वैज्ञानिकों ने सेब की दो नई किस्मों को किया विकसित, गर्म इलाकों में भी कर सकते है किसान इसकी खेती
वैज्ञानिकों ने सेब की दो नई किस्मों को किया विकसित, गर्म इलाकों में भी कर सकते है किसान इसकी खेती
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भारत में सेब का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। इसके लिए ठंडे जलवायु वाले क्षेत्र उपयोगी माने जाते हैं। सेब का नाम सुनते ही सबसे पहले कश्मीर और हिमाचल प्रदेश का नाम दिमाग में आता है, क्योंकि भारत में इन्हीं दो राज्यों में इसकी खेती सबसे ज्यादा होती है। वहीं, लोगों का यह भी मानना है कि सेब की खेती ठंडे इलाकों में ही की जाती है। लेकिन, ये बातें अब पुरानी हो चुकी हैं। अब उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे गर्म राज्यों के किसान भी सेब की खेती कर सकते हैं। 

अभी तक सेब की खेती ठंडे इलाकों में ही की जाती रही है, क्योंकि वहां की जलवायु इसके लिए अनुकूल होती है। अब सेब की खेती मैदानी और गर्म क्षेत्रों में भी की जा सकती है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने लगभग नौ साल के परीक्षण के बाद सेब की दो ऐसी किस्में अन्ना और डोरसेट गोल्डन जारी की हैं। यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि ये दोनों ही किस्में 'लो चिल' हैं। यानि की सेब की ये किस्में कम ठण्ड की जरुरत वाली है।


खास बात यह है कि इन दोनों किस्मों को गर्म और मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है। सेब की ये नई किस्में 35 से 37 डिग्री तक के तापमान को झेलने में सक्षम हैं। यानी इसकी खेती बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, त्रिपुरा, सिक्कम, मणिपुर, कर्नाटक, आंधप्रदेश, तामिलनाडु सहित दक्षिण भारत के कई राज्यों के किसान भी कर सकते हैं।

मिडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सेब लगाने का सबसे अच्छा समय जनवरी है। मार्च से जून तक उन्हें लगातार हल्के पानी की जरूरत होती है। मई फल देने का समय है। फलों की तुड़ाई 10 जून से पहले कर लेनी चाहिए। इसके बाद तापमान बढ़ने पर सेब खराब हो जाएगा। तीसरे साल से फल आना शुरू हो जाते हैं। गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए शेड नेट का प्रयोग किया जा सकता है। इससे सेब के आकार और गुणवत्ता में सुधार होता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2013 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, पीएयू ने सेब की 29 किस्मों पर शोध कार्य शुरू किया था। इन किस्मों को भारत और विदेशों से लाया गया था।

स्वाद और गुणवत्ता में हिमाचल सेब के बराबर

शोध के अनुसार अन्ना और डोरसेट गोल्डन किस्में ऐसी थीं, जिनकी गुणवत्ता और स्वाद में सेब हिमाचल के सेब के बराबर पाए गए। खट्टापन हिमाचल के सेब से थोड़ा ज्यादा था। अगर इन दोनों किस्मों के सेबों को तुड़ाई के बाद एक से दो दिन तक फ्रिज में रखा जाए तो खट्टेपन का पता नहीं चलता है। हालांकि, वे आकार और रंग में हिमाचल और कश्मीर की सेब किस्मों की तुलना में कम हैं। बहुत अधिक गर्मी होने पर रंग अच्छा नहीं होता है। इसका गहरा लाल रंग सेब में अधिक पसंद किया जाता है। डोरसेट गोल्डन किस्म का रंग सुनहरा पीला होता है और अन्ना का रंग हल्का गुलाबी होता है।