हरी खाद के लिए करें ढैंचा की खेती और बढ़ाएं खेत की उपजाऊ क्षमता
हरी खाद के लिए करें ढैंचा की खेती और बढ़ाएं खेत की उपजाऊ क्षमता
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भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए जैविक खाद के साथ-साथ हरी खाद का प्रयोग करना अति आवश्यक है। गेहूं की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में हरी खाद के साथ ढेंचा की फसल उगाकर किसान भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ा सकते हैं।

ढैंचा हरी खाद की फसल है, जिसका उपयोग खेतों के लिए हरी खाद बनाने में किया जाता है। ढैंचा का पौधा जब बड़ा हो जाता है तो उसे काटकर हरी खाद बनाया जा सकता है, जिसके बाद यह फिर से उग आएगा। इसके प्रयोग के बाद खेत में अलग से यूरिया की आवश्यकता नहीं पड़ती है। ढैंचा की फसल को हरी खाद के रूप में लेने से मृदा स्वास्थ्य में जैविक, रासायनिक एवं भौतिक सुधार होता है तथा जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है। फ्रेम को पलटने और खेत में सड़ने से नाइट्रोजन, पोटाश, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर, आयरन जैसे सभी प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं।

कब करें ढैंचा की खेती

रबी या खरीफ सीजन से पहले ढैंचा की खेती की जाती है, ताकि नकदी फसलों को कम लागत में बेहतर पोषण मिल सके। ढैंचा की खेती सामान्य तरीके से ही की जाती है। इसकी बुवाई के एक से डेढ़ महीने के अंदर ही इसके पौधों की लंबाई तीन फीट हो जाती है और इसकी गांठों में नाइट्रोजन का भंडार भर जाता है। साथ ही ढैंचा की कटाई के बाद उसे खेतों में फैला देते हैं।

बीज की मात्रा एवं बोने की विधि

सामान्य भूमि में 10-12 किग्रा बीज तथा कल्लार भूमि में 20 किग्रा बीज प्रति एकड़ की दर से बोयें। अधिक और शीघ्र अंकुरण के लिए बीजों को रात भर पानी में भिगोकर रखना चाहिए। बीज कृषि विभाग द्वारा 75 प्रतिशत अनुदान पर भी लिया जा सकता है। खेत की पलेवा व जुताई करने के बाद ढैंचा को बिखेर कर या लाइनों में बिजाई करें सुहागा लगा दें।

ढैंचा की खेती करने का समय

ढैंचा की खेती मार्च-अप्रैल में की जा सकती है। इसे सभी मिट्टी की स्थितियों में बोया जा सकता है। बुवाई के 45 से 60 दिनों में पत्तियां आने लगती हैं और 100 दिनों में एकत्र की जा सकती हैं।

सिंचाई

पहली सिंचाई बुवाई के 10 से 12 दिन बाद और बाद की सिंचाई 8 से 10 दिन के अंतराल पर करें।

ढैंचा को मिट्टी में मिलाना

हरी खाद के लिए ढैंचा बोने के 40 से 50 दिन बाद नरम अवस्था में पटेला चलाकर  और मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके फसल को खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। यदि खेत में नमी कम हो तो पानी देना चाहिए। इससे फसल सड़ कर खाद में बदल जाती है। हरी खाद डालने के 22 से 25 दिन बाद फसल बोई जा सकती है।

किसान की होगी आय में वृद्धि

ढैंचा की खेती के बाद इसे हरी खाद के रूप में प्रयोग करने से यूरिया की आवश्यकता एक तिहाई कम हो जाती है, जिससे पैसे की बचत होती है। इसके अलावा हरी खाद बनाने पर खेतों में खरपतवार की सम्भावना नहीं रहती है जिससे निराई-गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण में भारी खर्चा कम आता है। इससे किसानों का खर्च कम होगा और उनकी आय में वृद्धि होगी।