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कृषि विशेषज्ञों ने देश के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण सलाह जारी की है, जिसमें बताया गया है कि मानसून से पहले खेतों की ग्रीष्मकालीन जुताई करना कैसे फसल की गुणवत्ता और पैदावार को बेहतर बना सकता है। यह पारंपरिक पद्धति न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है, बल्कि कीट नियंत्रण और जल संरक्षण में भी सहायक होती है।
क्या है ग्रीष्मकालीन
जुताई?
ग्रीष्मकालीन जुताई का मतलब है गर्मी के मौसम (मई-जून) में
खेत की गहरी खुदाई और मिट्टी को पलटना,
जिससे मानसून आने से पहले खेत की मिट्टी पूरी तरह तैयार हो जाती है। यह
प्रक्रिया परंपरागत कृषि प्रणाली का हिस्सा है, जो आज भी उतनी ही कारगर है।
ग्रीष्मकालीन जुताई के
प्रमुख फायदे:
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मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार – जुताई से
मिट्टी की कठोर परत टूटती है और हवा तथा पानी का संचार बेहतर होता है, जिससे पौधों की
जड़ें मजबूत बनती हैं।
·
जलधारण क्षमता में वृद्धि – मानसून के समय
गिरने वाला पानी मिट्टी में अधिक समय तक ठहरता है, जिससे फसल को लंबे समय तक नमी मिलती है।
·
खरपतवार नियंत्रण – खेत में उगे
अवांछित पौधे (खरपतवार) मिट्टी में दबकर सड़ जाते हैं, जिससे उनकी
वृद्धि रुकती है।
·
कीटों और रोगों से सुरक्षा – दीमक, सफेद गिडार, कटुआ कीड़ा
जैसे मिट्टी में पनपने वाले कीटों के अंडे और लार्वा गर्मी की गहराई तक जुताई करने
से खत्म हो जाते हैं।
·
मिट्टी में जैविक तत्वों की वृद्धि – जुताई
के दौरान फसल अवशेष मिट्टी में मिलकर उसे जैविक रूप से समृद्ध करते हैं, जिससे उसकी उर्वरता
बढ़ती है।
पर्यावरण की रक्षा में
भी सहायक
ग्रीष्मकालीन जुताई सिर्फ खेत की पैदावार ही नहीं बढ़ाती, बल्कि यह
पर्यावरण को भी स्वच्छ रखने में मदद करती है। जब खेतों में रासायनिक नष्टिकरण की
बजाय प्राकृतिक तरीकों से खरपतवार और कीटों पर नियंत्रण होता है, तो जल, वायु और मृदा
प्रदूषण भी कम होता है।
किसानों के लिए सलाह:
कृषि विभाग का कहना है कि किसान भाई अभी से अपने खेतों में
जुताई का कार्य शुरू कर दें। खासकर वे किसान जो खरीफ फसलों की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए यह
कार्य अत्यंत आवश्यक है। साथ ही फसल चक्र,
कतार में बुआई और सहफसली खेती जैसी आधुनिक लेकिन पारंपरिक कृषि विधियों को
अपनाकर उत्पादन और मुनाफा दोनों बढ़ाया जा सकता है।
ग्रीष्मकालीन जुताई कोई नया प्रयोग नहीं है, बल्कि वर्षों
से अपनाई जा रही एक परीक्षित और भरोसेमंद तकनीक है। यह एक ऐसी पारंपरिक पद्धति है
जो बदलते मौसम और प्राकृतिक असंतुलन के बीच भी किसानों को सशक्त बनाती है। अगर
किसान अभी से खेतों की तैयारी में लग जाएं,
तो आने वाले समय में खरीफ फसलों से बेहतर उत्पादन और अधिक आमदनी सुनिश्चित हो
सकती है।
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