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टाटा स्टील ने ढूंढा स्लैग का नया उपयोग: धुर्वी गोल्ड खाद से घट रही खेती की लागत, बढ़ रही पैदावार
स्टील बनाने की प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में निकलने वाले कचरे स्लैग का समाधान अब टाटा स्टील ने एक नई तकनीक से खोज लिया है। जमशेदपुर स्थित प्लांट में हर साल 10 मिलियन टन स्टील का उत्पादन होता है, जिसमें लगभग 20 प्रतिशत एलडी स्लैग बनता है। पहले यह कचरा माना जाता था, लेकिन अब इसी स्लैग से बनी खाद किसानों के लिए बड़ी उम्मीद बन गई है।
कंपनी के टेक्नोलॉजी एंड न्यू मटेरियल्स विभाग ने लंबे शोध के बाद धुर्वी गोल्ड खाद विकसित की है। यह खाद टमाटर, प्याज, गन्ना, धान, गेहूं और सब्जियों में पैदावार बढ़ाने में बेहद प्रभावी साबित हो रही है। किसानों के अनुसार इस खाद का इस्तेमाल करने पर उनकी आमदनी और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी हुई है।
किसान लंबे समय से डीएपी और यूरिया पर निर्भर रहे हैं, लेकिन यूरिया आयात होने के कारण कई बार उपलब्ध नहीं रहता या महंगा मिल जाता है। धुर्वी गोल्ड ने इस समस्या को काफी हद तक कम कर दिया है। किसानों का कहना है कि इस नई खाद से डीएपी और यूरिया की खपत 50 प्रतिशत तक घट गई है, जिससे खेती की कुल लागत भी कम हुई है।
धुर्वी गोल्ड को बाजार में लाने से पहले देश के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों—
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली
विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, बंगाल
यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज
ने तीन वर्षों तक इस खाद पर परीक्षण किए। मिट्टी पर प्रभाव, पौधों की स्थिति और फसल के बदलावों की जांच के बाद ही इस खाद को वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी दी गई।
टाटा स्टील वर्तमान में आदित्यपुर के हटियाडीह प्लांट में हर साल 25 हजार टन धुर्वी गोल्ड का उत्पादन कर रही है। कंपनी का कहना है कि शुरुआती चरण में ही आठ राज्यों के 8,000 से अधिक किसानों ने इसे इस्तेमाल कर सफल नतीजे प्राप्त किए। यह खाद झारखंड, बिहार, बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक समेत कई राज्यों में उपयोग हो रही है।
लोआडीह, पटमदा के किसान अशोक महतो बताते हैं कि धुर्वी गोल्ड के उपयोग से उनके खेतों में टमाटर की पैदावार 7 क्विंटल प्रति एकड़ से बढ़कर 13 क्विंटल हो गई। सब्जियों का आकार बड़ा, रंग बेहतर और ढुलाई में भी आसानी हुई।
दीघी पंचायत की प्रियंका महतो ने बताया कि पहले धान की फसल में बिचड़ा कम बनता था, लेकिन इस खाद के इस्तेमाल से बिचड़ा मजबूत हुआ और पैदावार भी अच्छी मिली।
प्रोजेक्ट से जुड़े पी. गणेश के अनुसार, एलडी स्लैग से बनी धुर्वी गोल्ड मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाती है और पौधों को लंबे समय तक पोषक तत्व देती है। इसके पोषक तत्व धीरे-धीरे गलते हैं, जिससे फसल को लगातार माइक्रो न्यूट्रिएंट मिलते रहते हैं, जबकि अन्य उर्वरक तेजी से घुलकर खत्म हो जाते हैं।
टाटा स्टील की यह पहल न सिर्फ स्लैग के निस्तारण का समाधान है, बल्कि किसानों के लिए कम लागत में बेहतर पैदावार का भरोसेमंद विकल्प भी बन रही है। आने वाले समय में ऐसी तकनीकें खेती को और टिकाऊ बनाने में जरूरी भूमिका निभाएंगी।
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