प्रभावी होता है।

Taramira (तारामीरा) Crop Types
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Frequently Asked Questions
Q1: तारामीरा किस प्रकार की फसल हैं ?
Ans:
तारामीरा एक तिलहन की फसल है जो सरसों के परिवार से है। यह मुख्यता राजस्थान में उगाई जाती है इसका प्रयोग मुख्यतः खाने के तेल को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसमें तेल की मात्रा 35–40% तक होती है। इसके अलावा इसका प्रयोग पशुओं के पौस्टिक आहार के रूप मे किया जाता है।
Q3: तारामीरा की बुवाई कब करना चाहिए ?
Ans:
नमी की उपलब्धि के आधार पर इसकी बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिये।
Q5: तारामीरा फसल की कटाई कब की जाती है?
Ans:
तारामीरा की फसल 130 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं, तारामीरा फसल के जब पत्ते झड़ जायें और फलियां पीली पड़ने लगे तो फसल काट लेनी चाहिए अन्यथा कटाई में देरी होने पर दाने खेत में झड़ जाने की आशंका रहती है।
Q2: तारामीरा का तेल स्वास्थ्य के लिए किसा प्रकार लाभदायक हैं?
Ans:
तारामीरा के तेल को खाद के रूप में प्रयोग करने से मुंह कैंसर कैंसर तथा स्किन कैंसर के प्रभाव को कम करता है तथा इस में पाई जाने वाली अल्फा लिपोस एसिड (Alpha pills Acid ) से शुगर(Sugar) के दुष्प्रभाव को कम किया जाता है क्योंकि इससे इंसुलिन बनती है
Q4: तारामीरा की फसल के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त होती हैं?
Ans:
तारामीरा को उपजाऊ एवं अनुपयोगी भूमि में उगया जा सकता है, लेकिन तारामीरा हेतु हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। अम्लीय एवं ज्यादा क्षारीय भूमि इसके लिये बिल्कुल उपयोगी नहीं है।
Q6: भारत में सर्वाधिक तारामीरा का उत्पादन कहां होता हैं?
Ans:
भारत में सर्वाधिक तारामीरा राजस्थान के हनुमानगढ़ और श्री गंगानगर जिले में उत्पादन होता हैं।